अभिनय
अभिनय


लोकतंत्र के बारे में उसकी परिभाषा कुछ अलग ही थी।
“साहब। हर उम्मीदवार एक से बढ़कर सच्चा और ईमानदार होता है। होता कहाँ है। बस अभिनय करता है। वोटर भी एक ही चेहरे में अंधा। बहरा और गूंगा होने का किरदार अदा करता है। लोकतंत्र बस एक छद्म मंच है साहब। ”
वह बगैर मुखौटे का एक रंगकर्मी था।