अपनापन
अपनापन
अपनापन एक ऐसा एहसास है जो दिल में अपने आप ही आ जाता है, ये किसी के लिए भी आ सकता है फिर चाहे सामने वाला कोई सगा हो, पराया हो, अनजान या अजनबी हो। उसी अपनेपन के चलते हुम् अनजान लोगों को अपना जीवन साथी चुनते हैं, किसी अनाथ को अपने संतान संतान के रूप में स्वीकार करते हैं, ससुराल में अपने जन्म दाता माता-पिता के रूप को सास-ससुर को अपनाते हैं, ये अपना पन जब तक नहीं आता हम हर एक रिश्ते में उलझे रहते हैं, उनकी परिभाषा नही मिलती।
जब हम छोटे बच्चों को देखते हैं, उनकी मुस्कुराहट हर एक के लिए एक सी होती है। न कोई अपना न पराया, ये तो हम बड़े होने के बाद जान पाते हैं। बच्चों का जी रूप होता है वो बड़े से बड़े तनाव में भी मन को शांति देता है। बहुत कम लीग होंगे जिनको बच्चे पसंद नही। एक परिवार में बच्चे का आगमन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, कहते हैं ना के वैवाहिक जीवन के ख़ालीपन और घर मे क्लेश को दूर करने में एक नन्हे से बच्चे का बहुत बड़ा योगदान रहता है। कुछ टूटे हुए रिश्ते भी संवर जाते है।
आज यहां मैं आप सबको मालती की कहानी सुनाने जा रही हूं जिसको अपने ससुराल में अपनेपन की अजीब सी भेंट मिली। वो है तो सबकी अपनी लेकिन अपनेपन का स्नेह और सम्मान उसे नही मिला।
शादी के ढेढ़ साल बाद मालती ने ममता की चौखट पर कदम रखा। उसे मातृत्व का वो अद्भुत एहसास हुआ जिससे बीती हुई सारी दर्द भरी यादें धुंदली पैड गयी। दोनो पति-पत्नी बहुत ही खुश और उत्सुक थे, घर-परिवार में भी सबकी खुशी का ठिकाना न था। उनके घर एक नन्ही सी गुड़िया ने जन्म लिया, इसका रूप बहुत हीं मनमोहक था, उसकी एक नज़र एक हरकत पे सबकी झोलियाँ खुशियों से भर जाती। मानो सबकी जान समाई हो उसमे। दिन कैसे बीतने लगा ध्यान ही नही रहा। देखते-देखते वो एक साल की हो गयी। कुछ महीने बाद सहारा लेते लेते उसने लड़खड़ाते हुए चलना भी सीख लिया।
एक रोज़ की बात है, मालती के ससुराल में बहुत भीड़ थी। ननंद-नन्दोई, चाचा-चाची सब आये हुए थे। सबकी नजरें बस उस नन्ही परी 'अमायरा' पर टिकी हुईं थी। सबका मन आनंदित था, उसके खेल में सब ऐसे शामिल हुए मानों सब उसकी तरह बच्चे बन चुके हों। मालती रसोई के काम में व्यस्त थी, उसका भी मन करता कि वो उन पलों को जिये मगर वो उस घर की बहू है, वो बैठ जाती तो बात कहीं और पहुंच जाती। उसके कानों में सबकी आवाज़ जा रही थी। सब अमायरा को मेरी बच्ची- मेरी बच्ची के कर पुचकार रहे थे।
थोड़ी देर बाद मालती को उसके ननंद ने आवाज़ लगाई- ' भाभी जल्दी आओ अमायरा ने सौच कर दिया है'।
मालती अपना काम छोड़कर रसोई से आगयी उसने देखा उसकी ननंद ने बच्ची के हाथों को पकड़ रखा था ताकि वो कुछ और गंदा न करदे। सास ने कहा जल्दी इसको साफ कर दे , अब हम में से किसी की आदत नहीं रही वरना कर देते। इस बात पे मालती को बहुत बुरा लगा, ननंद ने भी कहा हमारे बच्चे तो बड़े होगये हैं , अब आदत कहाँ हैं, मालती कुछ कहे बिना वहां से बच्ची को लेकर चलीगई और उसे साफ सूतरा कर वापस ले आयी। फिर से सबने अमायरा के साथ खेलना शुरू कर दिया, फ़िर से वही लाड़ मेरी बच्ची-मेरी-मेरी बच्ची कहते थक नहीं रहे थे। फिर अपनी बच्ची का सौच साफ करने में आदत की ज़रूरत कहाँ पड गयी ? उसके मन में बहुत से सवाल आये, अचानक उसको वो दिन याद आया जब वो अपने मायके गयी हुई थी, उसकी पुरानी सहेली मिलने आई थी, बातों में वो इतनी खो गयी थी कि उसका ध्यान अमायरा पे नही था और उसने सौच कर दिया था, मालती की मम्मी ने अमायरा को तुरंत साफ करदिया और उसके साथ खेलने लग गई। कुछ देर बाद मालती की सहेली चली गई तो उसने अमायरा की तरफ देखा और उसके साथ व्यस्त होगयी। उस दौरान उसने अपनी मम्मी से पूछा के अमायरा तो हमारे पास ही खेल रही थी फिर आप उसे वहां से क्यूं ले आयी? उसकी मम्मी ने हस्ते हुए कहा तुम तो खो गयी थी बातों में अमायरा ने सौच कर दिया था, इसीलिए मैंने उसे ले लिया। मालती ने कहा मम्मी मुझे बुला देती मैं साफ कर देती, इस पर उन्होंने कहा - क्यों अमायरा मेरी बच्ची नहीं है क्या? नातिन है , जन्म के वक़्त तुमने नहीं बल्कि मैंने उसे साफ किया था, यहां थी तब भी करती थी, अब थोड़ी सी बड़ी होगयी तो क्यों न करूँ? उसे देखते ही मुझे तेरी बचपन याद आ जाती हैं। ऐसे ही तुझे भी साफ़ किया करती थी।
प्रेशर- कुकर के सिटी की आवाज़ से मालती को ध्यान आया के वो ससुराल में है, और सबका खाना अभी तक बना नही है, वो कहीं खो गयी थी जैसे। मन ही मन उसे अनेपन के सही एहसास का पता चला। जहाँ अपनापन होता है वहां किसी के आदत की कोई बात ही नही उठती, मन में कोई घृणा नहीं आती। हाँ लगाव है जो अपनेपन की आड़ में छुपकर बैठा है।
अब से मालती लोगों के अपनेपन की भावना और बस एक लगाव की भावना को बखूबी समझने लगे गयीं।