अलविदा हमसफर
अलविदा हमसफर
वह चालीस साल की उम्र में शादी करके ससुराल आई थी जिंदगी बहुत ही अच्छी चल रही थी ।एक साल बाद ही उनके एक बेटा हुआ। और तीसरे साल उनके बेटी हुई ।वे दोनों बहुत खुश थे कि 40 साल की उम्र में शादी करने के बाद में भी उनको परिवार में बेटा बेटी मिले ।और परिवार पूरा हुआ ।मगर भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था। बेटी के होने के दो महीने बाद उनको एक दिन ब्रेस्ट में गांठ दिखी।
डॉक्टर से चेकअप करवाया सारे टेस्ट वगैरह करवाएं, तो ब्रेस्ट कैंसर निकला ।उस समय ऑपरेशन करवाने के बाद वह ठीक हो गया। उसके बाद उन्होंने दो साल परिवार के साथ बहुत ही हंसी खुशी बिताए ।ऐसा लग रहा था जिंदगी बहुत अच्छे से चल रही है ।सब कुछ अच्छा था। एक बार परिवार वाले किसी फैमिली फंक्शन में सूरत गए हुए थे। पीछे से वे अकेली अपने बच्चे के साथ में थी।
एकदम से ब्रेन में ट्यूमर निकला, और जोर जोर से दर्द होने लगा चिल्लाने लगी दर्द से ।उस दिन इत्तेफाक से उनके देवर जो डॉक्टर थे वे घर पर ही थे। वे प्रोग्राम में शामिल होने नहीं गए थे। उनके पड़ोसियों ने वहां फोन करा, तो उनके देवर एकदम गए। और देखा उनको एकदम पता लग गया कि यह तो कैंसर का वापस अटैक हुआ है। मेटास्टैसिस हुए है ।
उसी समय सब ट्रीटमेंट चालू करवाया ।घरवाले तो थे नहीं उन्होंने ही सब करा। उसके बाद में बीस दिन उनकी हालत बहुत ही खराब रही ।वे हमेशा अपने पति को बोलती पता नहीं अब मेरी जिंदगी कितनी बची है। दो बच्चे छोटे-छोटे से एक 5 साल का एक दो साल की बेटी। बच्चों का मुंह देखती बहुत रोती ।अब क्या होगा पता नहीं।
कोई आशा भीबंधाए तो कैसे कैंसर इतना फैल चुका था ।वे तड़प रही थी। एक दिन उनके पति ने उनके पास में बैठ कर के और उनके सिर पर हाथ पर फेरते हुए कहा ,कि "मैं इन बच्चों का बहुत ध्यान रखूंगा ।तू चिंता मत कर।" जैसे उनको पता लग गया हो कि मेरा अंत समय आ गया है ,वह संतुष्ट भी हो गई और उन्होंने उनसे बोला ,"अलविदा हमसफर। अच्छे से रहना। बच्चों का ध्यान रखना " और अपने दोनों बच्चों के सिर पर हाथ फेरा ।और उनका अंतिम समय आ गया ।भगवान का बुलावा आया और वह चली गई ।सब बहुत दुखी थे।एकदम छोटे से समय में पांच छह साल के समय में उन्होंने परिवार में और सब के दिल में अपनी बहुत प्यारी जगह बना ली थी। मगर भगवान की मर्जी के आगे किसका जोर चलता है ।
