अधूरे सवालों का जवाब
अधूरे सवालों का जवाब
नीता अपने माँ-पापा की इकलौती बेटी थी। बहुत ही समझदार,सुंदर,गुणों की खान थी। माँ-पापा की तो जान बसती थी उसमें। पढ़ाई पूरी होते ही माँ-पापा उसके लिये योग्य वर तलाशने लगे। बहुत सोच विचार के बाद राहुल को नीता के लिए पसन्द किया गया। नीता को भी राहुल बहुत पसंद था, खुशी-खुशी हाँ बोल दी उस वक्त पर जैसे ही घर में शादी की तैयारियां शुरू होने लगी तो अपने माँ-पापा से दूर जाने के ख्याल मात्र से ही नीता का दिल बैठ जाता। जैसे-जैसे शादी का दिन पास आ रहा था नीता के मन मे बेचैनी बढ़ती गई। हर वक्त बस यही सोचती कैसे रहेगी ससुराल में माँ-पापा के बिना और उसके जाने के बाद माँ-पापा का मन कैसे लगेगा। नीता के मन की यह उलझन माँ से ज्यादा देर तक छुपी न रह सकी।।
माँ ने नीता से परेशानी का कारण पूछा तो नीता की आँखों से आंसू निकल पड़े। रोते हुए बोली, "मां!!आपको पता है न मै आपसे और पापा से ज्यादा देर तक दूर नही रह सकती फिर आप मुझे क्यों पराये घर मे पराये लोगो के बीच भेज रहे हो?? क्यों आप मुझसे इतने तंग आ गये कि मुझे घर से यूँ निकालने की तैयारी कर ली?? क्या आप मुझे हमेशा के लिये अपने घर अपने पास नही रख सकते?? क्या मै अब आप दोनों पर बोझ बन गई हूँ?" नीता की माँ की आँखों से भी आंसू निकल पड़े। प्यार से गले लगाते हुए बोली, "पगली कहीं की.. बेटियां तो माँ-बाप की जान होती है..यह ईश्वर की अनमोल देन होती है..भला बोझ कैसे हो सकती है..पर बेटा!! यहीं तो दुनिया की रीत है.. राजे महाराजे भी अपनी बेटियों को पूरी उम्र के लिये घर नही बिठा पाए तो हमारी क्या औकात है.. वैसे भी तू बेगाने घर बेगाने लोगो के बीच थोड़े जा रही है.. वह भी तेरे अपना घर है और वहाँ रहने वाले सब तेरे अपने होंगे..बस तू सबको दिल से प्यार व सम्मान देना और बदले में तुझे भी तेरे हिस्से का प्यार जरूर मिलेगा..।"
माँ के समझाने के बावजूद नीता का मन कुछ भी समझने को बिल्कुल तैयार नही था। उसके मन मे अभी भी कुछ सवाल ज्यों के त्यों खड़े थे। आखिर में माँ ने कहा, "बेटा!! जब कुछ समझ न आये तो सबकुछ समय के भरोसे छोड़ देना चाहिए... समय आने पर तुझे तेरे सवालों के जवाब जरूर मिलेंगे..। " आखिर नीता माँ-पापा की ढेरों दुआए व आशीर्वाद लेकर ससुराल विदा हुई। हंसमुख,पढी लिखी, समझदार नीता जल्द ही ससुरालवालों की चहेती बन गई। समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ा। नीता दो प्यारे से बच्चो की माँ बनी। दोनों बच्चे स्कूल जाते और नीता पीछे से घर संभालती। साथ में पति की व्यापार में मदद भी करती।
फिर एक दिन माँ ने फोन करके कहा, "बेटा!! हमारा बिल्कुल भी मन नही लग रहा। तेरी याद भी बहुत आ रही है। तू ऐसा कर महीने भर के लिये यहाँ हमारे पास रहने आ जा।" यह सुनकर नीता बहुत हैरान रह गईं। एक ही सांस में बोली, "माँ!! ऐसा कैसे हो सकता है। मै भला आपके पास महीने भर के लिये कैसे आ सकती हूं। मेरे पीछे से मेरे पति,मेरे बच्चे,मेरे बूढ़े सास ससुर,मेरा घर यह सब कौन संभालेगा?? आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया। नही नही, मै अपनी गृहस्थी छोड़कर आपके पास रहने नही आ सकती।" माँ हंस पड़ी और बोली, "नही, मेरी बच्ची!! सब छोड़कर तुझे हमारे पास आने की कोई जरूरत नही..मै तो बस यही चाहती थी तुझे तेरे अधूरे सवालों का जवाब मिल जाए..बेटा!! आज जिस घर,गृहस्थी की तू बात कर रही है यही अब तेरा संसार है..और तेरे इस संसार को आबाद करने के लिये तुझे एक दिन हमने अपने से अलग किया था..सोच!!अगर उस समय हम मोह में आकर तुझे हमेशा के लिये अपने पास रख लेते तो क्या तू अपनी इस दुनियां का आनंद ले पाती...तुझे अपने से दूर करते समय दिल पर पत्थर तो हमने भी रखा था पर बेटा यह सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा संसार बसाने के लिये..तुम आज भी हमारे दिल का टुकड़ा हो और हमेशा रहोगी..बस अपने घर खुश रह..।" यह कहकर माँ का गला भर आया और उन्होंने फोन बंद कर दिया। उधर नीता भी रो रही थी। आज उसे अपने सारे अधूरे सवालों का जवाब मिल चुका था।
सचमुच पाल पोसकर बेटियाँ विदा करना सरल नहीं परन्तु हर माँ-बाप को दिल पर पत्थर रख यह रीत निभानी पड़ती है ताकि बेटी की नई गृहस्थी बस सके परन्तु जब उनके दिल के टुकड़े को ससुराल मे उचित मान सम्मान नही मिलता जिसकी वह हकदार है तो सोचो उन माँ- बाप के दिल पर क्या बीतती होगी। किसी की बेटी के साथ बुरा करने से पहले जरूर सोचना चाहिए जो आज बहु बन हमारे सामने खड़ी है वह भी किसी की बेटी है और हमारी बेटी ने भी किसी घर की बहू बनना है। बस इसीलिए हर बहू बेटी को उसके हिस्से का प्यार व मान सम्मान देना हम सबका फर्ज है।
