अशुभ नहीं बड़े दिलवाली
अशुभ नहीं बड़े दिलवाली
शकुन्तला देवी के घर में आज भागमभाग का माहौल है सुबह मुंह अंधेरे ही दोनों बेटे दोनों बहुओं को लेकर हॉस्पिटल जा चुके हैं।
अरे! कुछ गलत मत समझ लेना, यह दोनों अपनी पत्नियों को किसी प्रॉब्लम की वजह से नहीं, अपितु उनकी डिलीवरी होने वाली है, इस वजह से हाॅस्पिटल ले कर गए हैं।
शकुन्तला देवी के दो बेटे हैं -श्रवण और सुमित। श्रवण बड़ा है, उसकी शादी आठ साल पहले हुई थी, सुमित की शादी को अभी एक साल हुआ है।
कुछ देर में जरूरी सामान के साथ शकुन्तला देवी भी हाॅस्पिटल पहुंची। पहले मालती, श्रवण की पत्नी के वार्ड में गईं, वहां जाकर देखा कि बच्चे का पालना खाली था, मालती रो रही थी, नर्स चुप करा रही थीं।
शकुन्तला देवी को धक्का लगा, श्रवण ने धीरे से बताया कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ।शकुन्तला देवी ने रोती हुई मालती को सीने से लगाकर ढांढस बंधाया।अपार दुख से उन्हें स्वयं बहुत पीड़ा हो रही थी।
डाॅक्टर साहिबा ने आकर मालती को नींद का इंजेक्शन लगाया। मालती को नींद आ गई, डाॅक्टर ने श्रवण और शकुन्तला देवी से कुछ देर बात की फिर दूसरे मरीजों को देखने चली गईं।
कुछ देर बाद शकुन्तला देवी सुरभि, सुमित की पत्नी के वार्ड में गईं, सुंदर सलोनी बच्ची देखकर उन्हें चैन की सांस आई। सुरभि से कुछ पल बात कर शकुन्तला देवी बच्ची की देखरेख में लग गईं।
नार्मल डिलीवरी के चलते तीसरे दिन सुरभि को हाॅस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। मालती को एक दिन अधिक रखा गया।
मू्लों में बच्ची हुई थी तो सत्ताइस दिन बाद नामकरण करना निश्चित हुआ।धीरे-धीरे मालती ठीक होने लगी। कुछ कुछ काम बच्ची का करने की कोशिश करती पर सुरभि मना कर देती। मालती ऊपरी काम करती रहती।
आज बच्ची का नामकरण है, घर में सुबह से चहल-पहल है, मालती रसोईघर में लगी है, साथ में कामवाली कमला भी है।
शकुन्तला देवी पूजा का सामान देख रही हैं, सामग्री, हवन कुंड , फल, सभी रख दिए गए हैं। पण्डित जी का इंतजार हो रहा है।
अपने कमरे में सुरभि भारी बनारसी साड़ी पहन कर बच्ची को तैयार कर रही है।
शकुन्तला देवी ने कमला से श्रवण को बुलाया, " बेटा, पंडित जी को फोन कर पूछो, कब तक आ रहें हैं।"
आंगन के दरवाजे से आते हुए पंडित जी बोले,"नमस्कार शकुन्तला जी, मैं आ गया हूॅ॑।"
शकुन्तला देवी ने पंडित जी को प्रणाम कर, आसन ग्रहण करवाया।
मालती को आवाज लगाते हुए शकुन्तला देवी ने कहा," मालती, सुरभि और बच्ची को जल्दी ले आओ, पंडित जी आ गएं हैं।"
श्रवण और सुमित ने आकर पंडित जी को प्रणाम किया। मालती सुरभि को लेने उसके कमरे में पहुंची तो सुरभि ने उससे कहा कि वह स्वयं आ जाएगी।
कुछ पल में ही सुरभि बच्ची के साथ वहां आ गई।पंडित जी ने नामकरण संस्कार की पूजा शुरू कर दी।शकुन्तला देवी ने नामकरण संस्कार में बस कुछेक रिश्तेदारों को बुलाया था।
बच्ची का नाम रखा गया," मानसी"
पूजन सम्पन्न करवाते हुए पंडित जी ने कहा कि अब सभी लोग बच्ची को आशीर्वाद देने आ जाएं।
बच्ची की दादी, नानी, नाना, मामा, मामी ने बच्ची को आशीर्वाद और उपहार दिए ।
बच्ची को आशीर्वाद देने श्रवण और मालती आगे आए। श्रवण के आशीर्वाद देने के बाद सुरभि ने कहा कि बच्ची को भूख लग गई है, दूध पिलाकर सुला देती हूॅ॑।शकुन्तला देवी को अजीब लगा, उन्होंने कहा," सुरभि, मालती के आशीर्वाद देने के बाद मानसी को ले जाना।"
सुरभि ने ऊंची आवाज़ में कहा," जिनके नसीब में बच्चों का सुख नहीं है, उनसे अपनी बच्ची को आशीर्वाद दिलाने की मुझे जरूरत नहीं है। "
शकुन्तला देवी ने चौंककर कहा,"क्या बोल रही हो बहू?"
