अजीब एहसास भाग -1
अजीब एहसास भाग -1
जेठ की गर्मी के महीना चल रही थी रात के करीब 9:00 बज चुके थे भगत साह अपने बैठकें से उठकर अपने निजी घर पर आ गए हैं और अपनी लुगाई, लक्ष्मी को आवाज़ लगाने लगे अरे वह लक्ष्मी खाना बन गया बन गया, तो ले आ..
हां.. हां.. बहू बना रही है अभी ले आई, तब तक आप पर मुँह हाथ धो कर बैठो, मैं खाना ले आती हूं।
अरी..,ओ..बहू जल्दी-जल्दी रोटियाँ बना ले तेरे ससुर को बड़ी तेज की भूख लगी है।
जी अम्मा जी,बना रही हूं ..
लक्ष्मी, एक था में रोटी, सब्जी और खीर पड़ोस कर भगत साह के लिए ले जाती है और भगत सा खाना खाने लगते हैं।
रोज की तरह लक्ष्मी पंखे झेलने लगती है ताकि भगत साह आराम से शीतल ठंडी हवा में खाना खा ले..उन्हें गर्मी का एहसास ना हो..
तभी मोबाइल की रिंगटोन बजने लगती है....
टिंग..,टिंग ...टिंग...
लक्ष्मी,अपनी बहू मानवी को आवाज़ लगाती हैं..
अरे..ओ.. बहु रोटियाँ बनानी छोड़ दे देख सूरज का फोन आया है पहले बात कर ले तो रोटी बना देना।
जी अम्माजी, बस दो ही रोटियाँ है पहले बना लूं तब बातें कर लूंगी ..
लक्ष्मी, भगत साह से बातें करने लगती है अपने बेटे सूरज के बारे में जबसे विलायत गया है सूरज दिन पर दिन बिगड़ते ही जा रहा है, बस एक ही फोन करता है, वह भी रात में 9:00 के बाद जब बहू काम कर रही होती है तभी उसके पहले तो कर ही नहीं सकता है और ना ही बाद में करता है और तुम्हें भी तो अभी ही भूख लग जाती है, वह भी गरम गरम रोटी चाहिए कुछ तो शर्म करो बहू बेटी की शादी की 4 साल हो चुके हैं जब से सूरज गया है लौटकर आता नहीं पता नहीं कौन सा काम करता है छुट्टी नहीं मिलती।
कितना, बोलती हो लक्ष्मी आ जाएगा जरा सब्र रखो..
लक्ष्मी गुस्से में ,आकर बोलती है..अब कितना सब्र रखूं..
कब आ जाएगा पूरे के पूरे 4 साल हो गए हैं एक बार भी नहीं आया और ना ही तुम बहू को उसके मायके जाने देते हो जरा सोचो कब तक अकेली रहेगी बिना पति के मैं कह देती हूं अब बहुत हो गया इंतजार तुम जाकर बिलायत से बुलाकर लाओ,नहीं तो बहू को उसके मायके जाने दो ..
भगत सह लक्ष्मी को समझाते हुए कहता है.. बहु अगर मायके चली जाएगी तो क्या वह लौट कर आएगी..
नहीं आएगी ..समाज में हमारी क्या इज़्ज़त रह जाएगी..
ना बेटा साथ में ..ना बहु साथ में ..
मानवी, रसोई के सभी काम करके अपने सूरज को फोन लगाती है पर फोन नॉट रिचेबल आता है फोन न लगने पर मानवी उदास हो जाती है...
तभी मानवी को सासू मां कहती है मानवी तू भी खाना खा ले रात ज्यादा हो गई है खा कर के सो जा..
जी अम्मा जी आप भी खा लो ..
मानवी, एक थाल में खाने परोस कर अपनी सांसु माँ को दे देती है.. और एक थाल में अपने लिए खाना परोसती है..
हमेशा की तरह,मानवी खाने से थाली भरी हुई लेकर छत पर ऊपर चली जाती है और बैठकर चाँद सितारों को देखने लगती है और बातें करने लगते हैं कहने लगती है ...
यह चाँद सितारे ही तो हमारे दोस्त है जो भी दिल की बातें हैं.. मन की बातें हुई ..इन्हीं चाँद सितारों के साथ मैं, कर लेती हूं और अपना मन हल्का सा महसूस कर लेती हूं और चाँद की रोशनी में बैठकर ही खाना भी खा लेती हूं, पता नहीं अब कब तक मुझे इंतजार करना होगा सूरज की कब वह मेरे पास आएगा और मुझे प्यार करेगा कितना भी फोन लगाओ पर फोन लगता ही नहीं ...
