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Anita Sharma

Drama Romance Tragedy

4  

Anita Sharma

Drama Romance Tragedy

अर्श से फर्श तक

अर्श से फर्श तक

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"प्रिया..... प्रिया .... जल्दी आओ न" ,,,,,


"जी आई !! क्या हुआ? मैं रसोई में काम कर रही थी। "कहते हुये प्रिया अपने पति आदित्य के पास आ गई।

आदित्य ने प्रिया के कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी तरफ खीचतें हुये शिकायती लहजे में कहा......." क्या प्रिया सारा टाइम तुम रसोई में ही लगी रहती हो। कम से कम आज तो मेरे पास बैठो। आज तो अपनी शादी की सालगिरह है। मैं कब से तुम्हे बुला रहा हूँ और एक तुम हो की तुम्हारे पास मेरे लिए समय ही नहीं है। "


प्रिया शर्माते हुये अपने आपको आदित्य की पकड़ से आजाद करते हुये बोली....." क्या बात है ?आज तो आप बड़े रोमांटिक हो रहे हो। "


"क्यों नहीं होऊंगा ?आज ही तो वो दिन है जब तुम मेरी जिन्दगी में आई थी। सुनो न !! आज हम अकेले कहीं घूमने चलते है। वहीं खाना भी खा लेंगे। "

आदित्य ने प्रिया के कान के पीछे अपने होठों से छूते हुये कहा।


प्रिया की शादी को पांच साल हो गये। पहले तो आदित्य और वो घुमने चले भी जाते थे। पर जब से बेटा हुआ था तब से दोनों ही बाहर जाने से कतराने लगे थे। क्योंकि बच्चे की इम्युनिटि कम थी जिससे वो जरा सी बाहर की हवा लगने से बीमार हो जाता था।डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने बच्चे की ये परेशानी बड़े होने पर अपने आप ही ठीक होने को बोला था।इसीलिये अपने बच्चे की सेहत के लिये प्रिया ने बाहर जाना कम ही कर दिया था, और आदित्य ने भी उससे कहीं चलने के लिये कहना लगभग बंद ही कर दिया था।पर आज आदित्य के बाहर जाने के प्रस्ताव पर प्रिया आश्चर्यचकित होते हुये बोली......


"क्या आदित्य आप जानते हो की मैं बाहर नहीं जा सकती। फिरभी आप मेरे साथ ये मजाक कर रहे है।"


"मजाक नहीं मैं सच बोल रहा हूँ। मैने माँ से बात करली है। आज दादा दादी और पोता तीनों घर पर रहेंगें और हम दोनों बाहर जायेंगे। "


"ठीक है फिर मैं जल्दी से माँ जी और पापाजी के लिये खाना बना देती हूँ। फिर चलते है । "


प्रिया ने अपने पल्लू को कमर में खोंसते हुये कहा।तभी प्रिया की सास ने कमरे में आते हुये कहा.....


" उसकी कोई जरूरत नहीं है बहू। आज हम भी बाहर का खाना घर पर मंगवाकर खायगें। "सासो माँ के आने से प्रिया ने कमर में घोंसा पल्लू निकाल कर उसे सर पर डालते हुये कहा....


" अरे नहीं मम्मी जी मैं बनाकर चली जाती हूँ। आप लोगों को बाहर का खाना पसंद नहीं है न। "


"नहीं बहू तुम्हारे हाथ का खाना खा - खा कर हम बोर हो गये है। इसलिये आजतो हम बाहर का खाना ही खायेंगे ।ये लो तुम्हारा तोहफा आजसे तुम ये पहना करो। और ये मुझे देखकर तुम जो घूँघट कर लेती हो वो करना बंद करो । "और अपने हाथों से कंगन उतार कर प्रिया के हाथों में पहनाते हुये बोली...."ये तुम्हे पसंद है न तो ये आज से तुम्हारे। "प्रिया कभी अपने हाथों में सजे कंगनों को देख रही थी तो कभी सासो माँ के बदले रूप को। तभी सासो माँ ने ताना मारा ....


"अब यूँ ही टुकर - टुकर देखती रहोगी कि पैर छू कर आशीर्वाद भी लोगी। "अपनी गलती का एहसास होते ही तुरंत प्रिया सासो माँ के पैरों में झुक गई। तो सासो माँ ने भी ढेरों आशीर्वाद से उसकी झोली भर दी। तभी आदित्य मुस्कराते हुये अपनी माँ से बोले .....


"और माँ मेरा गिफ्ट"?मम्मी जी ने आदित्य का कान पकड़ते हुये कहा.... "तुम्हे गिफ्ट नहीं ड्यूटी मिलेगी , मेरी बहू को घुमाने की और वो जो चाहे वो दिलाने की"अपनी माँ के हाथ से अपना कान छुड़ाते हुये बोले.... " जो आज्ञा माता जी, ये सेवक आपकी बहू की सेवा में हाजिर है। "


उनकी इस बचकानी हरकत पर सास बहू दोनों खिलखिला कर हंस दिये।प्रिया को तो जैसे आज सबकुछ मिल गया था। पति का प्यार सासो माँ का दुलार और तो और आज प्रिया को सासो माँ ने जींस भी गिफ्ट में दी थी ।


थोड़ी देर में ही प्रिया वही जींस पहन कर तैयार हो आदित्य के साथ घूमने निकल गई। आज जैसे मौसम भी प्रिया की खुशी में हल्की - हल्की फुहारों के साथ खुशी मनाते हुये रंगीन हो रहा था। प्रिया गाड़ी रुकवा कर उन फुहारों का हाथ फैलाकर आनंद ले रही थी, कि तभी आदित्य ने उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया। और गाल थप -थपाते हुये कहा.....


" यार तुम कितनी गहरी नींद में सोती हो। कब से तुम्हे जगाने की कोशिश कर रहा हूँ। पानी भी डाल कर देख लिया । पर तुम हो की उठने का नाम ही नहीं ले रही। बस मुस्कराऐ जा रही हो। उधर मम्मी जी भी कब से चाय के लिये आवाज दे रही हैं । "


प्रिया की एक झटके में आँख खुल गई और नींद से जागते ही जैसे वो अर्श से फर्श पर आ गिरी। आज उसकी शादी की सालगिरह तो थी पर उसने जो खुशी महसूस की थी , वो एक सपना था। वो सोने के कंगन, वो जीन्स ,आदित्य का उसे बाहर ले जाना, वो सब प्रिया ने एक झटके में खो दिया।


'पर सपना बहुत अच्छा था' ये सोचकर प्रिया ने मुस्कराते हुये आदित्य को बधाई दी और सर पर पल्लू ओढ़ अपने कामों में लग गई।



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