अदनी सी लड़ाई
अदनी सी लड़ाई
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भरी गर्मी में सड़क पर चलते चलते कल तक यूँही दूर तक नज़र जाती थी तो पार्क की हरी भरी घास पूरी तरह सुखी हुई मालूम हो रही थी। वहाँ से रोज़ गुजरते हुए उस पीली और सुखी हुई घास को देखकर मुझे अहसास होता था की इस हरे भरे और छोटी छोटी सी घास ने भी अपनी पूरी ताकत लगा कर सूरज से लड़ाई लड़ ली हो लेकिन अब उसने भी हार मान ली है।
लेकिन यह क्या?
आज अचानक देखा की रात में हल्की सी बरसात की बुंदाबांदी से उस पार्क से हल्की हल्की हरी हरी सी घास फिर से दिखने लगी है।मुझे लगा की यह छोटी सी घास भी हार न मानकर अनुकूल समय आने पर फिर से खड़ी हो जाती है और उस ताक़तवर सूरज से भी सवाल करने से की कोशिश करने लगती है।फिर हम क्यों इस कोरोना की महामारी से डरते फिरे?
थोड़ी एहतियात की ज़रूरत है।कुछ अर्से बाद आपसी रिश्तों में घुलना मिलना करेंगे तो हम इसपर भी काबू पा लेंगे और हमारी जिंदगी फिर से ख़ुशगवार होगी....