Sushma Tiwari

Tragedy Inspirational

5.0  

Sushma Tiwari

Tragedy Inspirational

अनहोनी

अनहोनी

3 mins
395


"सुनो! दरवाज़ा ज़रा ढंग से लॉक किया करो, हम इस सोसाइटी और इलाके में नए है अभी।" पतिदेव हमेशा यही समझाते थे।

"हाँ जैसे दिन दहाड़े लुटेरे मुझे ही तो खोज रहे हैं, आप ओवर प्रोटेक्टिव हो रहें हैं बस" मेरा यही जवाब होता।

मैं राधिका हूं।


तो बात चार साल पहले सितंबर महीने की है, पूरा महाराष्ट्र गणपति त्यौहार की तैयारी कर रहा था और मैं हरितालिका तीज की तैयारियों में व्यस्त थी। नया इलाक़ा था तो कुछ ना कुछ बाकी रह जाता था, दुकान ना पता होने के कारण। खैर बच्चे का ट्यूशन टाइम, स्कूल टाइम सब देखते हुए मार्केट जाना होता था।

वैसे तो मैं कभी बच्चे को अकेला घर पर नहीं छोड़ती, पर उस दिन जब घर पर इसके कुछ दोस्त जो उसी बिल्डिंग में रहते थे दोपहर में घर पर खेलने आए थे। मेरे दिमाग में आया क्यूँ ना जब तक ये व्यस्त हैं मैं जा कर अपना काम पंद्रह मिनट में निपटा लूँ, क्यूँकी दुकान पास में ही थी। मैंने बेटे को सख़्त निर्देश दिए की जब तक मैं ना आऊँ दोस्तों को जाने मत देना और कोई भी आए दरवाज़ा ना खोलना। सब बच्चों ने हाँ कहा। दिन के डेढ़ बज रहे थे, मैंने भी सोचा कौन आता है.. हमे जानता ही कौन है, जा कर आती हूं। मुश्किल से बारह तेरह मिनट में मैं बिजली की गति से जाकर आई क्यूँकी पतिदेव के घर आने का समय होने वाला था। आते ही देखती हूँ की दोस्त जा चुके हैं, मैंने डाँटा भी मना करने के बावजूद ऐसा क्यूँ? उसके बाद गुस्सा शांत करते ही मेरी नज़र टीवी के पास गई जहां कुछ पैसे थे थोड़ी देर पहले वो वहाँ नहीं थे। "क्या तुम्हारे दोस्त ले गए"?.. वो बोला मम्मी ऐसा है की पेंटर अंकल आए थे तब तक पैसे थे। पेंटर! कौन पेंटर? तुमने डोर खोला और किसी को अंदर भी लिया.. ऐसा कैसे? उसने फिर बताया की कोई पेंटर बारहवीं मंज़िल से आया था जिसने ज़िद से दरवाज़ा खुलवाया की उपर से तुम्हारी बालकनी में पेंट गिर रहा है और उसे ये देखना होगा अर्जेंटली।

 फ़िर मैंने पूरी जांच की तो पता चला कोई पेंट का काम नहीं हो रहा था, पर बेटे के मुताबिक वो पूरी वेशभूषा में था। तब तक पतिदेव आ गए और कहा की उपर नीचे मत करो जाओ घर में देखो कुछ ग़ायब तो नहीं हुआ। मैंने गुस्सा किया कि सिर्फ पांच मिनट में क्या ग़ायब होगा.. पर मेरी जान हलक को आ गई, मेरी तिजोरी खुली थी और तीन लाख के गहने छू हो चुके थे। मैंने सिर पकड़ लिया। पुलिस आई, जांच हुई.. सीसी टीवी कैमरा.. कहीं कुछ पता ना चला। किसी ने मुझे दोषी ठहराया तुम्हें घर में नहीं रखना चाहिए था या अकेले नहीं छोड़ना था। कमिश्नर की कही बाते मुझे आज भी दहशत से भर देती है "आप खुशनसीब है की बच्चा चिल्लाया नहीं, वर्ना ऐसे केस में वो बच्चों का मुँह बंद रखने के लिए कुछ भी कर जाते।

हाँ मैं आज भी भगवान को धन्यवाद देती हूं की उन्होंने बच्चे की रक्षा की और सिर्फ सामान के नुकसान से आँखे खोल दी, आइन्दा लापरवाही ना करने की। पर मन में सोसायटी और आसपास के लोगों की संवेदनहीनता का सवाल आता है, हाई फाई सोसायटी में किसी को किसी से कितना कम लेना देना होता है, किसी ने भी कुछ नहीं देखा! 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy