मजबूरी
मजबूरी
सुमित्रा अपने मायके आकर बहुत प्रसन्न थी, उसके गर्भकाल का आठवां महीना चल रहा था और लोक रीती अनुसार लड़की की पहली संतान मायके में ही होती है। छह महीने पहले आकर यहीं की डॉक्टर के पास रजिस्ट्रेशन करवा गयी थी क्यूंकि मालूम था कि प्रसव मायके में ही करवाना था। डॉक्टर भी माँ कि जान-पहचान वाली थी इसलिए सुरक्षित हाथों में प्रसव होगा एक तसल्ली भी थी। माँ के घर देखभाल के लिए अधिक लोग थे यहाँ उसकी माँ-पिताजी, भैया-भाभी और उसकी छोटी बहिन भी थी। वहीँ ससुराल में केवल उसके सास-ससुर और ननद मीता थी। सास-ससुर बुढ़ापे में अपनी देखभाल कर लें बहुत है और मीता का सारा ध्यान अपने माता-पिता पर ही रहता था, ऐसे में अच्छा है सुमित्रा प्रसव के लिए मायके ही आ जाये उसके ससुराल वालों को कोई ऐतराज़ नहीं था। सुमित्रा के पति मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत थे, सास -ससुर सरकारी नौकरी से सेवानवृत्त हो कर पेंशन ले रहे थे और ननद मीता किसी बैंक में मैनेजर के पद पर थी यानी कि पैसों कि कोई कमी नहीं थी। मीता कि उम्र काफी हो चुकी थी पर इतने रिश्ते आने पर भी कहीं शादी के लिए राज़ी नहीं थी।
दिन-भर सास -ससुर कि देखभाल सुमित्रा को करनी पड़ती थी और शाम को उसके पति और ननद साथ-साथ ही घर लौटते थे फिर मीता घर संभल लेती थी। पर दिन-भर का गृहकार्य सुमित्रा को थका देता था। प्रसव-काल में थोड़ी थकान अधिक होती थी। इसलिए सुमित्रा अपने मायके में ही पहली संतान को जन्म देना चाहती थी जहाँ उस पर ध्यान देने वाले ज्यादा लोग थे।
सुमित्रा के मायके वाले सभी बहुत खुश थे। उसके परिवार में माता शुरू से ही गृहणी रही हैं, पिताजी बैंक के मैनेजर पद से सेवानवृत्त हो पेंशन ले रहे थे, भैया का आयात-निर्यात का व्यापार था, भाभी घर पर ही स्कूल के बच्चों कि ट्यूशन लेतीं थीं और छोटी बहिन इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ती थी। सभी परिवार वाले आने वाले नन्हे मेहमान के स्वागत की तैयारी कर रहे थे, रोज कभी कुछ खरीद कर लाते कभी कुछ जैसे किसी दिन झूला, किसी दिन बच्चे के कपडे, किसी दिन खिलौने, सुमित्रा का पूरा कमरा छोटे बच्चे के सामान से भरता जा रहा था और प्रसव का समय भी नजदीक आ रहा था। सुमित्रा के परिवार में एक बहस छिड़ गयी कि गुड्डा आएगा या गुड़िया पर वो इस बहस में शामिल नहीं थी वो और उसके पति कहते थे जो भी हो है तो अपनी संतान ही।
धीरे-धीरे नौवां महीना समापत हुआ और डॉक्टर के अनुसार अब कभी भी उनके घर खुश ख़बरी आने वाली थी। ससुरालवालों के भी फ़ोन आते रहते थे और वो सुमित्रा की खबर लेते रहते थे। अक्टूबर माह खत्म हो चूका था।
दो नवम्बर को सुमित्रा को प्रसव पीड़ा शुरू हुई उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, सभी अस्पताल चले गए उसके भैया उस दिन काम पर नहीं गए। डॉक्टर ने कहा सिजेरियन करना होगा और उसके माता-पिता से सहमति ले उसे ऑपरेशन-थिएटर ले गए। तीन घंटे पश्चात डॉक्टर ने बाहर आकर उन्हें मुबारक दी कि उन्हें नाती हुआ है। सभी खुश हो कर एक-दूसरे को मुबारक देने लगे और सुमित्रा के कमरे की ओर लपके। सुमित्रा सबसे मिल कर मुस्कुरा रही थी ओर नन्हा मुन्ना पलने में सो रहा था।
मुन्ने के पिताजी ओर दादा-दादी ओर बुआ कि भी बधाईआं मिल रहीं थीं।
दो दिन बाद सुमित्रा को अस्पताल से छुट्टी मिली। तब तक मुन्ने के पिताजी उससे मिलने आ गए थे।
अगले दिन से ही सुमित्रा ओर उसके मुन्ने को देखने के लिए दोस्तों, रिश्तेदारों का तांता लग गया।
एक सप्ताह तक यही सिलसिला चला। मुन्ने के पिताजी वापस लौट चुके थे। सुमित्रा ओर मुन्ने कि देखभाल के लिए उसकी माँ ने आया को बोलकर एक १४-१५ साल की एक लड़की रखी थी, जो मुन्ने कि देखभाल के लिए सुमित्रा के कमरे में रहती थी।
एक दिन सुमित्रा ने बाजार से कुछ मंगाने के लिए अपने पर्स से कुछ पैसे निकालने चाहे तो उसे लगा पैसे कम हैं जितने उसने रखे थे उतने नहीं हैं। वो कुछ बोली नहीं सोचा शायद गिनने में गलती होगी।
अगले चार-पांच दिन उसे लगा पैसे ओर भी कम हैं। अब उसे लगा कुछ गड़बड़ है कहीं ये लड़की तो उसके पर्स से पैसे नहीं चुराती है आया पर तो शक नहीं कर सकते कई वर्षों से माँ के यहाँ कार्यरत है। उसने ठान लिया कि चोर को रंगे-हाथों पकड़ेगी। फिर वो अगले दिन दरवाजे के पीछे से उस नई लड़की पर नज़र रखे रही पर उस लड़की ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसके पर्स से पैसे फिर भी कम हो गए उसने सोचा अब कौन हो सकता है। अब तो आया ही बची है खैर उसने उस पर नज़र रखी ओर दो दिन बाद असली चोर उसके पैरों में था। माँ के घर में काम करने वाली बहुत पुरानी आया। आया गिड़गिड़ाने लगी मुझे माफ़ कर दो दीदी ओर रोने लगी कहने लगी उसका पति बहुत शराब पीने कि वजह से बीमार है उसके इलाज के लिए दवाईओं के वास्ते पैसे चाहिए थे मैं मजबूर हो गयी थी। आप किसी को न बताना मैं आगे से ऐसा कुछ नहीं करूंगी
सुमित्रा ने सोचा इसकी मजबूरी की वजह से ही इसने चोरी की है वरना इतने वर्षों से इसने ऐसा कुछ नहीं किया इसे एक मौका देना चाहिए ओर फिर सुमित्रा ने उससे वादा लिया कि वो आगे से ऐसा कुछ नहीं करेगी।
सुमित्रा ने उसे बताया कि सरकार ने गरीबों के लिए आयुष्मान योजना बनायीं है जिसके अंतर्गत उसे मुफ्त इलाज कि सुविधा मिलेगी। आया बहुत खुश हुई और सुमित्रा को धन्यवाद देने लगी।
