अपनी अपनी बरसात

अपनी अपनी बरसात

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बरसात एक अनोखी प्राकृतिक घटना है। कहीं गम लाती है तो कहीं खुशी। एक कवि ने कहा है "बरखा रानी ज़रा झूम के बरसों"। तो कोई कवि कहता है "टूट टाट टपकत घर खटियो टुट, पिय के बांह उसिसवा तो धन की लुट"।

अपनी अपनी सोच, अपनी अपनी बरसात। शहरों में भी हम पहली बरसात को जश्न जैसे मनाते हैं, क्यूँ ना भला पीने का पानी तो बरसात से ही मिलता है, और वो किसान भी जाने कितने देवी देवता मनाया था, अन्न उगाएगा तो देश का पेट भरेगा।

तो समझिये जश्न के इस माहौल में एक जश्न हमारे चौकीदार चाचा के घर चल रहा था। उनकी लड़की की शादी थी, पर बारिश ने जो कहर बरपाया, उनका घर घिर गया और जिस वक़्त कन्यादान होना था, मातम और चीख पुकार मची हुई थी। बारिश ने सब छिन लिया था।

बरसात के इस जश्न मे एक दुविधा में बगरू फल वाला भी था। वो पूरी रात सोया नहीं, की अगर कल भी बारिश बंद ना हुई तो परसों गृहस्थी कैसे चलेगी ? उसका घर भी आधा पानी में डूब चुका है, कब तक छत पर शरण लिए रहेंगे।

बस ऐसे ही है, अनुभव अनुभव की बात है कहीं बारिश तपती गर्मी के बाद असीम आनंद लेकर आती है तो कहीं दुःख भरे पहाड़ जिसके नीचे जीना मुश्किल होता है। नसीब अपना अपना, बरसात अपनी अपनी।


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