असली देशभक्ति
असली देशभक्ति
"हैलो सृष्टि आज का क्या प्रोग्राम है तेरा!" सृष्टि की कॉलेज की दोस्त चहक ने उसे फोन करके पूछा।
"प्रोग्राम क्या होता भला कॉलेज में तो कोई प्रोग्राम है नहीं कोरोना के कारण तो घर पर हूं!" सृष्टि बोली।
"तो तैयार हो जा हम सब दोस्त मॉल चल रहे हैं वहां मस्ती करेंगे हम तो हर साल जाते तू हमारे ग्रुप में नई जुड़ी है सोचा तुझे भी पूछ लूं!" चहक चहकते हुए बोली।
"ठीक है मैं आती हूं आधे घंटे में!" सृष्टि बोली।
"और हां तिरंगा बैंड या झंडा लेकर आइयो!" चहक बोली और फोन काट दिया।
सृष्टि इस शहर में अभी पिछले साल ही अपने परिवार के साथ आईं है। यही के कॉलेज में दाखिला लिया उसने और वहीं उसकी पहचान चहक से हुई जो दोस्ती में बदल गई चहक की मित्र मंडली सृष्टि की भी दोस्त बन गई थी कुछ समय बाद कॉलेज बन्द हो गए थे पर दोस्ती सलामत थी।
सृष्टि तय समय पर सभी दोस्तों से मॉल में मिली सबके हाथ में वहां तिरंगे या बैंड थे। मॉल में भी मानो देश भक्ति की बाहर थी। जैसे हर कोई देश प्रेम में सरोबार हो। देश भक्ति के एक से एक गाने बजाए जा रहे थे। चहक, सृष्टि और बाकी सभी दोस्त भी जम कर नाचे उन गीतों पर।
"थक गए यार अब फूड कोर्ट चलते हैं कुछ खाने पीने!" थोड़े समय बाद चहक बोली।
" हां हां चलो चलो !" सबने एक स्वर में कहा।
फूड कोर्ट भी देशभक्ति से अछूता नहीं रहा । तिरंगा सैंडविच, तिरंगा शेक्स और तिरंगे ही मिष्ठान। सबने खाया पीया और खूब सारी मस्ती की फिर सब अपने घर को जाने लगे।
सृष्टि देख रही थी जिन तिरंगे झंडों को अभी तक सभी लोग शान से ले लहरा रहे थे वो अब धूल फांक रहे थे।
" ये कैसी देश भक्ति है?" सृष्टि ने खुद से सवाल किया!
"तुम सब जाओ मैं थोड़ी देर में आती हूं!" सृष्टि ये बोल रुक गई।
" क्या बात है सृष्टि कोई काम है क्या , या कोई और आने वाला है?" उनके ग्रुप के एक लड़के नमन ने पूछा।
"नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" सृष्टि एक दम से बोली।
"तो हम तुझे अकेले नहीं छोड़ के जा सकते सृष्टि अंधेरा भी होने लगा है तू बता तो काम क्या है!" चहक बोली।
"ठीक है तुम रुको मैं अपना काम ख़तम करती हूं!" सृष्टि ये बोल वहां जमीन में पड़े तिरंगे उठाने लगी।
"पागल है क्या ये क्या कर रही है तू!" अचानक उसकी दोस्त रिया बोली।
"अरे अपने देश का गौरव अपना तिरंगा ही तो उठा रही हूं, ये कैसी देशभक्ति है मैं समझ नहीं पा रही जिस तिरंगे को कुछ देर पहले यहां सभी शान से लहरा रहे थे उसे ही पैरों में रोंद रहे हैं। मैं अपने देश के गौरव का यूं अपमान नहीं देख सकती!" सृष्टि ने भावुक हो कहा।
" पर सृष्टि ये तेरा काम नहीं तू चल यहां से!" चहक सृष्टि का हाथ पकड़ते बोली।
अब तक मॉल के ज्यादातर लोग उनकी तरफ ही देख रहे थे।
" मेरा ही नहीं हर देशवासी का काम है ये अपने तिरंगे का मान रखना !" ये बोल सृष्टि लोगों के पैरों में पड़े तिरंगे झंडे और बैंड उठाने लगी।
सृष्टि को देख उसके दोस्तों को भी शर्म आईं खुद पर क्योंकि कुछ देर पहले उन्होंने भी ऐसे ही फेंका था अपने देश के गौरव को। सभी सृष्टि के साथ जुट गए झंडों को उठाने में।
मॉल में आए सभी लोग उनको ऐसा करता देख अपने द्वारा फेंके तिरंगे उठाने लगे। जो कुछ लोग अभी फेंकने ही वाले थे उनका भी इरादा बदल गया।
"मैडम सर आप लोग ये क्या कर रहे हैं!" तभी वहां की कवरिंग करने आया एक रिपोर्टर सृष्टि के ग्रुप से बोला।
"हम अपने देश के गौरव को बचा रहे हैं।" सृष्टि बोली।
"पर आपको ये विचार आया कैसे?" रिपोर्टर का अगला सवाल था।
"ये विचार नहीं ये हम सबका फर्ज है अपने देश के किसी भी गौरव का अपमान ना होने देना! आप लोग भले 15 अगस्त 26 जनवरी पर झंडे मत लहराओ पर अगर आपने एक झण्डे को भी यूं धूल में मिलने से बचा लिया समझो आप सच्चे देशभक्त हैं।" सृष्टि ने जैसे ही ये कहा सारा हॉल तालियों से गूंज उठा।
थोड़ी देर में ही मॉल और उसके आस पास का सारा परिसर साफ हो गया अब वहां एक भी तिरंगा धूल नहीं फांक रहा था बल्कि वो तो मॉल की छत पर शान से लहरा रहा था।
सच है दोस्तों हम लोग एक दिन की देशभक्ति साबित करने में कितने तिरंगों का अपमान कर देते जबकि सच्ची देख भक्ति तो देश के गौरव को संभालने में है ना कि उसे धूल में मिलाने में।
क्या आप भी सृष्टि से सहमत है? बताइएगा जरूर