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Risha Gupta

Romance

4  

Risha Gupta

Romance

अगर तुम साथ दो

अगर तुम साथ दो

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'देखिये आपकी बेटी का कैंसर अभी प्रारंभिक चरण में है, अगर समय पर इलाज शुरू हो गया तो वो जल्द ही ठीक हो जाएंगी।'


डॉ चारू के पापा को बता रहे,चारु के पापा थके कदमों से डॉक्टर के केबिन से बाहर आ गए, वह धीरे-धीरे डग भरते हुए चारु के कमरे के बाहर खड़े थे, उन्होंने देखा चारु अपने बिस्तर पर अकेली लेटी थी,छत को एकटक देख रही कितनी उदास, थकी और बीमार लग रही थी, चेहरे पर ना कोई तेज, ना जीने का जोश,बीमारी ने तो उसकी ये हालत कर ही दी पर इन सब में दिवाकर जी अपने आप को भी दोष दे रहे थे,आज अपनी बेटी की इस हालत की वजह शायद वह खुद भी हैं,और वह बाहर रखी बेंच पर ही बैठ गए, अपनी बेटी के सामने जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे,आंख बंद कर सिर दीवार के सहारे टिका कर वहीं बैठ गएI


'अरे सुधा हमारी बेटी के लिए एक बहुत ही अच्छा रिश्ता आया है, परिवार खानदानी रईस है, पूरे शहर में उनका नाम है,खुद चलकर हमारी बेटी का हाथ मांगा है,अपनी चारु की तो किस्मत खुल गई, नहीं तो कहां मैं उसके लिए ऐसा रिश्ता ढूंढ पाता,'


सुधा जी जो पेपर पढ़ने में व्यस्त थी, उन्होंने अपना चश्मा उतारते हुए कहा,


' वह सब तो ठीक है,पर लड़का क्या करता है',


सुनते ही चारु के पापा हंसते हुए बोले,


' अरे जरूरत क्या है उसे कुछ करने की,बाप दादाओ की विरासत है, पूरे जन्म भी दोनों हाथों से उड़ाएगा तो कम नहीं पड़ेगा',


सुधा जी रसोई में गैस पर चाय का पतीला रखते हुए बोली,


' अरे कितना भी पैसा हो पर लड़का कुछ नहीं करें मुझे कुछ सही नहीं लगता,अरे ऐसे लोगों के फिर शौक और ऐब भी कुछ कम नहीं होते,वैसे भी खाली दिमाग शैतान का घर होता है', सुधा जी ने दिवाकर जी को चाय का कप देते हुए कहा,


'और वैसे भी जब इतने पैसे वाले हैँ तो हमसे रिश्ता क्यों जोड़ रहे हैँ,उनको तो रिश्तो की लाइन लगी होगी ',


'तुम्हें तो ना हर बात में मीन मेख निकालने की आदत है, पर मैं इस रिश्ते को किसी भी हालत में हाथ से नहीं जाने दूंगा',


दोनों के बीच बहस हो रही थी,इतने में चारु कॉलेज से आ गई,जब उसको पूरी बात पता चली तो वह गुस्से से आग बबूला हो गई,


'पापा मेरे कॉलेज का आखिरी साल है,अभी मेरी पढ़ाई पूरी नहीं हुई,आपने सोच भी कैसे लिया,मेरे बारे में निर्णय ले रहे और एक बार भी मुझसे कुछ नहीं पूछा ',


उस दिन घर में बहुत बहस हुई, मां बेटी एक तरफ और दिवाकर जी एक तरफ, पर उन दोनों की दलीले मिला कर भी दिवाकर जी को अपने निर्णय से टस से मस नहीं कर पाई, आखिर चारु अपनी इच्छा के विरुद्ध नीलेश की दुल्हन बनकर ससुराल आ गयी I


सारे रिश्तेदार, बिरादरी उसकी किस्मत पर फख्र कर रहे,दिवाकर जी का तो गर्व से सीना चौड़ा हो गया, बेटी की विदाई का दुख जरूर था पर उसके सुखमय भविष्य की कल्पना मात्र से वह भावविभोर हो रहे I


