अनोखी सपनों की दुनिया
अनोखी सपनों की दुनिया
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सपनों की दुनिया बड़ी हँसीन होती हैं। जहाँ सब कुछ बहुत रूमानी और तिलिस्मी होता है। हर इंसान सपने देखता है... सपने भी दो तरह के होते.. एक जो हम नींद में देखते हैं बन्द आँखों से... और दूसरा जो हम जागती आँखों से देखते हैं... जिसे कुछ लोग पूरा करने में जी जान लगा देते हैं, और कुछ उसे असंभव जान छोड़ देते हैं। कुछ के सपने जिम्मेदारियों तले मर जाते तो कुछ के अचेतन में रह जाते... जो अवसर पा फिर सिर उठा लेते हैं।
किसी ने कहा है कि सपने वो नहीं होते जो आप सोते हुए देखते बल्कि सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते। ये सच भी है....सपनों को इस दुनिया में पूरा करना आसान नहीं है। पर असंभव भी नहीं है ...
विभा के सपने भी कुछ इस तरह के थे जो असंभव नहीं थे। एक आम मध्यवर्गी वाला सपना। बचपन से उसे डॉ. का सफेद कोट बहुत आकर्षित करता था... खुद को जाने कितनी बार सफेद कोट में देख चुकी थी... पर माता पिता की पाँचवी संतान थी वो... जानती थी उसकी पढ़ाई का खर्चा इतना आसान नहीं है। साथ ही माता पिता की बेटों के प्रति आसक्ति भी जानती थी। पांच बेटियों और दो बेटे वाले माँ बाप की जान दोनों बेटों में ही बसती थी... पांचो बेटियां ये जानती थी की उन्हे आगे बढ़ने का रास्ता खुद ही बनाना है। बड़ी बहन टूयशन पढ़ाती थी... घर का काम भी पांचों लड़कियाँ मिल कर लेती थी... दूसरी बहन ने भी पार्ट टाइम नौकरी कर ली और अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाने लगी। इस साल विभा भी एक शॉप में सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी...और साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखी... मेडिकल के लिए खुद ही तैयारी कर रही थी... पिछली बार सेलेक्ट तो हुई थी पर प्राइवेट कॉलेज मिल रहा था... उसकी फ़ीस इतनी ज्यादा थी की उसने छोड़ देना उचित समझा। इस बार कोशिश कर रही की उसे सरकारी कॉलेज मिल जाये... माता पिता से उसे कोई उम्मीद नहीं थी...
विभा से छोटी दोनों बहन भी आगे बढ़ने के लिए प्रयास कर रही...दोनों भाई अभी छोटे है। भाइयों को तो सब कुछ अच्छा मिलता पर पांचों बहनों को खुद ही रास्ता बनाना पड़ता था । इस बार विभा के मेडिकल एंट्रेस के एग्जाम बहुत अच्छे हुए... रिजल्ट का इंतजार कर रही थी... पिता तो फिर भी थोड़ा बहुत लड़कियों को पूछ लेते थे पर माँ को अपनी लड़कियों में कोई गुण नहीं नजर आता....जबकि लड़कियाँ हर तरह से माता पिता की मदद कर रही थी।
रिजल्ट आया तो इस बार विभा की रैंक बहुत अच्छी आई... सरकारी कॉलेज मिल गया... पर और खर्चे। विभा ने पिता से बात की तो उन्होने असमर्थता दिखाई... कहाँ से पैसे लाऊंगा अभी तो तुम सब की शादी भी करनी है... पढ़ाई में खर्च करूँ या शादी में.. वैसे भी मेडिकल की पढ़ाई बहुत लम्बी है। विभा हताश हो गई कोई रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा था... पर उसने हार नहीं मानी। जिस शॉप में वो काम करती थी उसके मालिक एक सरदारजी थे। विभा ने उनसे बात की तो उन्होने कहाँ की वो उधार दे सकते है पर एक शर्त है छुट्टी वाले दिन उसे शॉप में आना पड़ेगा... विभा ने झट हाँ बोल दिया।
अब विभा ख़याली सपनों की दुनिया से यथार्थ के धरातल पर आ गई थी उसे अपने सपने पूरा करने के लिए जी जान लगा देना था... और लगाई भी... उन सरदार जी ने भी उसकी बहुत मदद की... बड़ी बहन ने भी उसका साथ दिया। पर दो साल बाद ही उसकी शादी हो गई... उससे मिलने वाली मदद बन्द हो गई... साल भर बाद दूसरी बहन की भी शादी हो गई। अब विभा का नंबर था.. पर विभा शादी नहीं करना चाहती थी माँ पिता की ज़बरदस्ती ने उसे घर छोड़ने को मजबूर कर दिया, कह सुन कर उसने हॉस्टल में जगह ले ली... पर विभा ने हार नहीं मानी... उसने खाली समय में टूयशन पढ़ाना शुरू कर दिया ... पांचवे साल में उसे समय नहीं मिलता था तो उसने सरदार जी से क्षमा मांग ली... पर सरदारजी अच्छे थे और विभा की लगन से प्रभावित भी थे। वे बोले कोई बात नहीं तू मत आ पर पैसे की जरूरत हो तो ले जाना। विभा का दिल भर आया एक माँ बाप हैं जिन्होंने हाथ खींच लिए... और एक ये सरदार जी हैं जिन्होंने उसका हर तरह से साथ दिया।
खैर विभा की लगन ने उसके सपने को पूरा कर दिया। जो उसने जगती आँखों से देखा था... आज वो डॉ विभा के नाम से जानी जाती है ..विभा का सफ़ेद कोट का सपना पूरा हो गया.. पर विभा के सपने की दुनिया में पति और बच्चों की जगह नहीं थी इसलिए उसने शादी नहीं की... पर मातृत्व की भावना तो थी... उसने अनाथ आश्रम से एक बेटा और एक बेटी गोद ले ली... और उनकी परवरिश और अपने मरीज में मन लगा लिया। एक दिन उसके पुराने सहपाठी का फ़ोन आया... उसने अपने नर्सिंग होम को ज्वाइन करने का रिक्वेस्ट किया। विभा ने ज्वाइन कर लिया... एक दिन डॉ. रजत ने उसे प्रपोज किया .. विभा ने मना कर दिया, अब उम्र नहीं है ये कह। पर रजत ने हार नहीं मानी... एक दिन कॉफी पीने के लिए बुलाया और विभा को फिर मनाया... विभा बोली मैं चालीस साल की हो रही हूँ और मेरे दो बच्चे भी है... अब क्या ये सब अच्छा लगेगा। विभा मैं भी इसे उम्र का हूँ मैंने भी उसी अनाथ आश्रम से दो बच्चे गोद लिए। पर अकेले जिंदगी नहीं चलती एक साथ की चाहत होती है ... मैं तो तुम को पढ़ाई के समय ही पसंद करता था पर कह नहीं पाया ... चारों बच्चे साथ रहेंगे। और जानती हो जिस शॉप में तुम काम करती थी वो मेरे दादा जी की थी। उनको तुम बहुत अच्छी लगती थी... तुम्हें अपनी पोता बहू बनाना चाहते थे ... ओह... सरदार जी कैसे हैं... अब वो नहीं हैं ... पर मैं उनकी ये इच्छा पूरी करना चाहता हूँ। और विभा मान गई... दूसरे सपने की दुनिया की शुरुआत हो गई....