उस रात कुछ ज्यादा ही गर्मी थी मानवी ने,अपने बालों को खोल कर ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेने लगती है।
तभी, मानवी को एक ठंडी सी हवा उसके बदन को छूती हुई उसे अजीब सी एहसास की अनुभूति देते है..
मानवी खुद में बहुत ही अच्छा महसूस करती है वह मन में फिर से सोचने लगती है काश वो, हवा फिर से मुझे छू जाए और तभी उसकी मन की बात पूरी हो जाती है और बहुत ही शीतल ठंडी हवा की एहसास उसे महसूस कराती हैं..
अजीब सी एहसास को पाकर उस रात, मानवी बहुत ही ज्यादा खुश थी..और खुद के होठों पर प्यारी सी मुस्कान खिलाई थी...
फिर, थोड़ी ही देर में मानवी को एहसास होता है कि उसे कोई आवाज़ दे रहा है वह इधर-उधर देखती है और कोई दिखाई नहीं देता ..
मानवी, फिर से चाँद सितारों की दुनिया में खो जाती है और उससे बातें करने लगती हैं...
तभी मानवी अपनी थाली से खीर भरी कटोरी हाथों में उठाती है.. एक चम्मच खीर उठाकर मानवी उन हवाओं को खिलाने लगती है.. और उस दिन सच में वो हवा भी खीर खा लेता है... और खाली चम्मच ही मानवी खुद को खिलाती है.. इसतरह करते करते खीर भरी कटोरी खाली हो जाती है..
मानवी को लगता है.. खीर वो खुद ही खा रही है.. लेकिन ऐसा नहीं होता.. उस दिन कोई और ही खीर खा रहा था..
फिर से, मानवी के बालों में एक अजीब सी हलचल होती है इस अजीब सी एहसास हो मानवी पाते ही.. उसे ऐसा लगता है कोई उससे प्यार कर रहा हो पर उसे दिख नहीं रहा मानवी उस एहसास को पाकर बिल्कुल भी नहीं डरती और खुद में खुशी वाला एहसास को पाती है...
मानवी मन ही मन सोचने लगती हैं आज मुझे क्या हुआ आज मैं क्यों इतना खुश लग रही हूं.. क्या ये सही में हकीक़त हैं या फिर मेरी चाँद सितारों के संग दोस्ती का असर।
यह कैसी अजीब सी एहसास है जो मुझे ख़ुशियाँ देना चाहती हैं 4 सालों से मैं इस छत पर आती रहीं, लेकिन पहली बार मेरे साथ आज इतना ख़ुशनुमा अजीब सा एहसास हुआ .. लेकिन आज ही ऐसा क्या हुआ ...,,जो यह चाँद सितारे को मुझपर ज्यादा ही मेहरबान हो गए..
मानवी, के बदन में फिर एक ठंडी हवा की अजीब अहसास होते उसके बदन को छूते हुए जाती है..
मानवी उसे पकड़ना चाहती है खुद में रोकना चाहती है पर वह एहसास रुक नहीं पाती।
मानवी धीरे से आवाज़ लगाती हैं, तुम कौन हो तुम कौन हो यह मेरा कोई भ्रम है प्लीज मेरे सामने आओ तुम मुझे बताओ तुम कौन हो मुझे बताओ, मुझसे बातें करो..
तभी, लक्ष्मी अपनी बहू को आवाज़ लगाने लगती है वह बहू नीचे आ जा.. रात ज्यादा हो गई है आकर सो जाओ
जी अम्मा जी बस थोड़ी देर में आ गए।
मानवी नीचे नहीं जाना चाहती है उस एहसास को फिर से याद करने लगती है तभी फिर से वह एहसास आकर उसके कानों में हवा के जैसे गूंज जाती है ...सी सी सी ई ई ई
मैं एए..हूं मैं ए ए. . हूं मुझे पहचानो ...तुम्हारा ही एहसास मानवी ...
