anuradha chauhan

Drama

5.0  

anuradha chauhan

Drama

अपशगुनी

अपशगुनी

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आज सुबह-सुबह फिर से इस मनहूस का चेहरा देख लिया सारा दिन बेकार जाएगा ! बड़बड़ाते हुए मीना ने माला हाथ में ले राम-राम जपने लगी।

काहे नाराज हो रही हो मीना ? काहे मुँह फुलाए हो ?

अरे काकी का बताएं !बिन्नू की बहू से कित्ते दाएं कह चुके ! सामने न पड़ो करो !

पर पौ फटते ही सबसे पहले आँगन ही बुहारेगी ! रोज थोबड़ा दिखाएगी,अपशगुनी कहीं की !

तो तू का चाहती है ?

चली जाए यहाँ से और का,ठेका नहीं लिया है ज़िंदगी भर पालने का !आते ही पति को खा गई कलमुँही !

मीना ! थोड़ा सोच-समझकर बोला कर !बहू है तेरी ! तू साठ की हो गई ? पंद्रह-बीस और जिएगी !

कभी इंसान बनकर तो सोच पगली ! बहुरिया अब्बे बीस एक बरस की होगी ? किसके सहारे जिएगी ?

अपने से सोची कभी ! बिन्नू के बाप को गए तीसरा बरस है ! जै सब बातें तोये शोभा नहीं देत,हम गाँव वाले तोसे अपशगुनी कहें तो ? सुबह-सवेरे चौतरें पे बैठ तुम हमाओ सबको दिन खराब करती हो !

अरे हम तो अँगूठा छाप ठहरे !तो भी अपने को बदल रहे हैं।ज़माने के साथ चल रहे हैं !तू तो आठवीं पास है फिर भी ?

माफी दे दो काकी ! कबहूँ जै नजर से सोचवे ही नहीं करें ! बस बेटे को खोने की पीड़ा बहू पे निकालत रहे !

हमाईं आँखें खोलन के लाने तुमारो आभार काकी ! बेटा तो देश के लिए शहीद हुआ !हम रोज बहू को तिल-तिल कर मारत रहे ! मीना की आँखों से आँसू गिरने लगे।

माई ! ! कछू खा पी लेओ आके ! ! भीतर से मुँह ढाँके गंगा ने आवाज लगाई।

आई बिटिया !अब्बे आई ! तनिक विमला काकी के लिए भी चाय-पानी बनाए लियो ! चलो काकी भीतर चलो ! मीना ने काकी का हाथ पकड़ा और अंदर चल दी।


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