अनमोल खजाना
अनमोल खजाना
चाय नाश्ता लेकर बैठक की तरफ ही जा रही थी ,,तभी अंदर से आती हुई आवाज से कदम दरवाजे पर रुक गए ,,"
"देख मंझली छोटी के तो कोई जमीन जायदाद को खाने वाला है नहीं ,एक बेटा था राहुल वह भी भरी जवानी एक्सीडेंट का शिकार हो गया ,अब क्या करेगी वह सासु मां की वसीयत का ""...
"सही कह रही हो जीजी गहने तो हमने बांट लिये है , बाकी फैक्ट्री भी ,अब जो वह पुराना संदूक है उसे भी आपस में बांट लेते हैं ,पता नहीं क्या-क्या खजाना छुपा रखा होगा मांजी ने ""....
""सही कह रही हो मंझली ..सोना चांदी ,सिक्के -गहने और भी न जाने क्या-क्या, अपने जीते जी किसी की हवा भी नहीं लगने दी थी ,मांजी ने उस संदूक को "".........
अब तक जो पैर ,लोकल ट्रेन से चल रहे थे, ,,संदूक का नाम सुन एक्सप्रेस हो गये ,,,,
"नहीं जीजी मांजी का वह संदूक सिर्फ मेरे पास रहेगा,""... अचानक हुए इस प्रहार का अंदेशा नहीं था जीजी और मंझली भाभी को,,,,
"तू क्या करेगी उस संदूक का "-जीजी ने दाव फेंका ....
"जीजी इतने साल मांजी की सेवा की है, उसका इतना तो फल मिलना चाहिए ,मैं आपसे और कुछ नहीं मांग रही"".. मेरा दाव मजबूत था,,,,,,,,,,
""ठीक है ,ठीक है संदूक तुम अपने पास रखना"" -बड़े भैया ने बाजी पलट दी थी .......
"ठीक है ऐसे भी संदूक की हालत देख ,खंडहर हो चुका है क्या पता खजाना भी बेकार हो "" -जीजी मुंह बनाते हुए बोली....
"हां जीजी सही है और वैसे भी अनदेखे खजाने के मोह में, हाथ आया सोना थोड़ी ना छोड़ सकते हैं ,और वैसे भी , छोटी और राहुल तो खास थे मांजी के हुँअ ,तो यही रखे खंडहर को""-मझंली भाभी ने भी आखरी बाजी खेली,,,.....
अब बाजी मेरे हाथ में थी ,,,
"ठीक है पर देखें तो सही संदूक में है क्या ""-जीजी के चेहरे से अभी भी लालच टपक रहा था ,,,..
संदूक खुला ,खजाने को देख जहां मेरी आंखें चोंधियाँ रही थी ,,वही दोनों भाभियों की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी ...
एक-एक खजाने को मैं पलट -पलट कर देख रही ,,,,
राहुल का पहला खिलौना ,पहली पेंसिल ,झबला ,मेरी शादी का कार्ड, मां बाबूजी की कुछ यादें ,मांजी के द्वारा बनाया गया राहुल के लिए पहला स्वेटर, और भी बहुत कुछ ,,,,,
आश्चर्य और जिज्ञासा के मिले जुले भाव थे पति के चेहरे पर ,, ,,,,,,उन्होंने आंखों से सवाल किया मैंने होठों से जवाब दिया,,,
"मुझे पता था इस खंडहर में यादों का अनमोल खजाना है"""