मानवी, कुछ नहीं समझ पाती और धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतर जाती है अपने कमरे में जाकर आराम करने लगती है लेकिन मानवी,को नींद नहीं आती वह अजीब सी एहसास को बार-बार याद करने लगती है.. और वो अजीब सी एहसास मानवी को सताने लगती है।
और मानवी चुपके से फिर से, छत पर चली जाती है और उसे ढूंढने लगती है पूछने लगती है... हवाओं में बातें करने लगती है तुम कौन हो..तुम मेरे सामने आओ।
तभी अचानक एक बहुत ही प्यारी सी बाँसुरी की धुन मानवी के कानों में सुनाई पड़ती हैं ...〰प्रेम की मीठे बांसुरी की मीठी धुन सुनकर माधवी उन हवाओं के संग नाचने लगती हैं और खुद में अजीब ही एहसास पाती है..
मानवी, उस अजीब सी एहसास की तरफ खिंची जाती है......मानवी बाँसुरी की मधुर धुन में, नाचते-नाचते खुद को किसी की बाहों में पाती है...
उसे, एहसास होता है कि मुझे किसी ने अपनी बाहों में थाम लिया...मानवी की अपने थिरकते कदमों को रोक लेती है ..और शर्माती हुए खुद से ही नज़रें चुराती है।
अजीब सी एहसास को खुद में पाकर वो बहुत अच्छा महसूस करती हैं... मानो,वर्षों से इसी एहसास का मानवी को इंतजार था...
मानवी,अपने दोनों बांहों को हवाओं में फैला कर खुद को हवाओं के संग महसूस करते हुए खुद में उन अजीब सी एहसास को जकड़ लेती है,और खुद में खोने लगती है।
अपनी आँखें मूंदकर धीरे-धीरे छत की ज़मीन पर बैठने लगती है उस एहसास को पकड़े हुए जो उसे प्यार दे रहा था ...अजीब सी एहसास वाली प्यार की खुशबू ...मानवी को खुद में महसूस हो रहें थे..धीमी धीमी प्यार की हलचल में खुद के संग प्यार भरी शरारतें कर रहीं थी..
उन अजीब सी एहसासों को मानवी कहने लगती है...
तुम, जो भी हो मेरे लिए बहुत ही खास हो मुझे छोड़कर कभी मत जाना आज मैं तुम्हें पाकर बहुत खुश हूं।
तभी चाँद की रोशनी बादलों के घेरे में जाने लगती है हवा भी रुक सी जाती है, आसमां का रंग,गहरी काली होने लगती है हवाओं में अजीब सी खुश्बू फैलने लगती है..
लेकिन इन सबका असर मानवी, पर कुछ भी नहीं होता।
मानवी बस उन हवाओं के अजीब एहसास की दुनिया में खुद को डूबा चुकी थी ...मानवी उस पल में अपनी जिंदगी जीए.. जा रही थी...
तभी धीरे से आवाज
़ आती है सुनो-सुनो...मुझे पहचानो पहले मेरी तरफ एक नजर देख लो एक बार मुझे देख लो उसके बाद मुझे महसूस करना...मैं बहुत ही बदसूरत हूं। मेरी आत्मा बदबू देने वाली है ....जब तुम अपनी आंखों से मुझे, देखोगी तो डर जाओगी मानवी...मानवी आँखें खोलो... पर,मानवी उसकी एक भी आवाज़ नहीं सुनती और बस अपनी बाहों में खुद की ज़िंदगी जीती है... ना मानवी की आँखें खुलती है और ना ही कुछ बोलती है।
अजीब सी एहसास में खुद को खुद ही के संग जोड़ कर उस पल में जिंदगी जी रही थी ...
रात ढलती जा रही थी धीरे-धीरे मानवी को नींद आ आगे लगी थी...
तभी वह दैत्य मानव, मानवी के बांहों से निकलकर काली हवाओं में गुम हो जाता है।
सुबह के 4:00 बज रहे थे ....लक्ष्मी अपने बहु के कमरे में जाती है वह कमरों में मानवी को ना देख कर डर सी जाती है फिर सोचती है शायद कहीं छत पर चली गई हो..रात बहुत ज्यादा गर्मी थी ....
लक्ष्मी सीढ़ियों से छत पर जाती है खुली छत पर मानवी को सोते देख कहती है.. बिना चादर के ही सो गई।
बहु अरी ओ बहु, उठना सुबह होने वाली है उठ जा..
मानवी की नींद, सासू माँ की आवाजें सुनते ही खुल जाती है और उसके चेहरे पर हर रोज की तरह उदासी नहीं बल्कि खुशी झलक रही थी ...
लक्ष्मी बहू का हँसता हुआ चेहरा देखकर खुश हो जाती है और बिना डांटे हुए प्यार से कहती है ऐसे ही सो गई.. खुली ज़मीन पर चादर तो बिछा लेती..
