Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Fantasy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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अकाय - पार्ट 09

अकाय - पार्ट 09

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सत्यम ने इंस्पेक्टर रवि से पूछा कि फिर आपने मतंग बाबा से अपनी जान पर आने वाली संकट को दूर करने का उपाय नहीं पूछा था ?

रवि - पूछा था , लेकिन उन्होंने कहा कि कोई उपाय नहीं है। जीवन पथ पर कभी न कभी तो डेड एंड आता ही है। तुम अपने स्वभाव और चरित्र में सुधार लाकर अपनी आगे की यात्रा को सुगम बना सकते हो।

उसके बाद से मैं एक कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार पुलिसवाला बन गया । मेरे अंदर बहुत कुछ बदल गया । अबतक जिस जादू-टोना , भूत-प्रेत, डायन और तांत्रिक को मैं अंधविश्वास मानता था, उसके प्रति मेरी सोंच बदल गयी। भौतिक बाधा से पीड़ित लोगों के प्रति मेरी सहानुभूति हो जाती थी। 

मेरे इलाके में एक गाँव था लालचक । एक रोज वहाँ से एक खबर आई की एक चालीस साल की औरत को डायन के आरोप में पंचायत ने सर मुंडन करा कर और चपल का माला डालकर पूरे गाँव में घुमाया ।रास्ते में लोग उसपर थूकते भी थे । किसी ने इस घटना की रिपोर्ट नहीं लिखवाया । इस बात की जानकारी मेरे मुखबिर से मिली। मैं उस औरत से मिला । उसने कहा कि उसने एक मन्नत मान रखी थी जिसके चलते मुंडन कराया है। बिना शिकायत के कानून रूप से मैं कुछ नहीं कर सकता था। मेरी अब व्यक्तिगत दिलचस्पी यह जानने में थी कि वह सच मे डायन है या नहीं,और यदि है तो डायन क्यों और कैसे बनी ? डर भी लग रहा था कि यदि मुझसे वह नाराज हो गयी तो शायद मुझे भी नुकसान न पहुँचा दे। लेकिन पुलिसिया दबाव के सामने वह झुक गयी और वह सबकुछ बताने को तैयार हो गयी।

उसने यह स्वीकार किया कि उसने डायन विद्या को सिद्ध किया है और उसे यह काम मजबूरी में करना पड़ा। उसको उसके सास ने ही सिखाया है। मेरे आगे पूछ ताछ में उसने बताया कि उसके शादी के बाद पांच साल तक जब कोई संतान नहीं हुई तो उसके सास ने कहा कि डायन का मंत्र सीखने पर वह माँ बन सकती है। क्योंकि मेरी सास भी डायन थी। डायन और ओझा के परम्परा में ऐसी मान्यता है कि उसको अपनी सिद्धि अपने उत्तराधिकारी को सौंपना रहता है। यदि ऐसा नहीं किया तो उसके पहली संतान की वंश परंपरा नहीं चलेगी। मजबूरन मुझे सीखना पड़ा । मैंने सीखा और माँ भी बन गयी ।

मैंने पूछा तुमलोग अपनी सिद्धि का प्रयोग केवल नुकसान पहुंचाने के लिए ही करते हो या किसी का भला भी करते हो ।

उसने बताया कि इस सिद्धि का नकारात्मक और सकारात्मक दोनो प्रयोग होता है यह सिद्धिप्राप्त व्यक्ति के मनोवृति और उससे जुड़ी अकाय आत्मा के स्वभाव पर निर्भर करता है। जादू टोना का असर आपके सांसारिक दुश्मन या अपने रक्तसम्बन्धी पर उतना नहीं दिखता है। यह अनजाने और दूरस्थ लोगों पर ज्यादा प्रभावी होता है। इसीलिए कहा जाता है कि "डायन भी दो घर छोड़ देती है"।

फिर मैंने उससे पूछा कि तुम जिस किसी पर भी जादू टोना करती हो उसका निदान कैसे होता है और तुमलोगों को यह सब शक्ति कैसे प्राप्त होती है ?

डायन ने कहा हमारे जैसा ही कोई उस बंधन को तोड़ सकता है। शर्त यह है कि उसकी सिद्धि बड़ी होनी चाहिए और उसके कब्जे में जो आत्मा है वह ताकतवर होनी चाहिए।

मैंने उससे जब पूछा की तुमलोग किसी आत्मा को अपने वश में कैसे करते हो या उससे किसी को मुक्ति कैसे दिलाते हो !!

