आत्मसम्मान
आत्मसम्मान
"बहू, तेरे ये दोनों बच्चे कितना खाना जूठा छोड़ते हैं।खाने की इतनी बर्बादी!! राम राम! " बड़ी अम्मा चिल्ला रही थीं।
" अम्मा, मैं खाना बर्बाद नही होने देती।छोटे छोटे टुकड़े कर आंगन में रख देती हूं।गिलहरी या पंछी खा लेते हैं"
"लो कर लो बात ! यो मुआ पीजा नूडल कौन सी गिलहरी खायेगी ? मेरी बात मान बच्चों का बचा हुआ सफाई से डब्बे में रख दिया कर।रानी को दे दिया कर।उसे बड़ा पता लगेगा कि जूठन है।उसके बच्चे खा लेंगे।"
घर में प्रवेश करती हुई रानी के कानों को बड़ी अम्मा के ये शब्द विष बुझे लगे।दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करते हैं दोनों पति पत्नी, ताकि बच्चों को साफ सुथरा घर और पौष्टिक भोजन दे सकें।बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और होशियार हैं।
"अरे रानी, तू कब आई?" अम्मा ने पूछा
" अभी अभी आयी । बस अम्मा जी, ये बताने आई हूं कि अब से काम पर न आऊँगी।नमस्ते।
"क्या कह रही है ? सुन तो ! तेरे होश तो गुम नहीं हो गए।"अम्मा घबरायी
नहीं अम्मा जी। अभी तो होश आया है, कहती कहती रानी पल भर में घर से बाहर हो गयी।