अपना अपना मतलब
अपना अपना मतलब
वह फुटपाथ पर बैठने वाले मोची को अपने टूटा जूता दिखाया।मोची ने जूतों को उलट पुलट कर देखा।फिर बोला ..बाबू जी इसके तले एकदम घिस गये हैं। नये तले लगा दुं?चालीस रूपया लगेगा।नहीं, नहीं?इसमे कील लगा दो या फिर सिल कर पहनने लायक बना दो।बस इतना ही करो।मोची ने कहां... क्या भैया जी,दोनों जूते के तले घिस गये हैं।दोनों जूते के तले सस्ते में लगा दुंगा।फिर आपको कम से कम छः-सात महीने तक जूतों की तरफ देखने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी।पर ,वह अपनी जिद पर अड़ा रहा...नहीं, केवल पहनने लायक बना दो।फिर,मन ही मन बड़बड़ाने लगा...कमबख्त इन जूतों को भी अभी टूटना था।जेब मे मात्र पचास रूपये हैं।तभी, मोची ने जूतों मे कीलें ठोकते हुए कहा,भैयाजी, ये पुराने टायरों के तले हैं, कभी नहीं घिसेंगे।मैं दोनों तलों को बीस-बीस रूपया मे लगा दुंगा और बाकी अपनी मजदूरी नहीं लूंगा।चालीस रूपया मेंआपके जूते एकदम मजबूत और नयी हो जायेगी।अरे नहीं, मुझे अभी जल्दी हैं, तले फिर कभी।अभी तो तुम इन्हें पहनने लायक ही बनाओ।उसने फिर दोहराया।मोची ने जूतों को ठीक कराने की एक अंतिम कोशिश की...भैया जी, इतने मजबूत तले इतने सस्ते मे कोई और नहीं लगाएगा।नहीं भाई नहीं, मुझे जूतों मे तले नहीं लगवाने हैं।इतना कहकर उसने जूतें पहने और मोची को बीस रूपया थमाकर आगे बढ गया।
वह सड़क पर चलते-चलते सोच रहा था। काश, जूते नहीं टूटते तो पूरे पचास रूपये मेरे पास रहते।अब ,तो मेरे पास तीस रूपया हैं।पचास रूपया रहता तो अच्छी-सी सब्जी आ जाती।अब तो तीस रूपया मे तो सस्ती सब्जी खरीदनी पड़ेगी।उधर मोची सोच रहा था कि--भैयाजी जूतों मे तले लगवा लेते तो चालीस रूपया मिल जाता,जिससे दो किलो आटा आ जाता।अब तो सिर्फ बीस रूपया मे एक किलो ही आटाआ पायेगा। पता नहीं आज का दिन ही कैसा रहेगा, भैयाजी को छोड़कर अब तक कोई ग्राहक ही नहीं आया।