चारु के ससुराल में उसके पीहर से बिल्कुल अलग रहन-सहन, पहनावा, खान पान सब अलग,सब कुछ बहुत अलग था, पता नहीं उनकी बातों से चारु को ऐसा महसूस होता जैसे उसको बहुत छोटा महसूस करा रहे हो, कई बार चारु को लगा अगर वह उसको उनके घर के लायक नहीं समझते तो रिश्ता ही क्यों करा, पर धीरे-धीरे उसकी वजह भी सामने आ ही गई I


पहली रात से ही उसको नीलेश की हरकतों का पता चल गया,वह सुहाग सेज पर नख से शिख तक तैयार होकर अपनी भावी दुनिया के सपनों में खोई हुई बैठी थी,सोच सोच कर उसका तन मन रोमांचित हो रहा, गाल शर्म से लाल हो रहे,पर नीलेश बहुत देर तक नहीं आया, अब तो नींद से उसकी आंखें बोझिल हो रही है,तभी उसकी ननद उसके कमरे में आई,


' अरे भाभी कब तक ऐसे ही बैठे रहोगी , भाई का कुछ पता नहीं आप सो जाओ, सुबह भी जल्दी उठना है मुंह दिखाई की रस्म है 'I


नीलेश का अभी तक ना आना और अपनी ननद के ऐसे रूखे बर्ताव से एक पल में उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए I


उसे याद नहीं कभी नीलेश ने उसे प्यार से देखा हो, उससे दो घड़ी बैठ कर बात करी हो, उसको तो अपने आवारा दोस्तों और उनकी गंदी सोहबत से ही फुरसत नहीं थी I


एक रात जब वह बहुत पी कर आया और अपनी जरूरत के हिसाब से चारु के शरीर को भोग रहा, इन पलों में ही सही चारु को उसके पास आने का सौभाग्य मिलता, वो सोचती एक दिन अपने प्यार से वो नीलेश को बदल देगी,अचानक से नीलेश के मुंह से निकल गया,


'रेनू आई लव यू, मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा हूं',


चारु जो अब तक नीलेश का साथ दे रही, सुनते ही उसका शरीर बिलकुल ढीला पड़ गया, वह समझ गयी कि वो नीलेश की बाहों में जरूर है, पर उसके मन और दिल में नहीं I


सुबह जब नीलेश को होश आया तो चारु ने उससे रेनू के लिए पूछ लिया, नीलेश ने भी सब बता दिया कि उससे शादी तो उसकी मजबूरी थी, उसकी जिंदगी में जो भी है बस रेनू है और उसकी जगह कभी कोई नहीं ले सकता, वह तो घरवाले उसकी पसंद के खिलाफ थे, इसलिए जल्दबाजी में तुम मेरे गले पड़ गई,कहता हुआ नीलेश कमरे से बाहर चला गया I


चारु धम्म से पलंग पर बैठ गयी,आंसू कब उसकी आंखों के बाहर निकल गए उसको पता ही नहीं चला, उसको लगा था शायद उसके प्यार से नीलेश सुधर जाये, पर नीलेश आज उसकी वो बची आस भी तोड़ गया I


चारु अपनी किस्मत समझ सब कुछ सहन कर रही,उस दिन के बाद तो वो एक मशीन की तरह बन गयी,दिन में घर वालों की जरुरत, रात को नीलेश की, सच जीती जागती जिंदा लाश बन गई, जिसमें ना कोई उम्मीद, ना उमंग ना उत्साह I


कुछ दिन से चारु की तबीयत सही नहीं रहती, एक दो बार तो चक्कर खाकर गिर गई, पर कौन ध्यान देता, आखिर जब एक दिन ज्यादा ही तबीयत खराब हुई तो डॉक्टर को दिखाया, तब पता चला उसको कैंसर हैँ Iससुराल वालों को वैसे ही उससे कोई लगाव नहीं था, उसकी बीमारी की बात से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा और एक दिन उसको बोझ समझ उसके पीहर छोड आये और आरोप और लगा दिया की आप लोग ने जानबूझकर एक बीमार लड़की हमारे हट्टे कट्टे बेटे के गले मढ़ दी, आज के बाद हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं, जल्दी तलाक के पेपर आपके घर भिजवा देंगे I


