अंधेरा

अंधेरा

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आज वो बारिश के कारण आफिस से थोड़ी लेट निकली थी। लेकिन बारिश से बच नही़ं पाई। बारिश फिर शुरू हो गई थी। बारिश और अंधेरे की वजह से सड़क पर इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे, बस स्टॉप पास ही था। वहाँ पहुँची तो वह भी एकदम सुनसान था। थोड़ी देर में ही एक और युवक आ गया, वह भी बस का इंतज़ार कर रहा था।

शायद बारिश की वजह से बिजली भी नहीं थी आसपास की। एक बस आई और वह युवक भागकर उसमें चढ़ गया। लेकिन फिर अगले ही पल उतर गया। बस चली गई। युवक फिर से बस स्‍टॉप पर आ खड़ा हुआ। वह अनजाने डर से घबरा गई। वह उस युवक से थोड़ी दूर हटकर खड़ी हो गई।

कई बस आई, लेकिन उसकी बस नहीं आई। युवक भी किसी बस में नहीं चढ़ा। उसका डर और घबराहट बढ़ती जा रही थी। आखिरकार उसकी बस आई तो वह लपककर उसमें चढ़ गई। पीछे-पीछे वह युवक भी बस में चढ़ गया।

उसे अब यकीन सा हो गया था। ज़रूर युवक उसके साथ कुछ बदतमीजी करना चाह रहा है। वह कंडक्टर के पास खड़ी हो गई। युवक बस के अगले हिस्से में खड़ा हो गया। युवक की नज़रें लगातार उसका पीछा कर रही थीं। शायद आखिरी बस थी इसलिए भीड़ थी। उसका डर थोड़ा कम हुआ। उसका बस स्टॉप आने वाला था। वह उतरने के लिए बस में आगे पहुँची।

युवक फोन पर कह रहा था, 'अरे माँ बस स्टॉप पर एक लड़की बिलकुल अकेली थी। बारिश हो रही थी, बिजली भी नहीं थी। इसलिए मैं भी रुक गया कि उसके साथ कोई अनहोनी ना हो जाये। बस अब आ ही रहा हूँ।' उसके कानों में ये शब्द पड़े तो उसके मन का अंधेरा एकदम छट गया।

युवक की नज़रें अब भी उसका पीछा कर रही थीं। वह मन ही मन युवक को गलत समझने के लिए माफ़ी माँग रही थी।

बस जा चुकी थी। वह जैसे युवक को सलाम करने के लिए अब भी वहाँ खड़ी थी।


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