अंतहीन इंतजार
अंतहीन इंतजार
भयंकर काली अंधेरी रात तूफान आ रहा है , और मैं तूफान में फंस चुका हूं । मैंने देखा पास तो क्या दूर दूर तक कोई नहीं है मैं चीखना चाहता हूं , किसी को पुकारना चाहता हूं , लैकिन यह क्या मेंरे गले से तो आवाज ही नहीं निकल रही ।बस दिखाई दे रहे हैं तो आसमान में चारों ओर उड़ते वृक्षों के पत्ते ही पत्ते।तभी बिजली कड़कना शुरू हो जाती है और फिर मूसलाधार बारिश ।मैं बारिशों में बुरी तरह से भीग रहा हूं , थर-थर कांप रहा हूं , लैकिन टं पैर तो जड़वत् हो चुके हैं ।
तभी अचानक बारिश में सामने कौई २० कदम की दूरी पर श्वेत
आकृति सी दिखाई देती है मैं आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर उस आकृति को देखता हूं , वह किसी लड़की की है , और वह मुझे अपनी तरफ हाथों के इशारे से बुलारही है ।उसे देखते ही मेरी पांव की जड़ता समाप्त होने लगती है और मैं उसकी तरफ जाने लगता हूं ।अब वो मुड़ कर आगे की तरफ चल देती है , और यंत्रवत सा मैं उसके पीछे पीछे ।कुछ ही देर में हम दोनों एक पहाड़ी पर पहुंचते हैं ,जहां एक विचित्र सा लाल वृक्ष है , जिसकी डालियां इतनी लंबी लंबी है कि पूरी पहाड़ी को ही ढक रखा है ।
वह लड़की उस वृक्ष के नीचे रुक जाती है मैं उसकी तरफ देखते ही सम्मोहित सा हो जाता हूं ।
वह अपनी झील सी नीली आंखों से मेरी आंखों में देख रही है ।वह अपने हाथ की अंगुली से पहाड़ी के नीचे की ओर इशारा करती है । मैं पहाड़ी के नीचे झांकता हूं ।तांडव करती हुई एक भयंकर नदी बह रही है । पहली बार उस लड़की की आवाज निकलती है ।
गहरी गहरी सी आवाज कूद जाओ ।और मैं आज्ञाकारी बालक की तरह पहाड़ी पर से नदी में छलांग लगा देता हूं ।मेरी जबरदस्त चीख निकलती है ।
"क्या हुआ संजय क्या हुआ ?"मैरा रूम मेट और प्रिय दोस्त अमित मुझे हिला हाला कर पूछ रहा था । मैं पसीने से तर-बतर हो रहा था ।मैंने अमित की बैचेनी को तसल्ली देते हुए कहा ----"कुछ नहीं मैरे यार ,बस एक बहुत डरावना सपना देख रहा था , डर कर शायद चीख निकल गई ।"
यह सपना मुझे १० वर्ष की आयु से लगातार आ रहा है ।हर माह यह पूर्णिमा की रात को ही आता है ।कई बार मैंने यह कोशिश भी करके देख ली कि पूर्णिमा की रात
सोए ही नहीं ।लैकिन सब व्यर्थ , आंखें अपने आप बंद हो जाती है ।
मां मैरे इस सपने के लैकर बचपन से ही बहुत चिंतित है ।
न जाने कितने व्रत उपवास उन्होंने किये , न जाने कितने ताबीज उन्होंने मुझे बांधे , हनुमान जी से लेकर पीर बाबा तक सब जगह उन्होंने मेरी ढोक लगाई , प्रसाद भी बांटे , लैकिन सब व्यर्थ ।पापा तो मां की इन क्रिया कलापों का मजाक , बनाते थे अरे सपने तो आते ही रहते हैं । लैकिन मां तो मां ही होती है ना ।शिमला में मुझे पहुंचे हुए ज्यौतिष निरंजन दास के पास ले गई ।
एकांत कमरे में मुझे अपने सामने बैठाकर कईं देर नैत्र बंद करके बैठे रहे ।फिर उन्होंने मां को अंदर बुलाकर कहा-----
"आपके बच्चे को हजारों साल पुरानी आत्मा ने घेर लिया है ।
यह सपना हर पूर्णिमा को आयेगा , और २० वे साल में पूर्णिमा की रात को ही वो आत्मा आपके बेटे का बलिदान ले लेगी ।"
मां फफक कर रो पड़ी "कोई उपाय स्वामी जी ।"
