आज़ादी
आज़ादी
बात आगे बढ़ चुकी थी। सब कुछ खाने को लेकर हुआ था। सिर्फ और सिर्फ खाने को लेकर। समस्याएँ तो बहुत थी, मसलन बंगाली, बिहारी और उडिया ग्रुप। कुलपति तो मेघालय से थे। लीडर तो सभी थे। टाइम टु टाइम। बात मंत्री महोदय तक पहुँच गई। फिर क्या हुआ ? विश्वविद्यालय अनिश्चितकाल तक के बंद कर दी गयी। देश के अनेक हिस्सों से आए छात्र छात्राओं को अचानक जबरन हॉस्टल खाली करने का आदेश दे दिया गया। अब जाएँ तो जाएँ कहाँ? लिया तुम अब केरल चली जा। माता- पिता से मिलकर विश्वविद्यालय वापस आ जाना। अरे! रिज़र्वेशन कराया नहीं, रांची से केरल सीधी बस सेवा भी नहीं है।
लटक कर भी नहीं जा सकती। रांची, बोकारो, टाटानगर और पटना में संबंधियों की तलाश की जाने लगी। बैंक बैलेन्स और पर्स तलाशी शुरू हुई । उधार मांगा और दिया जाने लगा। मलयाली-बंगाली-बिहारी एक हो गए, राजपूत- भूमिहार- लाला सब एक जाति के और एक परिवार के सदस्य। अद्भुत एकजुटता दिखाई देने लगी। अगले ही दिन परिसर मे एक अजब का सन्नाटा। व्यवस्था दुरुस्त होने तक विश्वविद्यालय में रहेगा साइन डाइ। सच पूछिये तो मैंने भी पहली बार सुना था-साइन डाइ। लेकिन जो बात खाने से शुरू हुई , वही बात 'जाने' पर अटक गयी। वी.सी के जाने की बात !
जाएँ नहीं तो- भगाए जाएँ। त्याग पत्र दे नहीं तो ले लिया जाए। ए मोबाइल भी गज़ब की चीज है। आंदोलन जारी है - मोबाइल पर। लोकल मिनिस्टर से संपर्क किया गया। पुलिस ने विश्वविद्यालय प्रशासन से बात की। सब डरे, सहमे घबराए हुए थे। सब से अधिक तो हमारे रजिस्ट्रार बाबू। सुना है अच्छा कमा लिया है । अपने छात्र -छात्राओं से उतना नहीं था जितना परिषद वालों से। सुना है कि कुछ नहीं सुनते- समझते है, जबसे इनकी पार्टी वालों की सरकार बनी है, बहुत सारे प्राध्यापकों को चमका चुके हैं, कितनों को तो निबटा भी दिया है। प्रोo भट्टाचार्य ने कहा जो भी बच्चे इस आंदोलन में जुड़े हैं, उन्हें पास नहीं होने दूँगा।
लेकिन मामला 'वी. सी' को हटाने का था 'वी. सी' को हटाने से खाना ठीक हो जाएगा ? रजिस्ट्रार का भ्रष्टाचार मिट जाएगा क्या ? पुलिस, प्रशासन और मंत्रालय ने मिलकर समस्या का समाधान कर लिया। एक महीने बाद 'वी. सी' को हटा दिया गया। विश्वविद्यालय फिर से खुल गया। चहल- पहल और रौनक लौट आई थी। लेकिन समस्याएँ ज्यों की त्यों खड़ी थी। मसलन खाने वाली, प्लेसमेंट वाली, अच्छे और योग्य प्रोफेसर की नियुक्ति, पढ़ाई और शोध का वातावरण बनाने की। फी भी जनता नेशनल युनिवरसिटी से दो सौ गुना ज्यादा होगी। मैंने श्वेतांक से कहा "जनता नेशनल युनिवरसिटी" में भी 'साइन डाइ' लगा देते हैं। बाद में वी. सी से निबटेंगे। बड़े ही सहज अंदाज में श्वेतांक ने कहा - जनता नेशनल युनिवरसिटी में साइन डाइ नही, पूरी तरह से बंद ही कर देना चाहिए। साइमोन (छात्र नेता) तो कह रही थी कि वी. सी के हटाने से हमारी युनिवरसिटी का भी काया कल्प हो जाएगा।
आखिर प्राइवेसी भी कोई चीज होती है ! हमें एक दूसरे से मिलने की आज़ादी होनी चाहिए। बात केवल खाने की नहीं है, हमे तो खाने-पीने की आज़ादी चाहिए। दोनों सरकारी विश्वविद्यालय हैं लेकिन कितना फर्क है नेशनल युनिवरसिटीज में ! रांची वाले में परिषद वालों से डर लगता था और यहाँ नक्सलवादी छात्र संगठनों से !