उसने ईमानदारी से कहा मुझे नहीं मालूम कि यह कैसे होता है क्योंकि मैं शौक से नहीं मजबूरी में डायन बनी थी । इतना जानती हूँ कि इस दुनिया मे अमावस्या, पूर्णिमा, नवरात्री और पितृपक्ष का बहुत ही महत्व है। यदि आपको विशेष जानकारी चाहिए तो बैताल टीले पर रहने वाले अखंडा बाबा से मिलिए।लेकिन उनसे पुलिसिया रॉब मत दिखाना क्योंकि वो बड़े से बड़े ऑफिसर ,नेता और मंत्री को जेब में रखकर घूमते है। एक जिज्ञासु की तरह उनसे मिलने पर आपको जानकारी मिल सकती है।

फिर उससे अखंडा बाबा का डिटेल पता लिया और एक रोज मिलने चला गया । संयोग से उनसे अच्छी मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे समय भी दिया। जब उन्होंने उनतक पहुंचने का रेफेरेंस और उद्देश्य पूछा, मैंने उनको सब सच बताया । क्योंकि मौसी के सामने ननिहाल का झूठ बेपर्दा होना तय है।

अखंडा बाबा ने माना कि वो तांत्रिक हैं और प्रेत बाधा से जुड़ी समस्या का निदान भी करते हैं। उन्होंने कहा लोग मेरे पास समस्या लेकर आते है और मदद मांगते है । लेकिन तुम पहले व्यक्ति हो जो इस विद्या की सच्चाई जानने आए हो। उन्होंने अपने आपको पैरानॉर्मल वर्ल्ड का समाज सेवक कहा ।

उन्होंने कहा कि जब कोई भी जीवात्मा इस शरीर का त्याग करती है तो दूसरे काया में प्रवेश करने तक उसे अकाय अवस्था मे इस मृत्युलोक पर रहना पड़ता है। अकाल मृत्युप्राप्त आत्मा के लिए वह संक्रमण काल कुछ ज्यादा लंबा होता है। उस ट्रांजिट पीरियड में दिवंगत आत्मा बोडीलेस, होमलेस, हेल्पलेस और लगभग परित्यक्त अवस्था मे रहती है । मैं या मेरे जैसे लोग आत्मा को उस अवस्था में यथसम्भाव कोशिश करते हैं कि उनकी ट्रांजिट स्टे आरामदेह हो । आत्मा की यात्रा तो अविराम है अतः उसकी कर्मजनित और स्वभावगत विशेषताएं उसमे मौजूद रहती हैं । अतः हमलोग जैसे पैरानॉर्मल समाज सेवक उनकी विशेषज्ञता का प्रयोग अपने हिसाब से कर लेते हैं।

आत्मा अपने आप मे स्वचालित और स्वायत इकाई होती है । इसके चलते कभी कभी कोई आत्मा मनमानी करने लगती है या अनियंत्रित हो जाती है तो मेरे जैसे समाज सेवक की जरूरत पड़ती है। आप पुलिसवाले हो और आपका काम जीवित लोगों के बीच कानून व्यवस्था बनाए रखना है। ठीक उसी प्रकार हमलोगों का काम भटकती आत्मा को नियंत्रित और निर्देशित करना है। जैसे आपके पुलिस में भी कुछ लोग भ्रष्ट और अनैतिक आचरण करते हैं वैसे ही तांत्रिक में भी अनैतिक लोग होते हैं। वो इन भटकती आत्मा को नियंत्रण में लेकर उनकी क्षमता का दुरुपयोग करते हैं। आपका काम FIR से शुरु होकर ,इन्वेस्टीगेशन ,केस डायरी, और कानून व्यवस्था का पालन कराना है। कभी कभी रियल या फेक एनकाउंटर भी करना पड़ता है। हमारा भी कमोबेश वही काम है आप जिंदा लोग के साथ करते हो और हम भटकती आत्मा के साथ करते हैं। जिस प्रकार पुलिस उस व्यक्ति को तंग नहीं करती जिसका किसी भी प्रकार से किसी भी FIR से संबंध नहीं हो या वह कानून व्यवस्था का उलंघन नहीं करता हो । हमलोग भी उसी आत्मा का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं जो किसी भी प्रकार से हमारे संपर्क में आती है।

कुछ आत्मा अपनी अतृप्त इच्छा पूर्ती के लिए बेचैन रहती हैं और उसके बदले में कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती हैं। हमारे जैसे लोग इसका फायदा उठाते हैं। कुछ आत्मा भटकते हुए उब चूकी होती हैं और अपनी प्रेत योनी से मुक्ति चाहते हैं। हमारी उनसे ठीक वैसे ही बात होती है जैसे आपसे हो रही है।

आपने सुना होगा कि अमुक आदमी कई दिनों से मरणासन्न थे और किसी खास व्यक्ति से मिलना चाहते थे , बेहोशी में भी उसी का नाम ले रहे थे और उससे मिलते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए। ऐसी ही व्यक्त या अव्यक्त तीव्र इच्छा ट्रांजिट पीरियड में बंधनकारी हो जाती है।

मैंने उनसे पूछा आप संपर्क में आयी आत्मा का क्या करते हैं?