"ठीक ही तो कह रही हूॅ॑, मांजी। वो क्या आशीर्वाद देंगी जिनके खुद बच्चा नहीं है।"
मालती वहां से रोते हुए अपने कमरे में चली गई।
शकुन्तला देवी ने कहा," क्या अनाप-शनाप बोल रही हो?"
श्रवण भी मालती के पीछे पीछे कमरे में चला गया।
इतने में सुमित भी सुरभि की हां में हां मिलाते हुए बोला, " सही ही तो कह रही है, सुरभि। माॅ॑, भाभी से क्या आशीर्वाद लेना, उनके कोई संतान नहीं है।"
शकुन्तला देवी बिना कुछ कहे श्रवण के कमरे में जाकर श्रवण और मालती को लेकर बाहर आ गईं।
मालती को सुरभि के सामने लाकर उन्होंने सुरभि से कहा, " तुम मालती से आशीर्वाद दिलाना अपनी बच्ची के लिए बुरा समझ रही हो।"
"मांजी, कुछ अपशगुन हो गया तो, भाभी को कमरे में भेज दीजिए। भाभी को स्वयं समझदारी से काम लेना चाहिए था और पूजा व बच्ची से अलग रहना चाहिए था। अशुभ हैं भाभी, अपने बच्चे को खा गईं। इतने दिनों से मैं बच्ची को इनकी छाया से बचा रहीं हूॅ॑, पर इन्हें कुछ समझ में नहीं आता है।" सुरभि ने कहा
शकुन्तला देवी के सब्र का बांध अब टूट गया, कहने लगीं," जिस मालती से तुम्हें अपनी बच्ची के लिए अपशगुन का भय है, जो अपशगुनी है , अशुभ हैं, तुम्हारे हिसाब से, वही मालती इस बच्ची की माॅ॑ है।
सुमित, सुरभि यह सुनकर आवाक रह गए।
शकुन्तला देवी को श्रवण और मालती ने रोकते हुए कहा,। " माॅ॑, आप चुप हो जाइए।"
कल्याणी देवी नहीं रुकीं, उन्होंने बताना जारी रखा,
"उस दिन मरा हुआ बच्चा मालती का नहीं बल्कि सुरभि का हुआ था। यह बच्ची मालती की है। मेरे वहां पहुंचने से पहले डाॅक्टर ने जब यह बताया कि सुरभि का बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ है और वह अब कभी माॅ॑ नहीं बन पाएगी तब मालती ने सुरभि के बगल में अपनी बच्ची रख दी।"
"सुमित को यह बात इसलिए पता नहीं है क्योंकि वह मुझे लेने घर आया था जब यह सब हुआ।"शकुन्तला देवी ने कहा," आज तुम मालती को अशुभ और अपशगुनी कह रही हो? जिसने अपनी गोद सूनी कर तुम्हारी गोद में अपनी बेटी डाल दी। मेरी बहू मालती अशुभ नहीं बड़े दिलवाली है!"
सुमित और सुरभि मालती के पैरों पर पड़ गए, कहने लगे,"भाभी, आपने हमें दुनिया जहान की खुशी, अपनी बेटी दे दी और हमने आपको इतना गलत समझा, बहुत गन्दा व्यवहार किया, हमें माफ़ कर दीजिए।"
मालती ने सुरभि को उठाकर कहा," आज के शुभ अवसर पर रोते नहीं हैं।"
सुरभि ने मानसी को मालती की गोद में देते हुए कहा," भाभी, आप ही मानसी की असली माॅ॑ हों। आप अपनी गोद में लेकर मानसी को आशीर्वाद दीजिए।"
शकुन्तला देवी ने कहा," सुरभि और मालती बहू, तुम दोनों मिलकर मानसी को पालो। कितनी भाग्यशाली है मानसी जिसे दो-दो मांओं का प्यार मिलेगा।"
तनिक ठहरकर शकुन्तला देवी बोली," सुरभि बहू, बच्चा न होने से या मरा हुआ बच्चा पैदा होने से कोई अपशगुनी नहीं हो जाता है, अशुभ नहीं हो जाता है। इसी सोच को बदलने की ज़रूरत है,यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए, अच्छा है। तुम मालती को उल्टा सीधा कह रही थी, ऊपरवाले का खेल देखो, तुम स्वयं आगे कभी माॅ॑ नहीं बन पाओगी।"
सुरभि और सुमित ने हाथ जोड़कर सबसे अपनी गलत सोच के लिए माफी मांगी।
