उसके सपने
उसके सपने
मनोज का कल जन्म-दिन है। उसे बहुत सारी तैयारियॉं करनी है। दोस्तों को बुलावा भेजना है। केक का ऑडर देना है। बाजार से पकवान लाने हैं। अपने लिए नई पोशाक लेनी है। घर की सजावट का सामान लेना है। कितना खुश है वो। मॉं -पिता जी से भी तोहफ़ा लेना है, उत्साहित सा वो सारा काम निपटा रहा है। मीठे सपनों में खोया मनोज। तभी एक लात पड़ी उस पर उसके मालिक की अबे उठ, काम कौन करेगा ?? सुन कर जल्दी से उठ कर कप प्लेटें धोने लगा, उसका सपना टूट गया था। मनोज किसी रेस्टोरेन्ट में बाल-मज़दूर था। उसका परिवार गॉंव में था। खेती से परिवार का पालन -पोषण नहीं हो पाता था। इसीलिए वो शहर आ गया कि मजदूरी कर के पैसा कमा सके। दिन भर काम में जुटा रहता था। रात ग्यारह बजे सो पाता था।
शहर की ऊॅंची -ऊॅंची इमारतें उसमें नए सपने जगातीं थीं। वो सपने देखने लगा था कि वो भी उन्हीं इमारतों का रहने वाला है। उनकी तरह जीता है, कपड़े.खाना-पीना उनकी तरह ही। शायद सपनों पर कोई कर नहीं है। क्या उसे सपने देखने का हक नहीं है, उसके सपने अधूरे रहेंगें क्योंकि वो एक बाल-मज़दूर है, उसके सपने समाज को कुछ कहना चाह रहे हैं, समाज से लापरवाही हुई है, अन्याय हुआ है, अगर आज समाज नहीं जागा तो उसके सपने दम तोड़ देगें और ये समाज हाथ मलता रह जाएगा ।