चारु के मां-बाप के पैरों तले जमीन खिसक गई, दिवाकर जी इन सब का दोषी खुद को ठहराते पर चारु उसको तो ना किसी से कोई शिकायत ना किसी को दोष देती,उसके अंदर शायद ही कोई भाव बचे थे Iआखिर उसका इलाज शुरू कराने के लिए उसे इस हॉस्पिटल में ले आये I


चारु के पापा वर्तमान में आ गए,कल चारु की कीमोथेरेपी होनी हैँ,बड़ी मुश्किल से उसे समझाया, वो तो इलाज कराने को तैयार ही नहीं थी, आखिर अब जीकर भी क्या करेगी I


उस दिन जब उसको कीमोथेरेपी के लिए ले जा रहे,उसके मां-बाप के प्राण जैसे हलक में अटक गए,अपनी बेटी को जी भर देख लेना चाहते थे, कैसे हंसती खेलती लड़की बिल्कुल निस्तेज हो गयी I


कीमोथेरेपी के असहनीय दर्द ने उसके दर्द को और बढ़ा दिया,अब वो ना कुछ खाती पीती, ना कुछ बोलती,डॉक्टर ने कहा इनका बहुत ध्यान रखना पड़ेगा,जब तक उनकी खुद की जीने की इच्छा नहीं होगी, केवल इलाज काम नहीं करेगा Iउसके मां-बाप उस को खुश रखने का हर प्रयत्न करते पर कुछ असर नहीं हुआ, उसकी हालत दिन पे दिन बिगड़ती जा रही I


एक दिन चारु की मां ने उसकी सबसे अच्छी सहेली शैलजा को फोन किया और उसे सब बताया,अगले दिन शैलजा और उसके दो दोस्त उससे मिलने हॉस्पिटल आए, चारु अपने ख्यालों में खोयी थी,


' हेलो चारु कैसी हो?'


इतने दिन बाद जानी पहचानी आवाज सुन चारु ने आँख उठा कर देखा, उसके सामने शैलजा विनीता और मिहिर खड़े थे, उन चारों की कॉलेज में चौकड़ी थी, सब उनकी दोस्ती से चिढ़ते भी थे और मिसाल भी देते थे, चारो एक दूसरे के हर सुख दुख में हाजिर I


एक बार तो अपने सामने उन तीनो को देख उसकी आंखों में चमक आ गई पर फिर उसने मुंह फेर लिया I


शैलजा उसके पलंग के पास आकर बैठ गई, चारु के मम्मी पापा बोले,


' तुम लोग बात करो हम बाहर बैठे हैं' I


'चारु हम चारो इतने दिन बाद इकट्ठे हुए,बात नहीं करेगी, तेरे साथ इतना कुछ हो गया और हमें बताना जरूरी नहीं समझा, हम सब तुझे कितने फोन और मैसेज करते पर तूने तो हमारे फोन उठाना बंद कर दिया, धीरे-धीरे हम भी हमारी पढ़ाई में व्यस्त हो गए',


शैलजा बोले जा रही,चारु की आंखों से आंसू बह रहे, आसुओ से उसका तकिया पूरा भीग चुका था, अचानक वह शैलजा के गले लग गई,


'शालू मैं क्या करती, पता नहीं भगवान मुझे किन पापों की सजा दे रहा हैँ,क्या बताती तुम सबको, मेरे पास बताने को भी कुछ नहीं बचा'


उस दिन चारु खूब रोइ,उसके दोस्तों ने भी उसे रोने दिया Iउस दिन के बाद अब रोज उसके दोस्त उससे मिलने आने लगे,चारु भी अब कुछ बातें करने लगी,थोड़ा खुश रहने लगी, पर कई बार उसकी बातो से लगता जैसे उसके अंदर जीने की इच्छा बिल्कुल नहीं बची I


एक दिन मिहिर अकेला आया, शैलजा और विनीता को कुछ काम था, मिहिर शुरू से उसे पसंद करता था, कॉलेज टाइम में कई दफा उसे बताने की कोशिश भी करी, पता नहीं चारु समझी या समझ कर भी अनजान रही I