नहीं अम्मा जी, कल रात ज्यादा गर्मी थी ना इसलिए हवा का आनंद लेने आए थे लेकिन कब नींद आ गई पता ही
नहीं चला..
अच्छा ठीक है ठीक है कोई बात नहीं..चल अब नीचे चल सुबह होने ही वाली है...
मानवी, सीढ़ियों से उतर कर नीचे आ जाती है..और नहा कर पूजा पाठ करके रसोई के सभी कामों को करती है..
भगत साह, खाना खाकर अपने काम पर चले जाते है..
लक्ष्मी, भी खाना खा कर बगल के पड़ोसन के घर चली जाती है ...घर में अकेली बस मानवी ही रह जाती है।
मानवी,ब कल रात की बातों को याद करने लग जाती है और उसे याद आता है कि मुझे किसे ने आवाज़ दिया..
मैं हवा हूं मैं दैत्य हूं मेरी सूरत, बदसूरत है मेरे शरीर में कांटों की तरह चुभने वाली..,दर्द देने वाली है..,,घाव हैं.. मुझे पहचानो ...मुझे पहचानो...मानवी को जब वो बातें याद आती है तो मानवी उस पल को याद करके मायूसी हो जाती है और खुद से ही बातें करने लगती है...
जिस अजीब अहसास को पाकर मैं इतनी खुश थी... इन 4 सालों में पहली बार मुझे सच्ची प्यार हुआ .. तो, वो कैसे हैवान हो सकता है इन्हीं सवालों में डूब कर खो जाती है।
तभी दरवाज़े पर कोई आवाज़ लगाती है घर में कोई हैं.. मैं अंदर आ जाऊं ..
पर मानवी अपनी ख़यालों में डूबी कहां सुन पाती है..
फिर से दरवाज़े जोर जोर से खटखटाने की आवाज़ आती है.. कोई है घर में..कोई है घर में..
मानवी के कानों में किसी की आने की आवाज़ सुनाई पड़ती है...मानवी दौड़ती हुई घर के दरवाज़े के पास जाती है ...
अरी..तू है सावरी .. तो आवाजें क्यूँ.. लगा रही थीं बिना पूछे भी तो अंदर आ सकती थीं... अच्छा अब चल अंदर।
सावरी बगल में पड़ोसन की बेटी थी.. सावरी और मानवी, दोनों में खूब मित्रता थी दोनों अपनी अपनी दिल की बातें एक दूसरे के संग खूब कहा करती थी...
सावरी की शादी भी 4 साल पहले हो चुकी थी वो एक बिटिया की माँ भी थी, सावरी पूरे 2 साल बाद अपने मायका गांव में आई थी..
अच्छा ये बता कब आई, सब ठीक तो है..
बस भाभी, कल शाम को ही आई...
और मेहमान जी साथ में नहीं आए ...
आए थे पर, वो सुबह ही लौट गए उन्हें कुछ व्यापार में जरूरी काम थे.. इसलिए चले गए..
और बिटिया गुड़िया को कहां छोड़ आई...
नहीं भाभी लाई हूं पर वह सो गई और उसके नानी को बोल कर आई हूं कि वह देखती रहेगी, जब तक मैं तुमसे मिलकर ना जाऊं ..
अच्छा जी यह बात है चलो यह भी अच्छी बात है लेकिन अगले दिन गुड़िया को भी लेकर आना...मैं भी तो देखूं मेरी गुड़िया कितनी बड़ी हो गई है..
जी भाभी जरूर लाऊंगी,
अच्छा कहो अपने ससुराल की बातें कहो, सब ठीक-ठाक तो है ना ...सब तुम्हें प्यार करते हैं ना..
हां ..भाभी सब ठीक-ठाक है सभी मुझसे बहुत ही प्यार करते हैं.. पर, भाभी का काकी कह रही थी ..भैया ने अभी तक आने का कोई भी प्लान नहीं बताया क्या यह सही बात है ?
हां बिल्कुल सही बात है.. पहले तो बातें भी हो जाती थी लेकिन अब तो बात भी नहीं हो पाती ऐसे टाइम में फोन करते हैं जब मैं घर के कामों में बिजी रहती हूं..थोड़ी देर बाद जब मैं फोन करती हूं तो लगता ही नहीं..अब तू ही बता इसमें मैं क्या करूँ मेरी जिंदगी में बस इंतजार ही लिखा है।
हां भाभी बिल्कुल सही बोल रही हो आजकल तो दो-चार दिन पति पत्नी से दूर नहीं रहते जो सच्चे दिल से प्यार करते हैं अब मेरी ही देख लो बोल कर गए हैं बस 1 सप्ताह में चले आना मैं अगले सोमवार को आएँगे लेने मुझे तो मैंने भी कह दिया ...ठीक है, मैं तो आपकी मर्जी से ही चलूंगी और मैं भी नहीं रुकना चाहती ...उनके बिना कहां मन लगता है..
