Dr Alka Mehta

Inspirational

4.0  

Dr Alka Mehta

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अनूठा नेग

अनूठा नेग

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वैभव की बस उसके गाँव जाकर रुकी तो उसने देखा की चौधरी साहेब जो उसके मामा हैं उसे लेने स्वयं बस स्टैंड पर आये थे। चौधरी साहेब की लड़की की शादी में शामिल होने वैभव गाँव आया था। वैभव शहर में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था। उसने जैसे ही हवेली में कदम रखा तो देखा की घर आँगन में चारों तरफ रौनक ही रौनक थी। मेहमानों, रिश्तेदारों से पूरी हवेली गूँज उठी थी। वैभव याद कर रहा था की शहरों के विवाह समाराहों में लोग होटल बुक करते हैं और शादी वाले दिन रिश्तेदार आते हैं, दूल्हा दुल्हन को तोहफे और नेग पकड़ा कर चले जाते हैं। गाँव में शादी की रौनक देखते ही बनती है। गाँव के बच्चे बूढ़े सभी किसी भी शादी विवाह को अपने ही घर की शादी मानते हैं। जहाँ शहरों में पड़ोसी अपने पड़ोसी का हालचाल नहीं पूछता वहीं गाँव में आपसी भाई चारे व अपनेपन की मिसाल देखते ही बनती है।

वैभव सभी रिश्तेदारों से मिलकर गाँव घूमने निकल पड़ा। गाँव में उसे असीम शांति महसूस होती थी। शहर के प्रदूषण से दूर गाँव की स्वच्छ वायु , गली के कुँए, गलियों में खेलते बच्चे, पेड़ों के नीचे गाँव के बुज़ुर्गों की चौपाल उसे सुखद अनुभव देते थे। वैभव गाँव की नदी के तट पर आकर खड़ा हो गया और बहती नदी के पानी का शोर सुनने लगा। दूर पहाड़ों पर हरे भरे वृक्ष एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे।

वैभव ने अपने मोबाइल से इस मनोरम दृश्य के चित्र खींचे और शहर में हॉस्टल के अपने दोस्तों को व्हाट्सप्प पर भेजे और फेसबुक पर भी अपलोड किये। घर लौटते लौटते शाम हो चली थी। घर पहुँच कर थके होने के कारण वह जल्दी सो गया। शादी समारोह कई दिन चलने से वैभव हर समारोह में शामिल होना चाहता था। अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गया। उस  दिन लड़की वालों को लड़के वालों के यहाँ नेग देने जाना था। अगले दिन पूरे गाँव का रात्रि भोज चौधरी साहेब के यहाँ था तरह तरह के पकवान बन रहे थे। गाँव वालों को न्यौता देना था। वैभव अपने हम उम्र भाई के साथ गाँव भर में न्यौता देने निकला, उसे बड़ा मज़ा आ रहा था। हर घर में लोगों ने उनका स्वागत किया और खूब आशीष दिए।

गाँव भर में न्यौता देते देते शाम हो गयी। घर लौट कर वैभव और उसके भाई ने जलपान किया। रात्रि भोज से पहले वैभव का परिवार इलाहाबाद से आ गया था। परिवार में छोटी बहन और माता पिता थे। रात्रि भोज में खूब चहल पहल थी। सबने छक कर भोजन किया और होने वाली दुल्हन जिसका नाम गुड़िया था को खूब उपहार और नेग मिले। जबतक सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी पड़ोस के घर से शैलेश दौड़ता हुआ आया और बोले की उसके पिताजी अचानक बेहोश हो कर गिर पड़े हैं, उन्हें तुरंत चिकित्सा की ज़रुरत है, वैद्य के पास ले जाना पड़ेगा। यह सब वैभव सुन रहा था। वह दौड़ कर अपने कमरे से अपने सामान में से स्टेथोस्कोप और कुछ प्राथमिक चिकित्सा की दवाएँ ले आया और शैलेश के साथ चल पड़ा। शैलेश के घर पहुँच कर वैभव ने उसके पिता जी को चेक किया और एक इंजेक्शन लगाया और कुछ दवाएँ खाने को दी। शैलेश की माँ और बहन लगातार रोये जा रही थीं। वैभव ने उन्हें हिम्मत रखने को कहा और वापस लौट आया। शैलेश की बहन छुटकी और वैभव की बहन गुड़िया पक्की सहेलियाँ थी। वैभव घर लौटा तो गुड़िया रट हुए बोली की अगर छुटकी के पिताजी को कुछ हुआ तो मैं शादी स्थगित कर दूंगी। वैभव बोले की वे ठीक हो जायेंगे।

करीब दो घंटे बाद शैलेश मुस्कराता हुआ हवेली में दाखि हुआ और वैभव से बोले की उसके पिताजी को होश आ गया है। वैभव ने कहा की उन्हें आराम करने दें और मेरी हिदायत अनुसार दवाएँ दें।

चौधर साहेब बड़ा गर्व अनुभव करते हुए बोले की वैभव मुझे तुम पर नाज़ है की तुम हमारे पड़ोसी की जान बचायी। अगर तुम न होते तो पता नहीं क्या हो जाता। गुड़िया अपने पिताजी की बात समझ कर मन ही मन एक संकल्प लेती है पर बताती किसी को नहीं। गुड़िया यह सुनकर बहुत खुश हुई की छुटकी के पिताजी ठीक हैं।

अगले दिन सुबह सुबह छुटकी अपनी माँ और भाई के साथ वैभव को धन्यवाद देने पहुंची। छुटकी की माँ ने वैभव को खूब दुआएँ दी। वैभव को एक गहन संतुष्टि का अनुभव हो रहा था। उसका परिवार व अन्य रिश्तेदार उसके इस कार्य से गर्व महसूस कर रहे थे। सभी दोगुने उत्साह से शादी की तैयारियों में जुट गए। हर दिन कोई न कोई शादी से जुड़ा कार्यक्रम होता था, किसी दिन माता की चौकी, किसी दिन मांगनी समारोह, किसी दिन महिला संगीत, किसी दिन मेहंदी समारोह रहा। लोग व्यवहार अनुसार तोहफे और नेग देते रहे।

अब आया शादी का दिन। सब कार्य सफलता पूर्वक निपटते रहे। शाम को गुड़िया दुल्हन के रूप में परी सी सुन्दर दिख रही थी उसका दूल्हा भी सुन्दर था ,जोड़ी बहुत सुन्दर थी। पूरे समारोह में छुटकी गुड़िया के साथ रही क्योंकि उसकी सहेली उससे बिछड़ने वाली थी। वह अधिक से अधिक समय उसके साथ बिताना चाहती थी। फेरों के बाद गुड़िया की तारों की छाओं में विदाई होनी थी। गुड़िया अपने रिश्तेदारों से गले मिल कर विदाई ले रही थी जब वैभव की बारी आयी तो गुड़िया वैभव के कान में बोली की लोक व्यवहार अनुसार मुझे लोगो ने विभिन्न प्रकार के उपहार और नेग दिए हैं पर मैं अपने भाई से एक अनूठा नेग चाहती हूँ। क्या आप दे सकोगे ? वैभव बोले मांगो बहन क्या चाहती हो मैं अवश्य दूँगा। गुड़िया बोली भैया मेरे मायके वाले गाँव में एक अस्पताल खुलवा दो और आप इस गाँव की एक डॉक्टर के रूप में सेवा करो। यह है एक बहन का अपने भाई से मनचाहा अनूठा नेग।


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