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Ashish Kumar Trivedi

Inspirational Others

4.5  

Ashish Kumar Trivedi

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आस

आस

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आज सुबह से ही पानी बरस रहा था। कभी थोड़ा धीमा पड़ जाता। फिर अचानक बादल तेज़ी से गड़गड़ाते। बारिश फिर से तेज़ हो जाती। पूनम को बारिश बहुत पसंद थी। खासकर पहाड़ों की बारिश। उसे रह रह कर अपने गांव की याद आ रही थी।

सुदूर पहाड़ों पर बसा उसका गांव बहुत सुंदर था। ऊँचे पहाड़, दूर तक फैले मैदान, कल कल बहती नदी, पेंड़ पौधे, पशु पक्षी सभी कुछ मनोहारी थे। साफ स्वच्छ हवा, सर पर नीला आसमान। प्रकृति ममतामई माँ की तरह सबको बड़े प्यार से अपनी गोद में समेटे हुए थी। अपने गांव में वह आज़ाद पंछी की तरह चहकती फिरती थी।

बड़ा अच्छा लगता था उसे जब बारिश के बाद आसमान पर सतरंगी इन्द्रधनुष निकलता था। बचपन से ही उसका मन उस इंद्रधनुष को देखकर ना जाने कितने सपने बुनता था। लेकिन किशोरावस्था में कदम रखने के बाद वह सपने और रंगीन हो गए थे। उनमें उसके मन का राजकुमार भी शामिल हो गया था।

उसके संसार में सुंदर सपने तो थे। पर कमी थी दो वक्त पेट भर खाने की। तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ों की। वह उसकी माँ और छोटा भाई सभी खेतों में काम करते थे। इस कड़ी मेहनत के बाद जो मिलता उसका बड़ा हिस्सा उसके पिता की शराब की लत की भेंट चढ़ जाता। जो बचता उससे दो वक्त चूल्हा भी कठिनाई से जल पाता था। अपने कष्टों के बावजूद भी वह अपने सपनों के साथ खुश थी। उसे उम्मीद थी कि एक दिन ‌उसके सपने अवश्य पूरे होंगे।

पूनम के सपनों की शांत दुनिया में अचानक ही एक हलचल की तरह सुशील आ गया। पाँच साल पहले वह गांव से मुंबई भाग गया था। मुंबई नगरी की चकाचौंध की कहानियां उसे खींच कर ले गई थीं। तबसे किसी को उसकी कोई खबर नहीं थी।

अब जब लौटा था तो उसके ठाट ही निराले थे। फिल्मी हीरो जैसा हुलिया बना रखा था उसने। सभी बस उसी के बारे में बात कर रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे शहर जाकर उसके हाथ कोई खजाना लग गया था। कभी जिसके माँ बाप उसे निकम्मा नालायक कहते थे। वही हर किसी से उसकी तारीफ कर रहे थे।

पूनम भी उसकी तरक्की से प्रभावित थी। वह अपनी माँ के साथ उससे मिलने गई। सुशील को पूनम बहुत अच्छी लगी। दोनों में दोस्ती हो गई। पूनम भी उसकी ओर आकर्षित हो गई। दोनों रोज़ ही एक दूसरे से मिलते थे। सुशील मुंबई के किस्से सुनाता था। पूनम मन ही मन मुंबई जाने के सपने देखती थी।

एक दिन जब दोनों नदी के किनारे बैठे थे तो सुशील ने कहा, 

"मेरे साथ मुंबई चलेगी। तेरे दिन फिर जाऐंगे। यहाँ दिनभर खेत में खटती है तो भी पेट भरने लायक नही मिलता। वहाँ घरेलू काम के अच्छे पैसे मिलेंगे। यह समझ ले नोट बरसेंगे।"

उसकी बात सुनकर पूनम ललचा गई और बोली,

"क्या सचमुच ?"

"हाँ मुझे ही देख। मैंने नही कमाए नोट। । यहाँ की तरह नहीं है कि खटो और कुछ ना मिले। वहाँ मेहनत की कदर है।"

सुशील ने जो सपने दिखाए थे उन्होंने उसकी नींद छीन ली थी। वह सारी रात वह जागती रही। सुशील के शब्द उसके कानों में गूंजते रहे। वह सुखद भविष्य के सपने देखने लगी। अगले दिन उसने घर में बात की. समझाया कि यदि वह गई तो पैसे घर भेज उन लोगों की मदद कर सकेगी। माँ ने तुरंत मना कर दिया कि अंजान शहर में अकेली कैसे रहेगी ? लेकिन उसके शराबी पिता को केवल नोट दिख रहे थे। उसने उसकी माँ को डपट दिया।

पूनम को लग रहा था कि उसकी माँ उसके सपनों को समझ नहीं पा रही है। वह उसके सपनों के बीच दीवार बन रही है। वह चुपचाप बिना किसी को बताए सुशील के साथ मुंबई आ गई।

सुशील ने मुंबई पहुँच कर उसे एक छोटी सी खोली में रखा। यहाँ पूनम को घुटन होती थी। वह बार बार काम के बारे में पूंछती थी। सुशील कहता कि काम खोजने में समय लगता है। इस तरह कुछ दिन बीत गए। एक दिन सुशील आया और बोला कि वह तैयार हो जाए। आज वह उसे काम पर ले जाएगा। पूनम खुशी खुशी तैयार होकर चल दी।

वह दोनों एक बड़े से बंगले में पहुँचे। बंगले में एक बड़ा स्वीमिंगपूल था। पूनम बहुत कौतुहल से सब कुछ देख रही थी। सुशील उसे लेकर बंगले के भीतर गया। वहाँ एक कमरे में एक स्थूलकाय औरत थी। उसके सामने ले जाकर सुशील बोला,

 "यही है वह..." 

उस महिला ने पूनम को सिर से पांव तक देखा। जैसे आंखों ही आंखों में उसे तौल रही हो। फिर एक लिफाफा सुशील को पकड़ा दिया। उसे जेब में रख सुशील मुस्कुराते हुए बाहर निकल गया। पूनम कुछ समझ नही पा रही थी।

जब तक उसे समझ आया बहुत देर हो गई थी। वह भयानक नर्क में फंस चुकी थी। रोज़ कुछ दरिंदे आकर उसे नोचते थे। कई दिनों तक उसकी चीखें उस बंगले के भीतर दम तोड़ती रहीं। फिर उसने चीखना भी बंद कर दिया। दिन भर उसे और उसके साथ अन्य लड़कियों को बंगले के सबसे ऊपरी हिस्से में क़ैद रखा जाता था। शाम को उन्हें तैयार कर हवस के भूखे भेड़ियों को सौंप दिया जाता था।

एक छोटे से कमरे में बारह लड़कियां ठूंसी गई थीं। उनकी उम्र १५ से २० वर्ष के बीच थी। कमरे में केवल एक छोटी सी खिड़की थी। इतने लोगों के कारण बहुत घुटन थी।

पूनम खिड़की पर खड़ी थी. कुछ ही देर पहले बारिश रुकी थी। आसमान का जो टुकड़ा खिड़की से दिख रहा था उस पर इंद्रधनुष खिला था। उसे देख कर पूनम को अपने गांव की याद आ गई।

छह महिने हो गए थे उसे इस नर्क में आए। जहाँ हर रात उसके लिए वेदना लेकर आती थी। किंतु इन सब के बीच भी उसके मन में एक आस थी कि एक दिन वह अपने गांव अवश्य जाएगी। आज इंद्रधनुष देख कर उसकी आस और मजबूत हो गई थी।


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