"नहीं आत्माओं के विपक्ष में कहीं कोई उपाय नहीं ।बस , प्रभु का ही सहारा है ।"
मां ने बहुत मुश्किल से रूलाई रोकी ।स्वामी की फीस पूछी तो वो बोले ।नहीं आपके दुःख को भी हम खरीदें , इतने गिरे नहीं है हम ।
(मैं अवाक् स्वामी जी को देखता रहा , इसका मतलब अफवाहों ने इतनी भ्रांतियां फैला रखी हैं , पूरे एक का घंटे का महत्वपूर्ण समय हमें दिया और एक पैसा भी नहीं लिया )
वापिस आते समय मैंने स्वामी जी के चरण स्पर्श किये उन्होंने बड़े प्यार से सिर पर हाथ फैरकर आशीर्वाद दिया ।ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें ।
हमारी जे ई ई की प्रवेश परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। साल भर के अथक प्रयत्न से बहुत थकान हो चुकी थी और अब दिल और दिमाग दोनो ही विश्राम चाहते थे।
हम दोनों मैं और मैरा मित्र अमित देहरादून से कोटा कोचिंग के लिये आये हुऐ थे । और अब जा रहे थे वापिस अपने सुरम्य शहर देहरादून सुरम्य अति सुंदर अति लूभावना अति आकर्षकअपने घर पहुंच कर आनंद विभोर हो उठे हम। मां के हाथ के बने गरमा गर्म स्वादिष्ट व्यंजन वर्ष अंतराल के बाद मिले थे।कौन जाना चाहता है अपने घर से दूर। लेकिन जीवन में आगे भी तो बढ़ना है ना।खड़ खड़ खरड़ खरड
दो दिन बाद ही अमित आकर बोला। "संजय यार बहुत हो गया आराम । चलो अब कहीं भ्रमण को निकलते हैं।"
मैंने कहा ---- "हां ठीक है"
यहां की सांग नदी वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है । बहुत सुरम्य स्थल है ।वहीं चलते हैं मैंने मां से इजाजत मांगी ----"मां मैं और अमित घूमने जा रहे हैं। मां -----ठीक है लेकिन रात मत करना।"
मैंने कार की चाबी ली और चल दिये अपने गंतव्य स्थल की औरबहुत ही सुंदर स्थान। कल कल करती सरिता तरंगों की मधुर ध्वनिसुवासित प्रवाहित मंद मंद पवन दो स्फटिक दुग्ध धवल नदियों का संगम। अत्यधिक मनोरम दृश्य था। वापिसी का मन ही नही कर रहा था। अमित -----"अरे संजय देखो संध्या हो चली है। देर हो गई तो मां चिंतित होंगी।"
और हम वापिस घर की ओर चल पड़े। लेकिन रास्ते में ही रात हो ही गई। अरे यह क्या हुआ आकाश अनायास ही काली घटाओं से आच्छादित हो गया। सांय सांय करती तेज हवाऐं चलने लगी।वृ क्षों की टहनियां मदमस्त होकर झूम रही थीं । खड़ खड़ खरड़ खरड पत्तो की तीव्र ध्वनि सिहरन पैदा कर रही थी। तभी हवाओं ने तूफान का रूप ले लिया अब वृक्षों के पत्ते कार की लाइट में आसमान की ओर उड़ते नज़र आ रहे थे। बहुत भयंकर दृश्य था। दिन भर के मनोरम दृश्य अब छू हो चुके थे। और उनका स्थान ले लिया था इन भयभीत करने वाले दृश्यों ने। कार का संचालन भी अब डगमगाने लगाथा।
अमित -----"संजय हम शायद गलत रास्ते पर आ गये। देखो ना आगे ना पीछे किसी प्रकार का कोई भी वाहन नही। "
मैंने कहा ---- "हां अमित लेकिन हम गलत। रास्ते पर आ कैसे गये। सड़क तो वहीं थी। और तभी आसमान में जोर से बिजली कड़क कड़क की तीव्र ध्वनि के साथ चमकने लगी। कड़कने की आवाज इतनी भयंकर थी कि मानों आसमान हमारे ऊपर फट जायेगा।"
मैंने अमित से कहा --- "जरा मां को फोन करना।"
अमित -----"किसी को भी फोन नहीं लग रहा। "
मैंने कहा ले मैरे फोन से कर।
अमित ----"संजय नहीं लग रहा। ओफ्फोह अब हम क्या करें?"
