अक्षत.. चावल के दाने
अक्षत.. चावल के दाने


ईशा और मयूरी के बच्चे लग्न लगने के बाद वहाँ पड़े अक्षत..। चावल के दानो से खेल रहे थे। वही एक छोटी सी लड़की इन दानों को एक कटोरे मे इक्कठा कर रही थी। वो इतने करीने से एक एक दाना उठा रही थी..
ईशा ने ध्यान दिया तो देखा की वो शायद शादी के घर से किसी की बच्ची नहीं थी। वो उन दानों से खेल भी नहीं रही थी। वो तो बस उन्हें बड़े प्यार से इक्कठा कर रही थी। जमीन पर से, आसान पर से, कुर्सियों पर से। जहाँ भी उसे नजर आ रहे थे। उन नन्हे नन्हे हाथों की कोशिश थी की जितने ज्यादा इक्कठा हो जाये। और उसकी आँखों मे एक अलग से चमक थी जैसे ही वो एक दाना कटोरे मे डालती वो चमक और बढ़ जाती..
जब उसका कटोरा भर गया तो मारे ख़ुशी के आँखें छलकने लगी। ईशा ने उसे कटोरा लेकर बाहर जाते देखा तो उत्सुकता वश वो भी उसके पीछे चली गयी..
बाहर जाकर देखा वो वहाँ बर्तन मांजने वाली अम्मा के पास गयी और उन्हें वो कटोरा देकर बोली लो माँ अब हफ्ते भर तो चावल बन जायेंगे। उसकी आवाज़ मे अजीब सी खनक थी। जैसे पहली कमाई से कोई बच्चा अपनी माँ को कुछ दे रहा हो.. उसकी माँ ने चावल लेकर अच्छे से रख दिए। और इसके सर पर हाथ रखा.. मानो जैसे कह रही हो। जुग जुग जियो बच्चा....
ईशा भी देख कर भावुक हो गयी... उसने उस बच्ची को बुलाया और पर्स मे से सौ रूपये निकाल कर दे दिए...
पर ये दृश्य ईशा के मन में कई सवाल छोड़ गया था.. बात आयी गयी हो गयी। शादी होने के बाद सब अपने अपने घर चले गए। ईशा भी। पर मन मे वो एक दृश्य जैसे छाप छोड़ गया था।
अगले महीने ही ईशा के घर उसके देवर की शादी थी। तैयारियाँ जोरों शोरो पर थी। शादी की सब तैयारियों के चलते एक दृश्य जो उसके मन में अपनी छाप छोड़ गया था फिर उसकी आँखों के सामने आ गया..
उसने घर मे सबसे बात की और निश्चित किया की, अक्षत में चावल के दाने नहीं डालेंगे उसकी जगह आर्टिफिशल चावल के दाने बनवाएंगे और उसका प्रयोग करेंगे और जितना धान लगता है उतना गरीब को दान कर देंगे।
शादी भी साधे तरिके से सम्पन्न हुयी और शादी के खाने का आयोजन अनाथ आश्रम और वृद्धा आश्रम दोनों जगह आयोजित किया। नए वर वधु ने बच्चों के साथ मस्ती भी की और बड़े बूढ़ो का आशीर्वाद भी लिया।
नई देवरानी के रूप मे आयी स्मिता ने भाभी ईशा को धन्यवाद भी कहा और वादा भी किया की इसी तरह हम दोनों मिल कर कोशिश करेंगे की जहाँ भी हम किसी की मदद कर पाएंगे जरूर करेंगे।
ईशा ने भी उसे धन्यवाद कहा क्योंकि जरुरी नहीं था जो उसने किया वो सबको पसंद आये। शादी दो दिलो के साथ ही दो परिवारों का भी मिलन होता है और स्मिता के परिवार वालो ने भी ईशा के किये बदलावों को दिल से सराहा... और सबने आगे ऐसा ही करने की कोशिश करने का वादा भी किया।
ईशा ने स्मिता से कहा हम पूरी दुनिया नहीं बदल सकते पर कुछ छोटा सा भी बदलाव लाकर अगर कुछ अच्छा कर रहे है तो इससे ज्यादा ख़ुशी की बात और क्या हक सकती है.. और हर बदलाव की शुरुआत खुद से और घर से होती है। मैं भाग्यशाली हूँ की सबने मुझे सराहा..
काश इसी तरह हर कोई छोटे छोटे कदम उठा पाए..