अखंडा बाबा ने कहा अधिकतर आत्मा तो इस अकाय अवस्था से मुक्ति चाहती है जो हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जो भटकते हुए थक गए हैं और आराम करना चाहते हैं उनके लिए हम एक सुरक्षित जगह पर व्यवस्था कर देते हैं। जो उदंडता करते हैं उनको किसी खास जगह पर कैद कर दिया जाता है। और कुछ दिव्य आत्मा तो इस अवस्था को अपनी आगे की यात्रा को सुखमय बनाने की साधना में लग जाती हैं। यह धुंधली दुनिया है और बहुत जटिल है क्योंकि यहाँ कोई रुलबूक नहीं है।

आप तबियत खराब होने पर नजदीकी या फैमिली डॉक्टर से कंसल्ट करते हैं यदि ठीक नहीं हुआ तो उससे बड़े डॉक्टर के पास जाते हैं। फिर भी नहीं ठीक हुआ तो अपनी हैसियत के अनुसार और बड़े हॉस्पिटल और डॉक्टर के पास जाते हैं। इसमे उनकी डिग्री और अनुभव के आधार पर आप निर्णय लेते हैं। लेकिन तांत्रिक की दुनिया मे कोई स्ट्रक्चर्ड डिग्री नहीं है । यह व्यक्तिगत साधना से मिली उपलब्धि होती है। इस क्षेत्र में बहुत से आशाराम बापू और नित्यानंद स्वामी मिल जाएंगे। यह भी संभव है कि आपके यहाँ मामूली सी नौकरी करनेवाले चपरासी के पास भी बहुत बड़ी सिद्धि हो। इस विद्या का दुरुपयोग और ढोंग करने वाले कि बहुलता है और प्रमाणिकता का अभाव है। प्रमाणिकता का अभाव ही इसका स्वभाव और बिशेषता है।

आपको एक कहानी बताता हूँ। एक गाँव मे एक बनिया था वह बड़ा ही कंजूस था। एक रोज एक तांत्रिक उस गांव में आया। वह लोगों को देखकर ही उनका भूत-भविष्य बता देता था। वह अतीत की बातें एकदम सटीक बता रहा था तो लोगों को यकीन हो जाता था की भविष्यवाणी भी सटीक ही होगी। वह बनिया जाती से तेली था, उसके पास गया। तांत्रिक ने उसके अतीत के बारे में बहुत सारी बात बतायी लेकिन वह यह कहकर इनकार करता रहा कि तुमको किसी ने बता दिया होगा। तांत्रिक ने कहा कि तुम्हारी खोपड़ी को तुम्हारे घरवाले ओखल में कूटेंगे। यह सुनकर वह हँसने लगा क्योंकि उसका बेटा और बहू बहुत अच्छे स्वभाव के थे । तांत्रिक ने कहा मैं वही बोल रहा हूँ जो दिख रहा है। बात आई गयी हो गयी। वह बनिया अपनी स्वभाविक मौत मरा।संयोग से अकाय अवस्था मे उसकी मुलाकात तांत्रिक की आत्मा से हुई। उसने कहा देखो तुम्हारी बात गलत साबित हुई मेरी खोपड़ी की कुटाई नहीं हुई। तांत्रिक ने कहा ऐसा हो ही नहीं सकता है। इधर बनिया ने मरते समय अपने बेटे को कहा था की मेरा दाह संस्कार गाँव मे मेरे खेत मे ही करना। उसका पूरा शरीर जल गया लेकिन खोपड़ी नहीं जली। उसको कुत्ता उठाकर उसके घर के नजदीक लेकर आ गया। उसके सात साल के पोता को खेलते समय वह खोपड़ी मिली। उसने कभी भी वैसी वस्तु नहीं देखा था। कौतूहलवश वह उसको घर लाकर अपनी माँ से पूछा यह क्या है। उसकी माँ को भी समझ में नहीं आया। उसने सोंचा ओखल में कूटकर देखते हैं । फिर उसने ओखल में कूटकर उसका चुरा बना दिया। यह देख तांत्रिक ने बनिया से कहा देखा, मेरी भविष्यवाणी सत्य हुई । मैंने तो सिर्फ यही कहा था कि तुम्हारे परिवार वाले ही तुम्हारी खोपड़ी ओखल में कूटेंगे और वही हुआ।


मैंने फिर पूछा बाबा आप मुझे कोई जगह बता सकते हैं जहाँ अकाय का ट्रांजिट कैम्प हो या उनका कैदखाना जिसमे उदंड आत्मा को आपलोग रखते हों।