"ओ ---यह तो हूबहू मैले सपने वाले दृश्य है।"
और तभी आसमान से मूसलाधार बारिश होने लगी। चर्रमर्र करके कार भी ऐकदम से रुक गई। उस वीराने में कार पर टप्प टप्प करती बौछारों की ध्वनि भयंकरता में बहुत वृद्धि कर रही थी। हम दोनों ऐक दूसरे को देखकर ही तसल्ली कर रहे थे कि तभी अमित चीखा ।
अमित-----"संजय देख देख सामने देख।"
कार के सामने ऐक छाया का आभास हुआ। तभी कड़क की आवाज से बिजली चमकी और उसकी चमक में हमने देखा कोई दस कदम की दूरी पर ही कोई श्वेत वसना स्त्री खड़ी हुई थी। इस वीराने में घनघोर बारिश में वो स्त्री।हमारी तो घिग्गी बंध चुकी थी और अब हमें धड़ धड़ धड़ धड़ अपने ही दिल की धड़कनों की आवाज सुनाई दे रही थी।साहस करके हम दोनो कार से उतरे। उसकी नीली सी रोशनी करती हुई आंखें अपलक मुझे देख रही थी।
अमित-----"भाग संजय भाग" अमित मैंरी बाजुओं को झंझोड़े जा रहा था।लेकिन मैंरे पांव तो जड़ हो चुके थे। बारिश में तरबतर मैं वहीं खड़ा रहा।और अमित मुझे अंतिम चेतावनी देकर कि तू खड़ा रह मैं तो अब चला और वो पीछे मुड़कर भागता हुआ चला गया
अब मैं अकेला रह गया था। वो छाया मुझे अपने पास बुला रही थी
मैं सहमा हुआ उसके पास गया। वो ऐक खूबसूरत छाया थी।
अब बारिश थम चुकी थी।मैंने उससे पूछा कौन हो तुम । उसकी आंखों से अश्रुधारा बह चली। वो इशारे से मुझे ऐक खंडहर की तरफ ले गई। अब वो बोल रही थी ।
"पहचाना इस खंडहर को ।आज से करीब तीन हजार साल पूर्व यह ऐक महल था। तुम ऐक संगीतज्ञ थे और मैं तुम्हारे संगीत में खो जाने वाली राजकुमारी मनमोहिनी लेकिन महाराज को हमारै बारे में ऐक गुप्तचर ने गलत जानकारी दे दी जिससे महाराज ने तुम्हे मृत्यु दंड दे दिया और मैंने इसी पहाड़ी पर से इसी नदी में कूद कर मैंने आत्म हत्या कर ली ।"
तब से मैंरी आत्मा भटक रही थी। अब तुम्हारा पुनर्जन्म देखकर तुम्हे देखकर मैं बहुत खुश हूं। अब मुझे मुक्ति मिल जायेंगी। अब मैंरा सर्वस्व कांप गया मैंने भी बैंगलोर की नाले बा वाली चुड़ैल के किस्से सुने हुऐ थे लेकिन मैं तो उन किस्सों को मात्र अफवाह मानता था। कहीं मैंरे साथ भी तो।
"नहीं नहीं मेरी मां मैरा इंतजार कर रही होगी। सुनो अब हम कल मिलेंगे तुम कल फिर इसी जगह आना। तुम आओगे ना। "
मैंने कहा -"हां ।"
वो अंतर्धान हो चुकी थी। और मैं जैसे तैसे लुढ़कता पुढ़कता कार में आकर सीट पर गिरकर बेहोश हो गया।जब मैंरी आंख खुली तो देखा सुबह हो चुकी थी। मां मैंरे सिर पर हाथ फेर रही थी। तो फिर वो सब क्या था।
