अधूरा इश्क
अधूरा इश्क
सोशल मीडिया पर साल भर की बहुत सी बातों के बाद उससे पहली बार मिला। वैसे तो अपने बोलने से ज्यादा सुनने की आदत के चलते सबसे यही बोल देता हूँ " मैं सामने से ज्यादा बात नहीं कर सकता' ऐसा ही उस दिन भी बोल दिया था। वो अपनी किसी कॉन्फ्रेंस के चलते शहर में थी और दोपहर में निकलने वाली थी। सुबह के 8:30 पर होटल के वेटिंग एरिया में हम दोनों अपने अपने फ़ोन में लगे वैसे ही चैट कर रहे थे जैसे पहले हर रोज करते थे। वो अचानक से उठ पर मेरे सामने आयी और अपने दोनों हाथ मेरे हाथ में दे दिए। मैंने उन काँपती हुई हथेलियों को छुआ उसके नाख़ून ठंडे से हो रहे थे और अगले ही पल मेरी कलाई का ब्रेसलेट उसकी कलाई में था।वो उस ब्रेसलेट को बारी बारी से होंठो से और माथे से लगाए जा रही थी। रिसेप्शन पर बैठें आदमी की नज़रों से असहज होकर उसने कहा-"क्या हम बाहर चल सकते हैं" अगले ही पल सर्द सी खाली सड़क पर हम दोनों अलग अलग चल रहे थे। सूरज ने शायद भाँप ली थी हम दोनों के बीच की बर्फ तभी तो उसे पिघलाने को गुनगुनी धूप बिखेर दी थी अब हम होटल की सीढ़ियों पर बैठें थे। उस दिन 3 घण्टे की मुलाक़ात जैसे 3 सेकंड में खत्म हो गयी हो, प्रेम और समय की जैसे कोई दुश्मनी हो, इंतजार में समय खुद को विकराल कर लेता है और मिलने पर खुद को समेट कर कुछ बातें अधूरी छोड़ देता है। उस दिन भी मैंने कुछ बातें-" चलो फिर बताऊँगा" बोलकर आगे की गुंजाइश छोड़ दी, यही गुंजाईश ही तो भविष्य की संभावनायें को पालती हैं। उस दिन उसने उसने जाते जाते दिल में प्यार का जो गुबार दिल में भरा उसके बाद से खुद को दुनियाँ का सबसे भारी इंसान से महसूस करने लगा था मैं, अरे मै कौन? लो जल्दी जल्दी में बताना ही भूल गया मैं अमित और ये जो बात मैंने बताई वो मेरी उससे पहली मुलाकात की घटना है अब आप सोचेंगे वो कौन .नेहा .जो शरीर से एक लड़की जो अभी अभी कॉलेज में आयी थी घर पर पिता की अचनाक मौत के बात उसकी उम्र अचानक से 50 से ऊपर हो गयी थी..और मैं कॉलेज स्टूडेंट जिसमें बेफ़िक्र है जो सपने देखता है और बस सपने देखते रहना चाहता है और वो ऐसी जैसे किसी ने जीवन के अनुभव को किसी गहरे पानी पर बिखरे दिया हो एक दम शांत,
पहली मुलाकात को आज एक साल हो चुका है सब कितना साफ साफ याद है जैसे कल ही बात हो ..
उस पहली और आखिरी मुलाकात के बात हमारी बातों के मुद्दे बदल चुके हैं, मै अब दुनियाँ में हमारे प्रेम के भविष्य की संभावनाये तलाश करने में जुट गया हूँ..कॉलेज के बाद एक प्राइवेट कंपनी में काम करते करते खुद को खपाने में लग गया, 'धन ही एक मात्र साधन' इसे मूल मंत्र मान धन संचय में झोंक दिया खुद को, और फिर एक दिन समाज में जातिवाद की जड़ को कमजोर समझ अपने प्रेम के बारे में जब माँ पापा से जिक्र किया तो पता चला धन के अलावा भी बहुत कुछ है जो शादी में 'देखा' जाता है..प्रेम अंधा होता है लेकिन शादी में बहुत कुछ देखा जाता है ऐसा कुछ था जो जहन को जला रहा था। उसकी उम्मीदों को टूटता देख अब उससे भागने लगा था..फिर एक दिन किसी बात कर बहाना लेकर हमने एक दूसरे से बात करना बंद कर दिया, उसको सोसल मीडिया पर खुश देख कर अच्छा लगता है, और परेशान देखकर बुरा भी..इश्क़ सिर्फ मिलने का नाम नहीं, इश्क़ वो है जो तुम्हें तुमसे मिलाये। घर से बाहर रहते हुए और उस प्रेम प्रसंग की घटना के बाद पिताजी से जो दूरी बनी वो उसके कहने और समझाने पर अब ख़त्म हो गयी है. वो जो कहती थी रिश्ते बनना कोई बड़ी बात नहीं है रिश्तों को जीना बड़ी बात है भागदौड़ में हम रिश्ते जी नहीं पाते...आज जब वर्क फ्रॉम होम की आख़िरी चाल के बाद ऑफिस के एक मेल ने 27 साल में ही रिटायरमेंट के दिन दिखा दिए हैं। 2016 से अब तक प्लान B के तहत भरे सरकार फार्म अब उम्मीद की आखिरी रौशनी से दिख रहे हैं, इसी रौशनी को तेज करने के लिए किताबों से धूल उड़ाने की कोशिश की जाने लगी है। किताबो के कोनो पर लिखा वो नाम अचानक से झुंझलाहट से भर देता है। 5 मिनट किताबों से लंबी लड़ाई लड़ने के बाद(हाँ अब किताबों के साथ 5 मिनट भी 5 साल के बराबर होते हैं) अब सुकून तलास करने के लिए खोने की कोशिश हो रही है । हर उस गाने को सुना जा रहा है जिसका कोई मतलब न है जिसमे सिर्फ शोर है...शोर खोजते खोजते हिंदी भोजपुरी पंजाबी में भटक रहे हैं...और 'ये जो भटकना है ना, यही कहीं पहुँचने का रास्ता है' खुद से ये बात बोल बोल कर ज़िंदगी को ज़िंदा रखने में लगे हुए हैं...और फिर कान में एक पंजाबी गीत के बोल ठहर से गए हैं....." एक तो तेरी याद सतावे दूजा ये सरकार नी..
चंडीगढ वालिये मिसकॉलन ना मार नी चंडीगढ वालिये..
हुड नी मुड़दे यार नी"......