अनोखी होली
अनोखी होली
बचपन से ही शुचि को होली का त्योहार बहुत अच्छा लगता था लोगों के रंग-बिरंगे चेहरे उसे आकर्षित करते थे उन्हें देखकर उसकी एक ही इच्छा होती थी कि वह भी खूब रंग खेले। शुचि तीन बहने थी और जहाँ वे रहते थे वहाँ केवल दो घर था एक उनका और एक डॉक्टर आंटी का। आंटी के बेटे कॉलेज में थे, शुचि और दोनों बहने क्रमशः पहली, तीसरी और पांचवी कक्षा में थे इसलिए उनके साथ होली खेलने का सोच भी नही सकते थे, वह दोनों भाई होली के दिन शुचि के घर जरूर आते और मम्मी- पापा को टीका लगाकर आशीर्वाद लेते और तीनों बहनो के गालो में गुलाल लगाकर हैप्पी होली कहकर चले जाते थे, और हिदायत भी देते कि तुम तीनो छोटे हो ज्यादा होली मत खेलना तबियत खराब हो जाएगी, तब शुचि सोचती काश भैय्या जैसे अपने दोस्तों के साथ पक्के रंगो की होली खेलते हैं हमारे साथ भी खेलते तो कितना मज़ा आता, लेकिन भैय्या इतने बड़े थे कि वह अपनी यह इच्छा उनसे कह नहीं पाती थी। घर में मम्मी -पापा होली नही खेलते थे इसलिए दो-तीन रंग के गुलाल और एक डिब्बा चूड़ीरंग पानी में मिलाने के लिए आता था। तीनो बहने ही एक-दूसरे के चेहरे को गुलाल के अलग-अलग रंग से सजा देते थे और टब में बने रंगीन पानी को एक दूसरे के ऊपर पिचकारी से डालकर खुश हो जाते थे, इस रंग से भी उनको सुरक्षित रखने के लिए माँ सवेरे से उन्हें नारियल तेल का रक्षा कवच पहना देती थी, जो शुचि के रंगे रहने की हसरत पर तुषारापात करती थी। शायद इस होली से दोनों बहनें खुश थी पर शुचि को तो पक्की होली खेलने का मन करता था लेकिन करे क्या? क्योंकि जब अपनी पक्के रंग के होली खेलने कि इच्छा वो अपनी बहनो को बताती तो दोनो बहने उसे पागल कहती कि कौन पक्के रंग की होली खेलकर अपना हाथ मुँह खराब करें? शुचि सड़क पर आने-जाने वाली टोली को रंग-बिरंगे रंग में रंगा देखती तो मन करता काश मैं भी ऐसी होली खेलती। समय बीतता गया और शुचि कॉलेज पहुँच गयी उसे लगा अब बड़ी हो गयी हूँ सहेलियों के साथ खूब होली खेलूंगी, जब सड़क पर सहेलियों के साथ उसकी टोली जाएगी तो लोग देखते रह जाएंगे। शुचि की फूटी किस्मत कि उसकी कोई भी सहेली होली नही खेलती थी, टोली में जाना तो दूर की बात वो घर से नही निकलती थी। फुफेरे भाई की शादी के बाद शुचि बहुत खुश थी कि भाभी के साथ वह अब खूब होली खेलेगी पर शुचि और होली का छत्तीस का आंकड़ा था । भाभी के साथ होली खेलने बुवा के घर गई, बुवा ने बाकी बातो के साथ हिदायत दी कि तेरी भाभी को ज्यादा रंग मत लगाना वरना छुटकी की तबियत खराब हो जाएगी। तीन साल में भाभी की दो बिटिया हो गई इस दौरान होली के नाम पर केवल टीके से कम चला। शुचि की दोनो बहनो की शादी हो गई वह अकेले रह गई। अब भाभी की एक बिटिया आठ साल की और दूसरी पांच साल की थी फिर मन में उम्मीद की भतीजियों के साथ मनभर होली खेलेगी। होली के साजो समान के साथ बुवा के घर पहुच गई होली के दिन सवेरे भाभी ने प्यार से कहा दो दिन बाद बड़ी की परीक्षा है और छोटी तो छोटी ही है इसलिये इन्हें ज्यादा रंग मत लगाना। भाभी का प्यार से बोला यह वाक्य उसके कान में गरम शीशे की तरह पिघल रहा था फिर शुचि की भी शादी हो गई मन में एक आशा की किरण कि अपने पति के साथ मनभर के होली खेलेगी और अब जाकर उसके बचपन की इच्छा पूरी होगी शुचि यह सोचकर ही बहुत खुश थी। होली के दो दिन पहले बाजार से पक्का रंग, मुखोटा और बैलून ले आई लेकिन कहते है ना किस्मत खराब हो तो ऊँट के ऊपर बैठे आदमी को कुत्ता काट लेता है वही हाल शुचि का था होलिका दहन के बाद घर आई तो शरीर मे दर्द और कंपकंपी, डॉक्टर ने कहा वायरल है रंग बिल्कुल मत खेलना वर्ना तबियत और बिगड़ जाएगी। डॉक्टर जाने के बाद भगवान के पास जाकर शुचि ने प्रतिज्ञा ली अब कभी होली खेलने के बारे में सोचेगी नही केवल शगुन का टीका ही लगवायेगी। वक्त के साथ बेटा 25 साल का हो गया उसकी शादी हो गयी शुचि ने बहू को पहली होली में मायके जाने से रोक लिया और प्यार से समझाया कल बेटे के साथ उसके सब दोस्तों के घर जाना और खूब होली खेलना ये मेरे बचपन का सपना था कि मैं खूब होली खेलू जो आजतक पूरा नहीं हुआ। सुबह बहु ने शुचि से आशीर्वाद लिया और उसे आँगन में बुलाया बाहर आते ही शुचि के ऊपर रंगो कि बौछार के साथ आवाज़ आयी हैप्पी होली आंटीजी । शुचि के गाल पर बहु ने रंग लगाते हुए कहा माँजी आपके बचपन का सपना आज हम सब मिलकर पूरा करेंगे मैं आपको छोड़कर कही नहीं जाऊंगी बल्कि आज हम सब आपके साथ होली खेलेंगे । आज शुचि का तन और मन रंग से सरोबार था ।