अकेला कमरा
अकेला कमरा
अरे रामा भैया ! माथा पे हाथ धइले का सोचत हो ?
“अरे अइसही बइठे हैं। आ सोचने का कमी है का।”
साल भर से तो किसानी भी बढियाँ हो गिया है और शहर से पइसा कमा के आए तो घर बथान भी बन गया। बिटिया का नामो इस्कूल में लिखा गया। अब का सोचत हो?
“बिटिया धीरे-धीरे बड़ी हो रही है। ये ही चिंता का विषय कम है का।”
का रामा भैया, आप भी न, कुछो सोच लेते हैं। लक्ष्मिनी त हमरी सबितवा से तो ढेर छोटी है। अभी त उ बियाह लायक होबे नहीं की और आप लक्ष्मिनी का सोच रहे हैं।
“नहीं भइवा, हम ई नहीं सोच रहे हैं। घर दुआर का ही चिंता है। दो कमरा, दलान, बथान तो बन गया पर घर मे एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ आप अकेले पांच-दस मिनट शांति से बैठ कर अपने शरीर, मन, को शांत कर हल्का कर सकें। ई बहुत जरूरी होता है।”
हाँ भैया आप शहर में रह कर आए हैं न, अब आपको तो पढ़ने-लिखने के लिए अलग जगह चाहिए ही। हमलोग तो न पढ़ते हैं न ओइसन जगह का सोचते हैं।
“अरे ! तुम हमरा बात नहीं समझे। सुबह-सुबह हलका होने के लिए सड़क, खेत की तरफ रुख करने से अच्छा है घर में ही एक छोटा कमरा बना दो जहाँ शौच की सुविधा हो जाए।”
का कहते हैं भैया, ई शहर नहीं है। गंदगी को घर से दूर रखना चाहिए। शहर में सब चलता है। गाँव में बहुत हँसाई होगा।
“यही त हम सोच रहे हैं कि कैसे सबको समझाए। सड़क और खेत में जाने से गन्दगी घर से दूर नहीं होती और हवा के साथ, जानवर के साथ और अपने ही पैर के साथ अपने घर में आती है। घर की बहू-बेटी बाहर जाती है उसमें शिकायत नहीं? वे घर से बाहर इस तरह अर्द्धनग्न! कितनी असुरक्षित हैं, इस पर विचार करो और जानते हो सबसे बड़ी बात बाहर औरत का, मर्द भी जल्दी से निपटाने का सोचते हैं। अतः पेट साफ नहीं हो पाता और दस तरह की बीमारी को फैलाता है। घर में जब एकांत में शौचालय होगा तो वहां शांति से थोड़ी देर बैठोगे तो पेट भी साफ होगा और शांत मन में दस तरह का विचार भी आएगा।”
अरे हाँ ! भैया, आप तो दस टके का बात बोले। अब त हमहू अपन घरवाली को समझाएँगे कि आंगन के कोनवा में एगो शौचालय बनवा लिया जाए। सबीतवो को आराम हो जाएगा। भोर और सांझ के अंधेरा का इंतजार नहीं करना पड़ेगा और न त सखी सहेली का। ठीक कहते हैं शहर में बुद्धि का पेड़ है।