पिताजी ने बताया अमित को ऐक ओटो मिल गया था। हम अमित को लेकर तुम्हे लेने पहुंचे तुम कार में बेहोश पड़े थे। मैंने अमित को पूरा किस्सा सुनाया ।तो अमित भी बोला वो वहीं चुड़ैल होगी। भाग्य था तुम्हारा जो उसने तुम्हे छोड़ दिया।
"नही मैं इन्हे सिर्फ अफवाह मानता हूं"
शाम होते ही मैं फिर बैचेन हो उठा। उसने मुझे आज वहां बुलाया है वो मैंरा इंतजार कर रही होगी। और मैं आंख बचाकर चुपचाप घर से निकल गया। हां वो वहां बैठी थी हम दोनो खुश होकर बातें करने लगे उसने मुझे पूर्व जन्म के किस्से सुनाये और मैंने इस जन्म के।"अरे बहुत देर हो गई अब तुम कल आना मैं तुम्हे कल फिर किस्से सुनाऊंगा।अब मैंनै ये बात किसी को नहीं बताई।"
अब हम उसी खंडहर में प्रतिदिन मिलने लगे।मैं तो उसे स्पर्श भी नहीं कर सकता था क्योंकि वह ऐक आत्मा थी। लेकिन मैं उसके साथ ऐक आत्मिक बंधन में बंध चुका था।प्रतिदिन मैं शाम होने का इंतजार करता और कोई ना कोई बहाना बना कर वहीं पहुंच जाता ।
हम प्रतिदिन सांझ को वहीं उसी टीबे पर ही मिलने लगे और सच तो यह है कि मैं उससे मिलने को अत्यधिक बैचेन रहने लगा था ।
अब मिलते मिलते आ गई वही पूनम की रात जिसमें अपना बलिदान देकर मुझे उसको मोक्ष दिलाना था।वो मुझे ऐक पहाड़ी पर ले गई जिसके नीचे प्रचंड नदी बह रही थी।
संजय क्या तुम इस नदी में कूदकर मुझे मोक्ष दिलाने के लिऐ अपनी जान देने को तैयार हो।
"हां मोहिनी ।"
और जैसे ही मैं कूदने को हुआ उसने कस कर मैंरा हाथ पकड़ लिया। अरे यह क्या उसके हाथों में मुझे पकड़ने की शक्ति कैसे आ गई।
मोहिनी ----"नहीं संजय नहीं मुझे क्षमा कर दो। अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिऐ मैं तुम्हे तुम्हारे परिवार से नहीं छीन सकती। तुम्हारे माता-पिता की आंखों में आंसू नहीं थे सकतीं मैं ।आज पूनम की रात को हमें स्पर्श की शक्ति प्राप्त होती है। तुमने इस जन्म में भी अपने हृदय की गहराई से ,अपनी अंतरात्मा से मुझे प्रेम किया। इसलिये मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो रही है। मैं अब जा रही हूं हमेशा के लिऐ।ईश्वर तुम्हे सारी खुशियां दे।"
और वो चली गई। लेकिन मैं प्रतिदिन उस जगह जाता रहा। शायद वो मुझे मिले।
इस घटना को ऐक वर्ष बीत चुका है। लेकिन जब भी मैं देहरादून जाता हूं। उस जगह उसी समय रोज जाता हूं।क इंतजार में" शायद अंतहीन इंतजार में