अखंडा बाबा हँसने लगे फिर कहा कि है, बिल्कुल है , लेकिन तुमको वह सामान्य जगह जैसा ही लगेगा । वाराणसी में एक जगह है पिशाच मोचन । इसको भटकती आत्मा का ट्रांजिट कैम्प कह सकते हो। किसी भी दिन आपको वहाँ बहुत सारे तंत्रसाधक अकाय आत्मा को तर्पण देते और स्थान देते मिल जाएंगे। यह बस्ती के बीचोबीच स्थित बहुत बड़ा कुंड है। वहाँ एक पीपल का पेड़ है जिसमे आपको असंख्य सिक्के और कील गड़ी मिलेगी । यह तंत्र विधा से प्रेतात्मा को स्थान दिलाने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। पिशाच मोचन कुंड की पौराणिकता का अनुमान आप इससे लगा सकते हैं कि इसका जिक्र गरूड़ पुराण में भी मिलता है। ऐसी मान्यता है कि यह कुंड गंगा से भी पुराना है। इसका पानी कभी भी सूखता नहीं है और कितनी भी बारिस हो इसका पानी अपनी सीमा का अतिक्रमण नहीं करता है। इसी तरह बिहार में भभुआ के पास एक जगह है "हरसू ब्रह्म" । पैरानॉर्मल वर्ल्ड में इसको प्रेतात्मा का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है। किसी विवाद पर यहीं अंतिम निर्णय होता है जिसको तांत्रिक और प्रेतात्मा दोनो को स्वीकार करना पड़ता है। शास्त्रों में प्रेत योनी से मुक्ती के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध की व्यवस्था है जो केवल पिशाच मोचन कुंड पर ही सम्पन्न होता है।

मैंने अपनी जिज्ञासावश अखंडा बाबा से पूछ दिया कि आधुनिक दुनिया मे यह सब क्या है और क्यों है ?

उन्होंने मुझे निरुत्तर कर दिया । उन्होंने कहा 

"हर क्या का जबाब किसी न किसी जानकार के पास मिल सकता है लेकिन बहुत सारे क्यों सदियों से अनुत्तरित हैं। क्योंकि 'क्या' को समझा जा सकता है लेकिन बहुत सारा 'क्यों'

युगयुगान्तर से क्यों ही बना हुआ है। इतना ही समझ लो क्या का उत्तर होता है और क्यों का उत्तर नहीं होता है। यदि ऐसा नहीं होता तो ब्रह्मांड एक जटिल रहस्य नहीं होता।"

 उसके बाद मैंने पिशाच मोचन और हरसू ब्रह्म जाकर प्रेतात्मा का तांडव और तांत्रिक का अत्याचार और ढकोसला देखा।

सत्यम - यह बताइए रवि जी की आपकी अकाल मृत्यु कैसे हो गयी और आपको भी अकाय जीवन मिला।

रवि - मेरी पोस्टिंग उस समय मिर्जापुर में हुआ था । उधर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए कई गिरोह आपस मे होड़ कर रहे थे। मेरी ईमानदारी के चलते यह पनिशमेंट पोस्टिंग की गयी थी। पुलिस महकमा भी अपने पसंदीदा दबंग के गुट के प्रति ज्यादा वफादार था और अपने डिपार्टमेंट और कर्तव्य के प्रति कम । मैं जीरो टॉलरेंस वाला ऑफिसर था । एक रोज एक गुप्त सूचना के आधार पर मैं अपनी टीम के साथ छापा मारने गया । वहाँ पर एनकाउंटर हो गया । दोनो तरफ से जबरदस्त फायरिंग हुई। लेकिन मुझे जल्द ही यह आभास हो गया कि इस छापेमारी की सूचना मुनिफ अंसारी को पहले मिल गयी थी और मेरी टीम घिर चुकी है। लेकिन यह अंदाजा नहीं था गद्दार छापेमारी टीम में ही शामिल है। वह मेरे थाने का सीनियर हवलदार बजरंग यादव था। उसने मौका देखकर मुझे गोली मार दिया । उसने प्राइवेट रिवाल्वर से मुझे मारा । मेरे मरते वक्त उसने बताया कि वह गुप्त सूचना जिसके आधार पर छापेमारी हुई उसकी साजिश थी। इसके बदले में उसको मोटी रकम भी मिली थी। उसमे भूतपूर्व विधायक की भी मिलीभगत थी। मेरे इन्वेस्टीगेशन के चलते ही उसकी इमेज खराब हुई थी और वह चुनाव हार गया था। उसी ने मुनिफ के इलाके में मेरा पोस्टिंग कराया था। जब नेता ,गुंडा और पुलिस का कॉकटेल बनता है तो खतरनाक और जहरीला नशा बनता है जो समाज के ईमानदार लोगो को ठिकाने लगाते जाता है।


क्रमशः ---------


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