आत्मसंतोष
आत्मसंतोष
अनंत जी, बहुत खुश होते हुए घर में घुसे और अपनी प्रिय पत्नी सरिता जी से बोले "कल मेरे कुछ विद्यार्थी अपने परिवार के साथ खाने पर आयेंगे। सब मिला के 20-25 लोग हो जायेंगे। जो भी सामान की लिस्ट है मुझे दे देना, मैं बाज़ार से सब सामान ला दूंगा"। उनका इतना बोलना था की सरिता जी का गुस्सा जैसे सातवें आसमान में पहुँच चूका था उन्होंने कहा "आपको लगता है, मेरी बूढ़ी हड्डियों में अब इतनी ताकत रह गयी है, जो मैं इतने लोगों का खाना बना लूंगी? अब बुढ़ापे में तो चैन की सांस लेने दो। आज तो घर में मानो भूकंप ही आ गया था। सरिता जी आगे बोली "इतनी अच्छी सरकारी नौकरी में कभी एक पैसा ऊपर का नहीं कमाया, आखिर सत्यवादी हरिश्चंद्र जो ठहरे। ऊपर से उपकार की भावना कूट-कूट कर भरी है।
पूरी ज़िन्दगी गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते रहे। अब वो सब बड़े-बड़े अफसर बन गए हैं, हमें क्या मिल गया यह सब कर के? जो अब उन्हें खाने पर बुला लिया। अनंत जी उन्हें समझाते हुए बोले "रास्ते में मुझे शिखर, सचिन और राजीव मिल गए थे। अब वो खुद ही बोले सर कल हम आपके घर आएंगे। मैडम से भी मिल लेंगे और आप से भी कुछ देर बैठ कर बात कर लेंगे। तो क्या, मैं उन्हें मना कर देता"?
सरिता जी ने कहा "पूरी ज़िन्दगी तो कुछ जोड़ा नहीं। अब पैंशन के पैसों से घर के खर्चे और घर का लोन ही मुश्किल से दे पाते हैं। अब ऐसे में ये फ़िज़ूल के खर्चे किस लिए"? तभी किसी ने डोर-बैल बजाई दरवाज़े पर अनंत जी का विद्यार्थी सचिन खड़ा था। उसने कहा "सर बातों-बातों में आप अपना बैग छोड़ आये थे, वही लौटाने आया हूँ"। अनंत जी उसको शुक्रिया बोले और बैठने को कहा इतने में सरिता जी पानी लेकर आगयी सचिन ने उनके पैर छुए और हाल चाल पूछा फिर बोला "सर घर पर सब मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे, हम कल मिलते हैं"। सचिन के जाते ही सरिता जी ने फिर अनंत जी को ताना मारा "देखा अपने प्यारे विद्यार्थी को, इतने दिनों बाद मिला तो भी आपके लिए समय नहीं है, उसके पास। अनंत जी भी थोड़े दुखी हो गए पर कुछ नहीं बोले। सचिन ने उन दोनों की सारी बातें सुन ली थी।
घर जाकर उसने अपनी पत्नी की फोन पर अनंत जी से बात करवाई। उसने कहा "सर मैं कल से ही कैटरिंग का बिज़नेस शुरू करने की सोच रही थी। अगर आप मुझसे खाना मंगवायेंगे, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। वो सचिन की तरफ से गुरु दक्षिणा ही समझ लीजियेगा। अब अनंत जी को सचिन के न रुकने का कारण समझ आया अनंत जी ने सोचा सरिता की तबियत भी ठीक नहीं है। उसे इतने लोगों का खाना बनाने में मुश्किल होगी इसलिए 2-4 बार मना करने के बाद वह मान गए, इस शर्त पर की मीठे में आइसक्रीम तुम्हारी आंटी बनाएंगी। अगले दिन सब लोग आये शिखर अनंत जी के लिए शर्ट लाया था।
सचिन सरिता जी के लिए साड़ी और राजीव उन दोनों के लिए घड़ी लाया था। सब ने अपने बच्चों और पत्नियों से अनंत जी और सरिता जी की बहुत तारीफ की और उन जैसा बनने के लिए कहा। सरिता जी को भी सब से मिल कर अच्छा लगा। उनके जाने के बाद वह अनंत जी से बोली "सब लोग बहुत अच्छे थे। इतने बड़े-बड़े औहदे पर होने के बाद भी कोई घमंड नहीं है, उन्हें पर कितने छोटे-मोटे गिफ्ट लेकर आ गए। किसी को किसी का दर्द कहाँ दिखता है।
आज अपनी औलाद होती तो हमारी दो पैसे से भी मदद करती"। अनंत जी ने कहा "अरे भाग्यवान सब कुछ पैसे से ही नहीं होता। आज भी वो सब मेरा कितना सम्मान करते हैं। उससे जो मुझे आत्मसन्तोष मिला, वो लाखों रूपए से भी ज़्यादा है"। सरिता जी ने कहा "बड़े-बड़े उपदेशों से पेट नहीं भरता। आज तो हम दोनों का साथ है, कल जब हम में से एक अनंत जी ने उनके मुँह पर हाथ रख दिया और बोले "न मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं जाने वाला और न ही ऊपर वाले को तुम्हें कहीं ले जाने दूंगा। वैसे तो आज तक मैंने किसी से लड़ाई नहीं की पर ऊपर वाले से लड़ लूंगा अगर वो तुम्हें लेने आया। यह कह कर वह हँसने लगे, सरिता जी भी मंद-मंद मुस्काई। तभी उन्होंने मेज़ पर एक लिफाफा एक पत्र और एक लैपटॉप रखे देखा। अनंत जी वह पढ़ने लगे उसमे लिखा था "सर आज हम लोग जो भी हैं, आपकी वजह से ही हैं।
आज हमारी सैलरी लाखों में हैं, हमें इतनी आरामदायक ज़िन्दगी आपकी वजह से ही मिली है। हम सबकी तरफ से आप दोनों के लिए छोटा सा तौफा है। लैपटॉप से आप घर बैठे-बैठे हमारी कंपनियों के एकाउंट्स कर के दे दीजियेगा। हमारा मन रखने के लिए प्लीज़ मना मत कीजियेगा। अनंत जी ने लिफाफा खोला उसमें उनके घर के लोन पूरा होने के कागज़, राजीव के हस्पताल में ज़िन्दगी भर मुफ्त इलाज़ के कागज़ थे।
अनंत जी ने कहा "यह क्या किया इन बच्चों ने, मैं अभी उन्हें यह वापिस दे कर आता हूँ। सरिता जी ने कहा "ज़िन्दगी निकल गयी एड़ियां घिसते-घिसते अब बाकी कि ज़िन्दगी तो चैन से निकलने दीजिये। आपने उन सभी के लिए इतना कुछ किया है। आज वो अपनी ख़ुशी से हमें कुछ दे रहें हैं, तो रख लीजिये। अनंत जी सरिता जी से सहमत तो नहीं थे पर उनकी ख़ुशी के लिए कुछ नहीं बोले।
