Dr Alka Mehta

Others

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आज नकद कल उधार

आज नकद कल उधार

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सुधीर के पिताजी श्री राजेंद्र सक्सेना रिटायर होकर घर पर बैठ गए थे। उनको पेंशन भी आती थी, पर उनको सारे दिन खाली मक्खियाँ मारने जैसे लगता था। जब बैंक में कार्यरत थे तो सुबह घर से जाते थे, शाम को घर आते दिन भर दफ्तर में कार्य करके थक जाते थे। फिर उन्हें रात को अच्छी नींद आती थी, पर जबसे रिटायर हुए हैं उनका व्यवहार चिड़चिड़ा सा हो गया था। बात-बात में परिवार के सदस्यों से लड़ना, तुनक मिज़ाज हो गए थे। राजेंद्र खुद समझ नहीं पा रहे थे वो ऐसा बर्ताव क्यों कर रहे थे। रात को जल्दी नींद नहीं आती थी और सुबह जल्दी उठ जाते थे। कुछ साथियों से सलाह ली तो एक प्रस्ताव आया कि घर पर किराने की दुकान खोल लें , ऐसे वक़्त भी कट जायेगा और कुछ आमदनी हो जाएगी, खैर आमदनी की चिंता नहीं थी दोनों बेटे और उनकी बहुएं कमाते थे। समस्या थी उनका वक़्त नहीं कटता था बीवी से भी कितनी बातें कर लेते, परिवारवालों से परामर्श करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे की गेराज में किराने की दुकान खोल सकते हैं उनकी पेंशन के पैसों से निवेश करेंगे और एक दुकान खुल जाएगी ।

दीवाली के बाद दुकान खोलने का निर्णय लिया, गेराज में पुताई करवाई , कुछ लकड़ी की पट्टियाँ लगवायीं, एक बड़ा सा कांच का मेज जिसमें सामान रखेंगे, लाइट पंखा लगवाया, और सामान मंगवाया फिर एक निश्चित महूर्त पर पूजा आदि के बाद दुकान की शुरुआत हुई।

घर के बाहर एक सक्सेना किराने की दुकान का बोर्ड लगवाया।

सक्सेनाजी बड़े खुश थे की चलो कुछ व्यस्त हो जायेंगे और दुकान पर जा कर बैठ गए, सबसे पहले श्रीमती तिवारी आयीं और बधाई देने के बाद सामान की सूची सक्सेनाजी को दे कर बोलीं "घर भिजवा दें वहीं पैसे चुका देंगी।" फिर आया माथुर साहब एक सूची दे कर बोले "शाम को घर जाते वक़्त ले लेंगे।" सक्सेनाजी खुश थे मन में सोचने लगे चलो शुरुआत तो अच्छी हुई है।

वर्माजी का नौकर चाय-पत्ती और चीनी लेने आया। कुछ बच्चे स्कूल से लौटते वक़्त चिप्स के पैकेट ख़रीद कर ले गए, कुछ छोटे बच्चे टॉफ़ी, चॉकलेट ले गए और आपस में बतिया रहे थे कि अब टॉफ़ी चॉकलेट के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ेगा। सक्सेनाजी मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि चलो समाज सेवा समान ही कार्य किया है। दिन ढलते-ढलते थकान के साथ एक संतुष्टि महसूस हो रही थी। शाम सुधीर के आने पर उसे श्रीमती तिवारी का सूची का सामान उनके घर पहुँचाया वहां से लौटकर सुधीर बोला "श्रीमती ने कहा है अब उनकी दुकान से ही सामान लेंगी इसलिए उनके खाते में हिसाब लिख लें और माथुर साहब ने भी खाता खोलने के लिया कहा और चलते बने" सक्सेनाजी ने सोचा अपने गली मोहल्ले में इतना तो चलता है और दुकान बंद कर घर में आ गए।

अभी परिवारवालों के साथ शाम कि चाय पीने ही बैठे थे कि दरवाज़े कि घंटी बजी, दरवाज़ा खोला तो देखा कि जोगिन्दर मिस्टर सिंह का बेटा दुकान से सामान लेने आया था, सक्सेनाजी ने दुकान खोली और उसे सामान दे दिया उसने खाते में हिसाब लिखने को कहा और चला गया सक्सेनाजी कुछ न बोले कि गली मोहल्ले वाले हैं सुधीर ने कुछ कहना चाहा पर सक्सेनाजी ने उसे रोक दिया और फिर दिन भर के किस्से सब को सुनाने लगे। सभी परिवावालों ने देखा आज सक्सेनाजी बहुत प्रसन्न थे और थक गए थे।

उस रात उन्हें अच्छी नींद आयी और अगली सुबह वो सैर पर निकले और सैर से लौटकर झटपट तैयार होकर दुकान खोल कर बैठ गए। ग्राहकों ने दुकान खुली देखी तो सुबह से ही आने लगे और इस तरह दिन पर दिन सक्सेनाजी को आनंद महसूस हो रहा था और दुकान अच्छी खासी चल निकली थी।

दुकान से आमदनी भी हो रही थी पर खाता धारियों कि संख्या भी बढ़ रही थी जो सक्सेनाजी की चिंता का विषय था पर उन्होंने सोचा कि महीने के अंत का इंतजार करें। महीना खत्म हुआ।

अब सक्सेनाजी खातधारिओं से पैसे आने का इंतजार करने लगे पर नए महीने के भी सात दिन बीत गए पर किसी ने भी पैसे नहीं लौटाए अब उन्हें चिंता होने लगी थी कहीं महसूस करने लगे कि उन्होनें आ बैल मुझे मार वाली कहावत तो चरितार्थ नहीं कि है अच्छे भले घर पर बैठे थे क्या जुनून सवार हुआ

अपने घरवालों से बताया तो एक प्रस्ताव आया कि दुकान पर एक बोर्ड लगाएँ जिस पर लिखा हो 

आज नकद कल उधार, उन्हें ये बात भा गयी और उन्होंने सोचा जो हुआ सो हुआ अब आगे से ऐसा नहीं होगा और अगले ही दिन उन्होनें अपनी दुकान पर लिख कर लगाया कि "आज नकद कल उधार।" 



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