गुलाब के कांटे
गुलाब के कांटे
आँखों से बहती हुई, अश्रु धाराओं के साथ- साथ बीते वक्त की सारी बातें आँखों के सामने आ रही थी।
"गुड़िया पहले भाई खाना खा ले फिर तुम खा लेना" पहला कांटा टूट चुका था।
" गुड़िया लड़ो मत भाई से अपना खिलौना भाई को दे दो" दूसरा कांटा भी,
" तमीज नहीं है भाई के साथ ऐसी बहस करते हैं।"
" पर पापा ! भाई तो गलत,"मैं कुछ नहीं सुनना चाहता बस करो।" तीसरा कांटा,
"जब भी कहीं बाहर जाना हो, भाई को हमेशा साथ लेकर जाना।" चौथा कांटा ।
"पापा ! भाई तो तैयार नहीं हुआ, मेरे बोर्ड के एग्जाम है, मैं लेट हो जाऊंगी ऑटो से चली जाऊँ।"
"क्या कहा तुमने चुप रहो।" पांचवा कांटा।
" मेरी सारी सहेलियाँ जूडो कराटे सीख रही है क्या मैं भी??
"तुम शरीफ घर की लड़की हो तुम्हें शोभा नहीं देता"! छठा कांटा।
"पापा मैं स्कूल वैन से नहीं जाऊंगी वह अंकल अच्छे नहीं "बात अधूरी रह गई।
" क्या बकवास कर रही हो, तुम्हें सिर्फ अपनी मनमर्जी करनी आती है , जो बोला है वह करो।"
आखरी कांटा भी।
हर बार मेरा मौन रहना ,पति की आज्ञा को दुगना कर जाता और बिटिया की हिम्मत को आधा।
और आज, गुड़िया की निष्प्राण देह सामने थी, चेहरे और हाथों पर नाखूनों के खरोच के निशान, उसका हाल खुद-ब-खुद बयां कर रहे थे।
" बेटा कुछ तो बोल अपने पापा से बात कर, क्यों चली गई तू हम सब को छोड़ कर, मेरी फूल से नाज़ुक गुड़िया, गुलाब के फूल को भी कोई तोड़ता है तो ,कांटे चुभने के डर से दो बार सोचता है, मगर उस राक्षस ने !
क्यों आखिर क्यों हुआ ऐसा?...
बरसों से दबी ज़ुबान कब तक खामोश रहती -"गुलाब के कांटे हर बार हमने ही तो तोड़े हैं, फिर वह चुभेंगे कैसे??
( समाज के वह लाेग जाे लड़कियों की प्रगति पर उनकी आज़ादी पर सवालिया निशान उठाते हैं।
बस इतना कहना चाहूँगी विश्वास करो अपनी बेटियों पर और दो उन्हें काँटे ताकि कोई भी गुलाब के फूल को तोड़ ना सके कांटों से वह अपनी रक्षा करें। मजबूत करो उन कांटों को ताकि चुभे हर एक ऐसे वहशी दरिंदे को।)