अब्दुल के राम
अब्दुल के राम
आज अंतिम संध्या फेरी हो रहा था नवलखा गाँव मे जिसमे लोगों को सूचित किया जा रहा था कि कल से रामलीला का मंचन प्रारम्भ हो जाएगा। इस संध्या फेरी में पाँच से लेकर पंद्रह आयुवर्ग के बच्चे गली - गली में घूमते हुए नारा लगाते हैं।आगे चलते दो बच्चे कहते है "कल से" पीछे से सभी बच्चे बोलते "नवलखा गाँव मे रामलीला होगा " । फिर आगे वाले बच्चे बोलते " कहाँ पर" पीछे से सब बोलते " बुढ़िया चौपाल पर "।
अंतिम दिन इस बाल मंडली का नेतृत्व करते हुए रामलीला समिति के अध्यक्ष पहलवान बाबा सबका अभिवादन करते - स्वीकारते रामलीला देखने आने का निमंत्रण दे रहे थे। लोगों की भीड़ ही मंचन की सफलता का पैमाना होता था। यह इस गाँव की बरसों पुरानी परंपरा सी बन गयी थी।
संध्या फेरी तीन दिन पहले से शुरू हो जाती थी ताकि कोई भी व्यक्ति अनजान नहीं रह जाए। इस परिक्रमा में गांव की कोई भी गली छूटनी नही चाहिए और जो बच्चा जितना जोर से बोलता था उसका बानर या राक्षस सेना मे रोल पका हो जाता था। इसलिए गाँव के सभी बिरादरी के बच्चे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। जो ग्राम फेरी में भाग नही लेता था उसको किसी भी प्रकार की भूमिका नही मिलती थी। उन दस दिनों मे मंच पर चढ़ने का मौका मिलना ही गर्व का पल होता था। बचपन मे इतनी खुशी मिलती थी जो आज ओलिम्पिक गोल्ड मेडल पाकर या सलमान के साथ सेल्फी लेकर भी नही होगी। उन दस दिनों में यही चर्चा रहती किसको कितनी बार मंच पर चढ़ने का मौका मिला। भले ही किसी कलाकार को मिली इनाम राशि को उद्घोषक के हाथ मे देने के लिए ही क्यों ना मंच चढ़ा हो।
राम या लक्ष्मण की भूमिका मिलना तो ऑस्कर मिलने जैसा संतोष देता था।
कमोबेश राम का रोल निभाने की हसरत तो गाँव के सभी बच्चों में होती। यदि शक्ल अच्छी हो और अवसर न मिले तो वो अपने को अभागा समझने लगता। अधिकतर राम की भूमिका निभाने का अवसर गाँव के दबंग भूमिहार जाती के लड़के को ही मिलता था। यदि कोई भूमिहार लड़का राम की कसौटी पर खरा नही उतरा तभी दूसरी बिरादरी के लड़के को मौका मिलता था। चौदह से सोलह साल के बीच के उम्र के लड़के मे से ही राम का चयन होता था। कौन राम बनेगा इसका निर्णय पहलवान बाबा ही करते थे। अपने चयन में पहलवान बाबा लगभग निष्पक्ष रहते थे क्योंकि उनके पात्र चयन की हमेशा सराहना होती थी। हर साल राम की भूमिका में नया चेहरा होता था और मंच पर आने के बाद ही लोगो को मालूम पड़ता था की इस साल राम की भूमिका किसको मिली है। राम की पात्रता के लिए उम्र और सूरत के अलावे रामकथा का ज्ञान भी एक आधार था। इसके चलते हमारे गाँव मे अधिकतर लोगों को रामचरितमानस की बहुत सारी चौपाई और पूरी रामकथा कंठस्थ है।
राम की भूमिका का एक अभ्यार्थी और प्रबल दावेदार है तेरह साल का अब्दुल। अपने पाजामे का नारा बांधते हाँफते वह भी संध्या फेरी में शामिल हुआ और स्लोगन बोलता रहा। हमेशा की तरह पहलवान बाबा के दालान पर संध्या फेरी का समापन हो गया।
सभी लड़कों को पहलवान बाबा ने अपने हाथों से एक -एक बूंदी का लडू दिया।
सभी बच्चे अपने घर चले गए लेकिन अब्दुल अभी भी वहीं खड़ा था। तभी बाबा की नजर उसपर पड़ी। उन्होंने पूछा अब्दुल दो दिन तुम फेरी में नही दिखा क्या बात है।
बहुत उदास होकर बोला बाबा मै नानी के यहाँ चला गया था। लेकिन मैं आज भागकर आ गया क्योंकि अंतिम संध्या फेरी में नही शामिल होने पर वालंटियर से मेरा नाम कट जाता।
पहलवान बाबा हँसते हुए उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले ऐसा नही होता बेटा।तुम तो बहुत प्यार बच्चा है। हर साल शामिल रहता है और इस साल भी रहेगा। यह नियम तो उनके लिए है जो वालंटियर के नाम पर केवल लडू खाने और रोज का भोग पकवान का प्रसाद खाने आ जाते हैं।
अब्दुल खुश हो गया और बोला बाबा क्या अगले साल साल मै भी राम बन सकता हूँ?
बडा ही स्वभाविक और मासूम प्रश्न था। लेकिन इसका उत्तर बहुत ही कठिन था। क्योंकि अब्दुल इसी गाँव का है, खूबसूरत भी है और उत्साही भी है। पहलवान बाबा को तो उसमें राम बनने के सारे लक्षण दिख रहे हैं। लेकिन क्या उसका परिवार तैयार होगा और इस गाँव की जनता उसको राम के रूप में देखना स्वीकार करेगी।
गोमांस खाने वाले राम ,अपूर्णलिंगा राम ,नमाजी राम , इंशा अल्लाह बोलने वाले राम !!
