अर्धांगिनी हो तुम मेरी
अर्धांगिनी हो तुम मेरी


"अरे मनन किचन में तू ये क्या कर रहा है बहु कहां है अभी तक उठी नहीं है क्या।" मनन की माँ कान्ता जी ने कहा तो मनन बोला, " मां उसको बुखार था तो सो नहीं पाई रात भर सुबह ही आंख लगी है मैंने सोचा सोने दूं आराम मिल जायेगा।आज चाय मैं ही बना लेता हूँ....मां ये लीजिये अपनी चाय।"
"चाय पीनी थी तो मुझे बोल देता तूने क्यों बनाई बेटा अच्छा नहीं लगता कि मां और बीबी के होते हुये तू किचन में काम करे।कोई देखेगा तो क्या कहेगा कैसी पत्नी है गीतिका अपने पति से काम करवाती है।"मनन की माँ ने कहा
मनन हाथ में चाय की ट्रे लेकर अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुये और हंसते हुये बोला - मनन अपनी माँ और बीबी से बहुत प्यार करता है यही कहेगें लोग मां और कुछ नहीं।कमरे में पहुंचा तो गीतिका जाग चुकी थी।अपने पति के हाथ में चाय की ट्रे देखकर वो हैरानी से उठी और बोली,
" मनन जी आप चाय क्यों लेकर आये मुझे बता देते मैं ले आती।"
"क्यों मैं ले आया तो क्या हुआ दो महीने हो गये हमारी शादी को रोज सुबह हाथ में चाय की ट्रे पकड़े तुम मुझे जगाती हो आज तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है तो आज का काम मेरा।डियर धर्मपत्नी जी आज आपके पतिदेव ने ऑफिस से छुट्टी ले ली है आज हमारी डयूटी आपकी सेवा में आज आप पूरा दिन आराम करेंगी नो काम धाम।मैं सबकुछ सम्भाल लूगां।"
"नहीं मनन जी चाय बना ली वही बहुत है मैं बस अभी जाती हूँ किचन में नाश्ता बनाती हूँ आप ऑफिस जाइये।मम्मी जी क्या सोचेंगी।" गीतिका कहते हुये आगे बढी़ तो मनन ने हाथ पकड़ कर रोक लिया और कहा
" अर्धांगिनी हो तुम मेरी तुम्हारा ख्याल रखना फर्ज बनता है मेरा जैसे तुम मेरे छींकने पर भी परेशान हो जाती हो तो तुम्हारे बुखार आने पर मैं क्यों परेशान न हूं।तुम कितना ख्याल रखती हो हमेशा मेरा तो मुझे भी तो तुम्हारा ख्याल रखना होगा।जीवनसाथी है हम डियर वाइफी बराबर का रिश्ता है हमारा हमारे रिश्ते में सबकुछ बराबर होगा -गुस्सा ,प्यार, परवाह ,रूठना ,मनाना, फर्ज,अधिकार और जिम्मेदारी सब कुछ बराबर और सुनो हर परिस्थिति में कदम से कदम मिलाकर चलना है हमें एक दूसरे का हाथ थामकर।कभी अकेलापन महसूस नहीं होने दूंगा तुम्हें सात फेरों और सात वचनों के साथ लेकर आया हूँ इस घर में।अच्छा चलो अब मैं नीचे जा रहा हूँ कुछ नाश्ता बनाने तुम रेस्ट करो।"
मनन चलने लगा तो गीतिका ने पीछे से आकर उसे बाहों में भर लिया और कहा, " मनन जी थैंक्यू मेरे जीवन को इतना प्यारा बनाने के लिए और दुनिया के सबसे प्यारे इंसान से मिलवाने के लिए।मैं बहुत खुश हूँ जो आप मेरे जिंदगी में आये।थैंक्यू फॉर एवरीथिंग।"
"अब ज्यादा तारीफ मत करो इतनी तारीफ सुनने की आदत नहीं है मुझे।" मनन कहते हुये नीचे चला गया।
जब मनन की माँ ने देखा कि गीतिका अभी तक नीचे नहीं आई है और मनन नाश्ता बना रहा है तो वह बोली ," मनन तुम अपनी बीबी को सर पर चढ़ा रहे हो अब तुम बीमारी में कर रहे हो फिर वो तुमसे ही काम करवायेगी।"
"नहीं मां आप गलत सोच रही हैं गीतिका कितना ख्याल रखती है मेरा और आपका इतने दिनों से देख रहे हैं हम आज अगर हम उसकी परेशानी में उसकी परवाह नहीं करेगें तो कौन करेगी।रिश्तों में इतनी बराबरी तो होनी चाहिए ना मां।मैं तो कहता हूं आपको भी जाकर हालचाल पूछना चाहिए उसका और थोडी़ परवाह भी होनी चाहिए जैसे मेरी होती है वो भी तो मेरी अर्धांगिनी है।"
बेटे की बात सुनकर मां ने मुस्कराते हुये कहा,"चल मैं बनाती हूं नाश्ता तू हट तू तो सुनने वाला है नहीं मेरी तू जा अपनी अर्धांगिनी के पास ,वहीं लेकर आती हूँ नाश्ता।"