मिहिर को अपने सामने देख चारु के चेहरे पर मुस्कान आ गयी,


'कैसे हो मिहिर,आजकल बड़े चुप-चुप रहते हो, कॉलेज में तो कितना बोलते थे, और शादी कब कर रहे हो ',


एकाएक पता नहीं क्यों मिहिर अकेले चारु का सामना नहीं कर पा रहा,उसका गला भर आया, उसने अपनी आंखें फेर लीं,चारु ने मिहिर के हाथ पर अपना हाथ रखा,


'मैं जानती थी मिहिर तुम मुझे पसंद करते थे, पर मैंने तुम्हारे लिए ऐसा कभी नहीं सोचा था, मैं सिर्फ तुम्हे दोस्त मानती थी ',


मिहिर चारु की तरफ मुँह करके बोला,


' पसंद करता था नहीं चारु ... आज भी पसंद करता हूं, मै तुम्हें चाहता हूं,मेरे दिल में तुम्हारे सिवा कोई नहीं है',


चारु के चेहरे पर एक फींकी मुस्कान आ गई,


' अब मुझे पाकर क्या करोगे मिहिर ,मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं, मैं तो खुद खुश नहीं तो तुम्हें क्या खुश रखूंगी'


' क्यों नहीं चारु अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, मैं आज भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूं,तुमसे शादी करना चाहता हूं',


' पागल हो तुम,सब कुछ जानबूझकर कैसे ऐसा बोल सकते हो, कही तुम मुझ पर दया तो नहीं कर रहे ',


चारु चिल्ला कर बोली,उसकी आंखे गुस्से से लाल थी,कुछ देर कमरे में सन्नाटा रहा,जब चारु थोड़ा सामान्य हुई तो वो मिहिर से बोली,


' मिहिर मुझे उस शीशे के सामने ले चलो ',


मिहिर के सहारे वो धीरे से बेड से उतरी,


'देखा मिहिर क्या हालत हो गयी, बिना सहारे के उठ भी नहीं सकती ',


चारु के स्वर में बहुत दर्द था,मिहिर उसे शीशे के सामने ले आया,


' देखो मिहिर मेरी हालत देखो, मेरे बाल देखो, धीरे-धीरे जितने बचे हैं वह भी झड़ जाएंगे, मैं खुद शीशा देखना पसंद नहीं करती,तुम्हारी जिंदगी कैसे बर्बाद कर दूं ',


मिहिर ने उसे पास रखे सोफ़े पर बैठाया,खुद उसके पास जमीन पर बैठ गया,उसका हाथ अपने हाथ में ले बोला,


'चारु ये जीवन है, यहाँ पतझड़ आता है तो बसंत भी आएगा, बस तुम हां कर दो मैं तुम्हारे जीवन में बसंत लेकर आऊंगा, और हाँ मैं तुम पर कोई दया नहीं कर रहा, बल्कि अपने को खुशनसीब समझूंगा ',


'नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती,मैं तो जीना ही नहीं चाहती, '


और चारु ने अपने मुँह पर दोनों हाथ रख लिए और फूट-फूट कर रोने लगी, मिहिर ने चारु के चेहरे पर से उसके हाथों को हटाया, उसके आंसू पोंछे और कहा,


' तुम्हें जीना होगा...मेरे खातिर जीना होगा,आज से तुम्हारी जिंदगी पर मेरा भी हक हैँ,अपने लिए नहीं तो मेरे लिए जीना होगा,खाओ मेरी कसम खाओ',


एकाएक चारु मिहिर की बाहों में समा गई,

' मिहिर मैं जीना चाहती हूं, तुम्हारे लिए... अपने लिए, क्या मेरे जीवन में फिर से बसंत आ पायेगा,


इतने दिन बाद शायद मिहिर का प्यार उसे ख़ुशी दे गया,


मिहिर उसके बालो में ऊँगली फिराता हुआ बोला,


'क्यों नहीं आएगा, जरूर आएगा चारु...बस अगर तुम साथ दो ',


चारु ने अपना हाथ मिहिर के हाथ मे दिया जैसे साथ देने का वादा कर रही हो I


चारु के मम्मी पापा,शैलजा और विनीता पीछे खड़े थे,सबकी आंखों में आंसू थे पर आँखे कई अरमानो से सजी हुई थी I




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