अपना अपना फर्ज़
अपना अपना फर्ज़
आकाश में काले काले बादलों की घुमड़ आकाश की तरह लीना के मन में भी गंभीर घोष कर रहे थे। मन का द्वंद भी गर्जना के बाद हुई वर्षा की भांति उसकी आंखों के रास्ते बहने लगा। सारी परीक्षाएं उसे ही देनी है उसकी व्यथा का कहां अंत है, यह सब सोचते-सोचते लीना की नजर सोती हुई काव्या पर गई जिसके आंसूओं के निशान उसके गाल पर अभी भी थे। यह निशान लीना के हृदय को भेद कर उसका कष्ट और बढ़ा रहे थे।
छोटी सी काव्या जो अभी संसार में रिश्ते नाते समझने की उस उम्र पर आई थी कि जहां उसे क्या पता कि पिता का ना होना और होना क्या होता है। नन्ही जान को तो बस यही पता था कि हर किसी के पास माता-पिता होते ही हैं। लीना आज भी उस दिन को नहीं भूली है जब एक साल पहले उसके पति मेजर राजवीर का फोन आया था। वे उन दोनों सुचेतगढ़ जम्मू के सांबा सेक्टर पर तैनात थे। लीना को बता रहे थे कि यहां कुछ आतंकवादी गतिविधि दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और वह थी उन्हें उलाहना दिए जा रही थी कि वह अगले सप्ताह घर आना ना भूलें, काव्या का जन्मदिन जो आने वाला था। काव्या को अपने पापा से गुड़िया चाहिए थी।
राजवीर ने कहा कि वह आने की पूरी कोशिश करेंगे पर इस समय वह अपने वतन पर मंडराते संकट के बादलों से अपने देश को मुक्ति दिलाना चाहते हैं।
लीना को कहां पता था कि वह वार्तालाप उन दोनों का परस्पर किया हुआ अंतिम वार्तालाप साबित होगा। राजवीर शहीद हुए थे अपने कर्तव्य निष्ठा पर अपने प्राण निछावर करने में वह जरा भी नहीं चूके। राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी गई और अब रह गई थी राजवीर की यादें जिसने तो पूरे परिवार की नींव हिला दी थी। माता-पिता का इकलौता पुत्र, लीना का जीवन संबल और काव्या का पालनहार असमय काल के गाल में समा गया था।अब आकाश लालिमा युक्त हो गया था चिड़ियों की चहचहाहट ने लीना को वर्तमान में ला दिया।
प्रात:काल होने वाला था परंतु उसे अपनी समस्या का समाधान नहीं मिल रहा था। आज काव्या के विद्यालय में फादर्स डे मनाया जाना था जहां बच्चों को अपने पिता के साथ उपस्थित होना था। कल से काव्या ज़िद किए जा रही थी कि पापा को बुला लो। लीना हर तरह से काव्या को बहलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह शांत नहीं हो रही थी। शाम को रोती काव्या को दादी मंदिर में ले गई और कहने लगी, "देखो कन्हैया जी से कह दो वह तुम्हारे पापा को भेज देंगे।" काव्या के दादा दादी असमय बूढ़े हो रहे थे पर वे आज भी काव्या और लीना का जीवन संबल बने हुए थे। जब लीना ने राजवीर के जाने के बाद अपना साजो श्रृंगार छोड़ दिया और हल्के वस्त्र पहनने शुरू कर दिए तो एक दिन भरे गले से राजवीर के पिताजी ने उससे कहा ,"तुम इस प्रकार रहकर हम बूढ़ों का दुख और बढ़ा रही हो।"
उसकी ममतामई सास ने कहा ,"दुख से निकलो हम लोग आपस में एक दूसरे का सहारा बनेंगे।"पर वह आज क्या करें जैसे तैसे काव्या को भावुक मन से विद्यालय के लिए के लिए तैयार करा। घर से चलते हुए काव्या ने पूछा ,"पापा कहां हैं?"
दादाजी ने कहा ,"अपनी मम्मी को ले जाओ तुम्हारे पापा स्कूल में मिलेंगे।"
विद्यालय में बहुत रौनक थी सभी बच्चे चहक रहे थे काव्या बार-बार विद्यालय के गेट की तरफ जाकर अपने पापा को देख आती थी। लीना और उसकी क्लास टीचर उसकी बेचैनी को देखकर परेशान थे। तभी विद्यालय के प्रवेश द्वार से एक व्यक्ति फौजी वेश में आता दिखाई दिया काव्या अपने दोनों हाथ फैलाए उसकी और पापा कहते दौड़ी। पहले तो फ़ौजी अचंभित हुआ फिर मुस्कुरा कर उसने काव्या को गोदी में उठा लिया। काव्या फ़ौजी को अपने साथ कक्षा में ले गई। यह थे मेजर विक्रम जो रिलीफ फंड के संदर्भ में विद्यालय के प्रधानाचार्य से मिलने आए थे। वहां जाकर उन्हें पूरी बात समझ में आई।
वे पूरे कार्यक्रम के दौरान काव्या को गोदी में लिए बैठे रहे। आज काव्या को परम आनंद मिल गया था।
कार्यक्रम के अंत में प्रधानाचार्य के आग्रह पर उन्होंने कहना शुरू करा," एक आम इंसान को फ़ौजी तभी याद आते हैं जब देश लड़ाई की स्थिति में हो। जब आप घर में आराम से सो रहे होते हैं तब हम जवान सीमा पर चौकसी करते हैं। हमारे लिए तो धरती मां ही हमारा बिस्तर व खुला आसमान ओढ़नी होता है। जब आप परिवार के साथ बैठकर रोजाना स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहे होते हैं वही सरहद पर हम फ़ौजी रुखा सूखा खाकर अपने परिवार को याद करते हैं। चाहे भूकंप या बाढ़ ग्रस्त इलाका हर जगह मदद को हम हमेशा तैयार रहते हैं। भारत मां मेरी मां है यह सोचकर हर फ़ौजी अपना हर दिन गुजरता है। पर हम भी आखिर इंसान हैं सरहद पर आपका कोई नहीं है, तब भी आप सोचो जितनी भी जवान है वह सब आपके बेटे भाई हैं हर रोज़ अपनी प्रार्थना में उनकी सलामती की प्रार्थना शामिल करो।"
मेजर विक्रम की बातें सुनकर वहां लोगों की आँखें नम हो आई थी। अपनी बात को जारी रखते हुए उन्होंने फिर कहा," हम जवान शहीद हो जाए तो केवल कुछ दिन ही हमारी शहादत को याद करके हमें ना भूलें बल्कि हमारे बाद हमारे परिवार को भी अपनी ख़ुशियों में शामिल करें जिससे हमारे बच्चों को यह न लगे कि हमारे पिता का बलिदान व्यर्थ गया। जिस प्रकार भारत मां की सेवा हमारा फर्ज़ है उसी प्रकार हमारी कर्तव्य निष्ठा और बलिदान को सम्मान देना आपका फर्ज़ होगा।"