अमृत मंथन
अमृत मंथन
आज आराधना बहुत रोमांचित थी। उसकी वंदना दीदी बरसों बाद मुंबई आ रही है। उनका ऑपरेशन करवाना है पर इसी बहाने दोनों बहनें का मिलन तो होगा। मुंबई की होते हुए भी दीदी की शादी गाँव में हुई थी। उस की दीदी रौबदार, जिद्दी और सख्त मिजाज की थी, पर दिल की भली थी। आराधना को थोड़ी फिक्र अपनी विजातीय बहु मानसी को लेकर थी। पर दीदी के लिए कमरा सजाने का आनंद उस पर हावी था। मानसी शहर की पढ़ी- लिखी समझदार नौकरी पेशा लड़की थी। इसीलिए रौनक ने उसे पसंद किया था। आखिर दीदी आई। उनका ऑपरेशन भी सफलता पूर्वक हुआ। बहु मानसी ने भी खूब सेवा की। रौनक को समय ना भी हो तो खुद वंदना दीदी का चेक उप करवाने ले जाती। सारी दवाएं समय समय पर देती, बिना भूले फल लेकर आती। आराधना भी खुश थी। वंदना दीदी के साथ बचपन व मायके की मधुर स्मृतियाँ परम आनंद देती थी।
वंदना दीदी की दो बहुएं थी। बड़ी बहु सुमन ग्रैजुएट थी। उसे दो बेटी थी। पर दीदी उसे नीचा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ती ।छोटी बहू विमला की आगे पढ़ने की बहुत इच्छा थी, पर दीदी ने इजाजत नहीं दी। मजाल है दोनों के सर से पल्लू हट जाये, बहुत सख्ती रखती थी।
पर ना जाने क्या मानसी की सेवा का मोह जादू चला । आराधना ने वंदना दीदी को मानसी से ये कहते सुना की तुम्हारे जैसा सूट मुझे अपनी बहुओं के लिए भी लेना है। फिर बोली छोटी बहु विमला को आगे पढ़ाई का फारम भरने को कह दिया है।
वंदना दीदी रोज़ धार्मिक ग्रंथ पढ़ती थी। आज वो ' अमृत मंथन ' अध्याय पढ़ रही थी। आराधना ने हँस कर पूछा " इस अध्याय मे क्या पढ़ा? आपने "वंदना दीदी ने मुस्कुरा कर कहा " पुराने और नये विचारों का मंथन हुआ। उसमें से नये विचारों का अमृत प्राप्त हुआ। तुमने और तुम्हारे बहु मानसी ने मेरे पुरानी मानसिकता के विष को निकाल डाला। "आराधना इसका गूढ़ रहस्य समझ कर बस मुस्कुरा दी।
