खोयी हुई चाभी
खोयी हुई चाभी
"कितने दिन हो गए बेटा फोन ही नहीं करती आजकल I कहां हैँ,सब ठीक तो है ना।"
छाया की माँ ने फोन पर छाया से कहा तो छाया अचानक से रोने लगी I उसके रोने से छाया की मां का दिल घबरा गया,
"क्या बात है बेटा, सब ठीक तो है ना I बता ना,देख ऐसे रोती रहेगी मेरा दिल बहुत घबरा रहा है I पहले चुप हो ।"
छाया हिचकी लेती बोली,"माँ मैं हार गई,हार गई माँ मैं ।"
छाया की माँ घबराई सी बोली,
"क्या हुआ बेटा बता तो सही।"
"माँ मैं किसी को नहीं संभाल पा रही, ना घर ना बच्चे और ना ही पति I एक रिश्ता संभालती हूँ तो दूसरा हाथ से छूट जाता हैँ I हर किसी को कोई ना कोई शिकायत है ।"
छाया की माँ बोली,
"बेटा मैं समझी नहीं क्या कहना चाहती हैँ।"छाया नम आवाज मे बोली,
"माँ बच्चे कहते हैं हम लोग उनकी जिंदगी में जरुरत से ज्यादा दखल देते हैं,उनको स्पेस नहीं देते I निलय को लगता है मैं बच्चों पर ध्यान नहीं देती,इस कारण हम दोनों में भी तनाव रहता है I खुशियां तो मेरे घर से मानो रूठ ही गई,मानो कहीं खो गई जो ढूंढने पर भी नहीं मिल रही।"
छाया की माँ उसे समझाते हुए बोली,
"बेटा तेरे घर की खुशियां नहीं खोयी ,तेरे घर की चाबी खो गई।"
माया थोड़ा चिढ़ते हुए बोली,
"क्या कह रही हो माँ, कौन सी चाभी I अब पहेलियाँ मत बुझाओ मैं पहले ही बहुत परेशान हूं।"
छाया की माँ उसे प्यार से समझाते हुए बोली।
"बेटा ये जो घर होता हैँ न उसकी एक चाभी होती हैँ हम सब के पास, और चाभी क्यों चाभियों का गुच्छा होता हैँ,उस गुच्छे मे तरह तरह की चाभी होती है,कोई प्यार की, कोई विश्वास की,कोई धैर्य की,और कोई एक दूसरे को समझने की I जब भी तुझे लगे इस जगह पर कोनसी चाभी लगेगी बस वही चाबी उस गुच्छे से निकाल उसकी जगह पर लगा I देखना तेरी खोई हुई चाबी मेरा मतलब खुशियां मिल जाएंगी I बेटा यही कही है कही नहीं गयी, बस ढंग से ढूंढ I याद कर कभी-कभी हम भूल जाते हैँ, लापरवाही में चाबी रख पूरे घर मे ढूंढ़ते रहते हैं, परेशान होते हैं,पर जहां देखना चाहिए वहीं नहीं देखते ।"
मां की बात सुन छाया को एक आशा की किरण दिखी,"चल माँ मैं फोन रखती हूं।"
"क्या हुआ बेटा कुछ काम है।"
"हाँ माँ मेरी खोई हुई चाबी ढूंढनी हैँ, थोड़ा समय तो लगेगा ही।"
और वो एक नयी उम्मीद से अपनी खोयी चाभी ढूंढने लगी I
