अपने आदर्श शिक्षक को समर्पित
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जीवन में शिक्षक का अति महत्वपूर्ण स्थान है मनुष्य के जीवन को उद्देश्य पूर्ण और मूल्यवान बनाने में शिक्षक की भूमिका अति महत्वपूर्ण भूमिका है शिक्षक की स्थिति समाज में सदैव सर्वोपरि रही है। माँ बाप अपनी संतानों को जन्म देकर बोलना चलना और रिश्तों नातों से परिचित करवा देते है परंतु शिक्षक समाज की व्यापकता समय की सार्थकता व्यवहारिक और सांस्कृतिक समन्वयता संस्कारों के गुणवत्ता से परिचित ही नहीं करवाते वरन एक पौधे को विशाल वृक्ष बनाने में अपनी दक्षता योग्यता के अथक परिश्रम से सिंचित करते है।
हर मुश्किल थपेड़ों से लड़ने के लिये सबल सक्षम बनाते है। अतः ईश्वर से ऊपर दर्जा प्राप्त है शिक्षक को जो मनुष्य के जीवन का मार्ग सृष्टा होता है और गुरु पद पर सुशोभित होता है। कदाचित कही भ्रम की स्थिति भी है की गुरु वह होता है जो मनुष्य को उसके अन्तरात्मा में सुसुप्ता अवस्था में पड़ी आत्मीय बोध क परम् शक्ति ईश्वर का साक्षात्कार कराता उसे मोक्ष का मार्ग दिखता है शिक्षक सिर्फ लौकिक भौतिक शिक्षा प्रदान करता है जो मनुष्य
के जीवन में उसके जीवन शैली, आचार व्यवहार आचरण का आधार होता है गुरु। इसी प्रक्रिया की पराकाष्ठा का परम् सत्य है,
शिक्षक शिक्षा है तो गुरु दीक्षा है
शिक्षक प्रेरक है तो गुरु प्रेरणा है
शिक्षक ऊर्जा है तो गुरु उत्साह का प्रकाश है शिक्षक सर्वोत्तम है। तो गुरु उतिकृष्टम उत्कर्ष है शिक्षक उल्लास है तो गुरु उमंग की तरंगों का सोपान है यानि गुरु और शिक्षक में मौलिक भेद संभव नहीं है। भारत वर्ष में जब शिक्षा की गुरुकुल प्रथा थी तब शिक्षक ही गुरु होता था महाभारत में गुरु द्रोण ने सभी पांडवों और कौरवों को अस्त्र शास्त्र की शिक्षा दी थी, साथ ही साथ जीवन मूल्यों की दीक्षा भी दी थी अतः आचार्य द्रोण शिक्षक और गुरु दोनों ही थे शिक्षक जीवन का आदर्श ही होता है। हो सकता है की शिक्षक के व्यक्तिगत जीवन में कुछ ऐसे भी पहलू हो जिनको आचरण में उतारना गौरव पूर्ण न हो इसका तातपर्य यह कतई नहीं की शिक्षक सर्वोत्तम नहीं है। विद्यार्थी का परम कर्तव्य है की वह शिक्षक की शिक्षा को आत्म सात करे उसके व्यक्तिगत व्यक्तित्व का गौरव और उपयोगी पहलू ही विद्यार्थी के लिये अनुकरणीय होती है। शिक्षक आदर्श भाव का प्रतिनिधित्व करता भौतिकता और लौकिकता का जीवन मार्ग दाता होता है जबकि गुरु भौतिक जगत के प्रारब्ध का मूल श्रोत तो होता ही है, अध्यात्म और जीवन के तथ्य तत्व का व्यख्याता तथा जीवन जीवन आत्मा दिशा दृष्टि का यथार्थ बोध होता है। शिक्षक जीवन का सार है तो गुरु सत्य का जीवन मार्ग प्रकाश आज की दुनिया में जहाँ भौतिकता की प्रधानता है और गुरुकुल परम्परा समाप्त हो चुकी है तब शिक्षा और शिक्षक का सम्बन्ध सिर्फ व्यावसायिकता के आधार का मूल्य ध्येय बनकर रह गया शिक्षक अपने मूल कर्तव्यों को पराकाष्ठा पर प्रति स्थापित करते, संभव है नए माप दण्ड की स्थापना कर एक शिक्षक के तौर पर स्थापित हो और समाज समय
का मार्ग दर्शन करने में सक्षम हो। आज के समय में आदर्श शिक्षक का मिलाना मुश्किल है क्योंकि मूल्यों का इतना ह्रास हो चूका है की आदर्श का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है।
मैकाले की शिक्षा निति के चलते कान्वेंट सभ्यता का उद्भव विकास और रिश्तों में व्यावसायिकता की संस्कृत ने जड़ जमा लिया है। ऐसे में शिक्षक का आदर्श होना या आदर्श शिक्षक को प्रमाणित परिभाषित करना बहुत कठिन है। वह जमाना लगभग समाप्त हो चूका है की माँ बाप अपनी संतानो को उँगली पकड़ कर शिक्षा के मंदिर मंदिर के पुजारी को निश्चिन्त भाव से सौंप आते थे की शिक्षक उनकी पीड़ी को बुनियादी रूप में एक सशक्त योग्य उपयोगी
ज्ञान गुण संपन्न पुरुषार्थ बनाकर समाज में प्रस्तुत करेगा ऐसा होता भी था आज भी कहीं कभी कभार देखने को मिलाता है। जो अवशेष या शेष बची परम्परा का प्रतिनिधि मात्र है। हमारे लिये आदर्श शिक्षक आज भी जीवन के कठिन चुनौतियों में मार्ग दर्शन करते है या उनकी शिक्षा की बुनियादी ताकत संघर्ष
और सफलता की छमता प्रदान की है। माँ अगर पहला शब्द बोलना सिखाती है जन्म देकर अपने दूध का औलाद फौलाद बनती है तो पिता समाज राष्ट्र की
सच्चाई का दर्पण दिखता है और उन मंदिरों में ले जाता है जहाँ से एक शिशु में विकास के समग्र परिवेश परिस्थितियाँ विद्यमान रहती है शिक्षा का मंदिर भी एक है जहाँ से शिक्षा का प्रारम्भ और आदर्श के अस्तित्व का प्रादुर्भाव होता है। वहीं शिक्षक एक बालक को तराश कर समय समाज और उसके स्वयं के लिए उपयोगी बनाता है। मेरा आदर्श शिक्षक वही है जिसने एक चिकित्सक की तरह मेरी दुर्गुण रूपी बीमारियों की कठोरता से चिकित्सा की, मेरा आदर्श शिक्षक वही है जिसने दर्द और जख्मो पर तीखे मरहम लगाकर जीवन में संघर्ष सयम संकल्प का बीजारोपण किया मेरा आदर्श शिक्षक वही है जिसने मर्यादित आचरण धैर्य और द्वेष दम्भ घृणा से मुक्त जीवन मूल्य का मार्ग दिखाया वास्तव में आदर्श शिक्षक वही है, जो इन्हीं मूल्यों को अपने आचरण शिक्षा संस्कार से अपने प्रत्येक विद्यार्थी में विकसित कर उसे मूल्यवान उपयोगी मानव में परिवर्तित करता है।