shiv kriti raj

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shiv kriti raj

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आत्मसम्मान

आत्मसम्मान

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आत्मसम्मान अर्थात् खुद का सम्मान,खुद पे विश्वास। आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास का प्रथम सूत्र है। पहले के लोगो में आत्मसम्मान की भावना कुट कूट कर भरी होती थी जो अब नहीं है, शायद ये वही आत्मसम्मान है जिनमें बड़े से बड़े सूरमा या संत तक आत्म सम्मान को बचाने के लिए जीवन का बलिदान तक दे चुके हों। पर हम जैसे लोगों के लिए ये बहुत बड़ी बाते है। ये कहानी एक ऐसे लड़के की है जिसके कई बड़े बड़े ख़्वाब थे,जो बिखर चुका था टूटे शीशे की तरह, ये एक ऐसी कहानी है जिसमें एक लड़के ने आत्मसम्मान के दो पहलुओं को रखा है।शायद ये कहानी बहुत लोगों के जीवन से जुड़ी हो पर वो कतराते है कि ये दुनिया,ये समाज उन्हें फिर किस दृष्टि कोण से देखेगी। ये हमारी गलती नहीं होती, क्युकी बचपन से आपके मन में एक समाज नाम का डर फैलाया जाता है।

ये कहानी शुरू होती है एक छोटे से शहर के लड़के से, जो अपनी माध्यमिक शिक्षा करने के बाद उच्च शिक्षा पाने के लिए चल चुका था बड़े शहर को।सब कुछ सही चल रहा होता है, दो साल बीतने के बाद उसे वो मुकाम नहीं मिलता है जो उसे चाहिए, शायद ये उसकी गलती थी।हर एक लड़के का ख्वाब होता है उसे समाज में वो इज्जत मिले जो एक पढ़े लिखे इज्जतदार लोगों को मिला हो, हर कोई अपने आत्मसम्मान के साथ जीना चाहता है लेकिन शायद इस कारण से आपको इज्जत नहीं मिलती।पहले ही प्रयास के बाद वो इस क़दर टूट चुका था जैसे अब कुछ बचा ही ना हो। फिर भी किसी तरह वो इक ऐसे कॉलेज में पढ़ने लगा जो सिर्फ उसकी इज्जत को बरक़रार रखी थी। उसे पता था शायद ये वो जगह नहीं है जिसके लिए उसने मेहनत की थी, पर वो बताए भी तो किसे, आखिर उसे अपने आत्मसम्मान को भी तो बचना था, उसे अपने समाज में नाकामयाब जो नहीं बनना था।। उसे पता था ये झूठा दिलासा है,पर

फिर भी वो अपने आप को हमेशा कोषता रहता कि शायद अब कुछ नहीं हो सकता।

देखा जाए तो एक लड़के की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती, जितना लगता हो।एक ऐसा समय भी आता है जब वो खुद अंदर से रोते है, अंदर से टूट जाते है फिर भी एक हंसते हुए चेहरे का मुखौटा पहने सब से कहते है वो खुश है,क्युकी उन्हें मालूम है वो अपने घर के वो जड़ है जो टूट गया ना तो शायद पूरा पेड़ ही बिखर जायेगा। 

दो साल पूरे होने के बाद वो घर जा रहा था तभी उसे अचानक एक बच्ची से मुलाकात होती है जो अपनी छोटी सी बहन को गोद में उठाए गुब्बारे को बेच रही थी, पता नहीं क्यों इज क़दर उसे बुरा लगा हो उसे जैसे अंतरात्मा कांप उठी हो।।उसे ये लग रहा था जिन उम्र में। इन बच्चो को अपने मां बाप के साये में रहना चाहिए था वो आज दर दर की ठोकरें खा रहे है,वो भी एक खूबसूरत मुस्कान के साथ। वो सिर्फ उसके बारे में सोचने लगा कि आखिर क्यों? क्या वजह होगी? तभी वो उसके पास गया और उसने पूछा ये कितने का है, उसने बच्ची ने कहा सिर्फ 10 रुपया, उसने बिना खरीदे उसे पैसे दे दिए, पता नहीं क्यों? शायद उसे वो अच्छा नहीं लग रहा था। पर ये बात उस बच्ची को चुभने लगी थी, जैसे उसे कोई भीख दे रहा हो, उसने मना कर दिया, जैसे कोई उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची हो। उसने कहा भैया मैं भीख मांगने वाली नहीं हूं,मेहनत से कमाती हूं,मेहनत कर ही खाती हूं।

उस लड़के का  मकसद बिल्कुल भी उसके आत्मसाम्मान को ठेस पहुंचाना नहीं था पर उसे बुरा तो लगा था।।।

आज उस घटना को 5 साल बीत चुके है, आज वो लड़का जो मैं बन चुका हूं एक जिलाधिकारी है,एक भारतीय कर्मचारी। शायद ये सब मै बस उस बच्ची के कारण हूं जो मुझे ये मुकाम मिला। क्युकी उस दिन दो लोगो के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा था, एक वो बच्ची और दूसरा मैं।इसी कारण से जो लड़का एक छोटे से परीक्षा से डर कर खुद को हमेशा कोसता था वो देश के एक बड़े परीक्षा में सफलता प्राप्त की। उस समय मेरे पास सिर्फ दो पहलू थे, एक खुद को हमेशा कोसता रहूं और दूसरा अपने आत्मसम्मान की इज्जत करके, जो बच्ची इस समय में इतनी मेहनत करती है तो मैं इतना बेशर्म हूं जो चुप चाप बैठा रहूं। क्या मुझे खुद पे विश्वास नहीं है?क्या मेरा आत्मसम्मान इतना गिरा है कि मै हमेशा टूटा महसूस करूं? क्या मेरे में आत्मा विश्वास नहीं?क्या उस बच्ची से भी मैं ज्यादा पीड़ित हूं? 

जब उस बच्ची को अपने आत्मसम्मान पे इतना गर्व हो,जब उसे अपने विश्वास हो तो मुझे क्यों नहीं?आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए आत्म-विश्वास को आगे रखना पड़ता है। व्यक्ति कई बार अपने झूठे आत्म सम्मान के बचाव के लिए झूठ, फरेब, चोरी आदि करने से भी नहीं चूकता। पर ऐसे आत्मसम्मान का कोई महत्व नहीं है आत्मसम्मान के बल पर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं। इसी के कारण सफलता हमारे कदमों को चूमती रहती है अत: प्रत्येक व्यक्ति के अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए।


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