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Manju Saini

Abstract

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Manju Saini

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ऐ चाँद

ऐ चाँद

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ए चाँद…

क्यों चिढ़ा रहा है मुझे अपने नूर से

आज नितांत अकेली मैं निशीथ में

स्याह रात ही लगती हैं उसके बिन

चाहे शरद की बादामी चांदनी तुम बिखेरो

ए चाँद…

किसी दिन फिर होगा मेरे साथ

मेरा रोशन सा चाँद भी फिर

तुम्हारी जरूरत ही नही होगी मुझे

आज तुम धवल चांदनी ले मानो

चिढ़ा रहे हो मुझे

ए चाँद…

आज ढूंढ रही हूँ वीरान सी राहों में खुद 

वो तुम्हारे पहलू में बैठ बाते करना उनसे

तारो में टकटकी लगाए आज मैं

खोई हूँ बीते लम्हो को पाने में

ए चाँद…

आज अपनी रोशनी को मद्धम कर लो

मन उदास हैं मेरा अपने चाँद के बिना

घर से निकल आज खोई हूँ तेरी चांदनी में

बैठ घर के बाहर खोई हूँ तुझमे

कभी तो होगा फिर से रोशन जहांन मेरा


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