इस संयोग के प्रयोग का प्रभाव कुछ भी हो सकता है। ऐसा मन ही मन सोंचा।
लेकिन अब्दुल को बोले तुम्हारे रामज्ञान की परीक्षा होगी और उतीर्ण होने पर तुम राम बन सकते हो। साथ ही तुम अपने घर मे राम बनने की अनुमति ले लेना।
अब्दुल - आप मेरी परीक्षा अभी ले लो मैं तैयार हूँ। यदि घरवालों ने अनुमति दे दिया और आपकी रामज्ञान परीक्षा में फेल हो गया तो सब मुझको चिढ़ाएँगे।
पहलवान बाबा - राम के बारे मे क्या जानते हो ?
अब्दुल - राम का दो रूप है - सूक्ष्म रूप और स्थूल रूप। उनके सुक्षरूप यानी ब्रह्म रूप के बारे मे तो बड़े बड़े ज्ञानी महर्षि नही जान पाए तो मै तो अभी छोटा बालक हूँ।
हाँ स्थूल रूप में राम , राजा दशरथ की बड़ी पत्नी माता कौशल्या के पुत्र थे जिनको अपनी सौतेली माँ के कारण राजगदी के जगह बनवास मिला। जंगल मे उनकी पत्नी सीता का अपहरण हो गया। लेकिन अपहरणकर्ता ने कोई फिरौती नही माँगा। फिर स्थानीय लोगों और बंदर भालू की सहायता से सीता माता का पता लगाया और विभीषण के मदद से माहापराक्रमी रावण को हराकर अयोध्या वापस आ गए और लंका का राजपाट विभीषण को सौंप दिया। राम एक समदर्शी और जनभावना का सम्मान करने वाले राजा थे जिनके राज्य में किसी को भी दैहिक, दैविक और मानसिक ताप नहीं था। प्रजा के मन मे किसी प्रकार का पक्षपात की धारणा नही रहे इसके लिए , सत्य जानते हुए भी, अपनी गर्भवती पत्नी को जंगल भेज दिया।
पहलवान बाबा - अति सुंदर , अच्छा यह बतावो तुम राम क्यों बनना चाहते हो ?
अब्दुल - राम बनने का प्रयास तो हर इंसान का मकसद होना चाहिए। मै तो राम की भूमिका निभाकर उनको महसूसना चाहता हूँ। कैसा लगा होगा जब सबसे ज्यादा प्यार करने वाली माँ कैकयी ने उनके लिए बनवास माँगा होगा ? कैसा लगा होगा जब हमसाया भाई लक्ष्मण उनकी बीबी के लिए लड़ते हुए लगभग मौत के गोद में पहुँच गया होगा ?
पहलवान बाबा अब्दुल की रामज्ञान से अभिभूत हो गए। उन्होंने मन ही मन निर्णय कर लिया कि हमारा अगला रामसुरत अब्दुल ही होगा। उसके इस सोंच के तो वह कायल हो गए कि रामत्व को प्राप्त करना हर किसी का जीवन लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने अब्दुल से कहा कि बेटा यदि तुम्हारे घरवालों को कोई एतराज नही हो तो अगले बरस तुम्ही राम बनोगे यह मै राम कसम खाकर कहता हूँ।
अगले रोज से रामलीला का मंचन बुढ़िया चौपाल पर शुरू हो गया। गांव के बीचोबीच यह एक बड़ा सा चौरस मैदान है जिसके दक्षिणी छोर पर बरगद का विशाल वृक्ष है जिसपर आयताकार चबूतरा बना है। मैदान के चारो किनारे निम और ताड़ के पेड़ लगे हुए हैं।बलभीस मिट्टी होने के कारण यह आल सीजन मैदान है।
रामलीला मंचन का समय गाँव की सामूहिक उत्साहधर्मिता का परिचायक रहा है। चाहे पूरब टोला के पंडित हों ,पश्चिम टोला के मियाँ भाई हो उत्तर टोला के दबंग भूमिहार टोला या दक्षिण टोला की दलित बस्ती के लोग सब बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
लेकिन रामजन्मभूमि का शिलान्यास होने के चलते पश्चिम टोला की भागीदारी न्यूनतम स्तर पर थी।
रामलीला समाप्त होने के बाद अब्दुल चुपके से पहलवान बाबा को मिलने आया।उसने बताया कि उसके घरवाले उसको राम नही बनने देंगे। उसकी आँखें भर आईं।
उसने कहा कि बाबा आप कोई दूसरा "रामसुरत" खोज लेना। मैं कल से घर छोड़कर अयोध्या चला जाऊँगा। वहाँ पर नंगे पाँव अयोध्या की गलियों मे घूमकर राम को महसूसने की की कोशिश करूँगा। और अंत मे उनकी तरह ही सरयू मैया मे जलसमाधि ले लूँगा।
पहलवान बाबा उसके राम लगन को देखकर दंग रह गए और उसमे उनको ध्रुव नजर आने लगा। उन्होंने उसको गले लगा लिया और कहा कि तुम्हारी यह लालसा एक रोज तुमको राम से जरूर मिलाएगी।
कुछ महीने बाद गाँव मे यह खबर फैली की अब्दुल अचानक घर छोड़कर भाग गया। पहलवान बाबा को अब्दुल का दृढ़ निश्चयी चेहरा आंखों के आगे घूम गया। और मन ही मन बोले धन्य है रघुलीला !