हां.. हां.. सांवरी, बिल्कुल सही बोल रही हो..
मेरा भी तो मन सूरज के बिना कहां लगता है ..
मेरे पति तो शायद अब वापस मेरे पास नहीं आना भी चाहते तभी तो बात भी नहीं करते... मैं कब तक इंतजार करूं और मैं तो मायके भी नहीं जा सकती ..मेरे ससुर को तो जानती हो ना जब तक सूरज जी आ ना जाए तब तक मैं कहीं नहीं जा सकती ...तब तो बिल्कुल ही मन नहीं लगता जैसे तैसे दिन कट जाती है..पर रात की तन्हाई कटती ही नहीं रात और भी लंबी हो जाती है ...बस चाँद और तारों के संग बातें करके खुद को बहला लेती हूं..अरे..सांवरी मैं तो तुझे बस बातें ही किए जा रहीं हूं.. मैं, तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूं।
नहीं.. नहीं..भाभी, फिर कभी खा लूंगी रहने दो ना अभी खाना खाकर आई हूं..
अच्छा सुन सावरी.. जब तक तू यहां है ..हर रोज मिलने आ जाया करना थोड़ा ही सही तेरे संग बातें करके कुछ पल तो खुश रह लूंगी..
हां.. हां.. भाभी, मैं जब तक हूं.. यहाँ पर आ.. जाया करूंगी आप चिंता ना करो..
दोनों खूब बातें करते हैं और बातें करते करते कब वक्त निकल जाती है और शाम को 4:00 बजने वाले हैं पता ही नहीं चलता ...
भाभी अब बहुत देर हो गई अब मैं जा रही हूं गुड़िया भी उठ गई होगी..,फिर मुलाकात होगी ..
ठीक है तू जा मैं तेरे आने का इंतजार करूंगी..
मानवी घर के कामों में लग जाती है और शाम होते होते रसोई के कामों में भीड़ जाती है और सोचती है ...
आज जल्दी ही रोटी बनाकर रख देती हूं.. ताकि सूरज जी से फोन पर बात हो सके..
मानवी, ससुर जी के आने से पहले ही रोटियाँ बना कर रख देती है रसोई की सभी काम को भी निपटा लेती है ..
तभी थोड़े देर बाद में..ससुर जी भी आते हैं।
लक्ष्मी..ओ ..लक्ष्मी, खाना बन गई तो ले आवो..
मानवी पहले से ही खाने की थाल सजाकर रखी हुई थी और अपनी सासू मां के हाथों में खाने की थाल थमा देती है..
लक्ष्मी, भगत के समीप खाना लेकर जाती है
भगत साह, ठंडी रोटियाँ देखकर गुस्से में लाल हो जाते हैं और ऊंची आवाज़ लगाते हुए बोलते हैं...अरी ओ बहु.. रोटियाँ गर्म करके जल्दी लाओ ..
मानवी जल्दी-जल्दी रोटियों को गर्म करने लगती है और फोन पर भी नजर रखती है कि फोन ना आ जाए...
तभी, कॉल भी आ जाती है और मानवी झट से कॉल रिसीव कर लेती है
हेलो जी...बोलो आप ठीक हो ना..
हां ..मैं ठीक हूं तुम सब ठीक हो मानवी ..
अपने उत्तर देते हुए कहती हैं मैं कैसे ..ठीक रह सकती हूं तुम्हारे बिना ....
सूरज कहता है हेलो ..हेलो ..तुम्हारी आवाज नहीं आ रही मैं फिर से कॉल करता हूं...
मानवी फोन रख कर, रोटियाँ गर्म करके.. खाने की थाली दे आती है..
आधे घंटे से भी ज्यादा वक्त बीत जाता हैं.. इंतजार करते-करते पर फोन कॉल नहीं आते ..
इधर से, मानवी कॉल बैक करती है... लेकिन कॉल नहीं लगता है ..नॉट रिचेबल बताता है..
मानवी, चेहरे पर उदासी लिए हुए अपने कमरे में चली जाती है।
to.. be....