STORYMIRROR

Prabodh Govil

Tragedy

4  

Prabodh Govil

Tragedy

आर्यन

आर्यन

14 mins
427

और दिनों के विपरीत आर्यन छुट्टी होते ही बैग लेकर स्कूल बस की ओर नहीं दौड़ा बल्कि धीरे-धीरे चलता हुआ, क्लास रूम के सामने वाले पोर्च में रुक गया। इतना ही नहीं, उसने दिव्यांश को भी कलाई से पकड़ कर रोक लिया। झटके से रुका दिव्यांश असमंजस में पड़ कर आर्यन की ओर देखने लगा।लेकिन उसे आर्यन के चेहरे पर मज़ाक या खेल करने जैसा कोई संकेत नहीं मिला, बल्कि वह तो रोनी सूरत बनाये, पूरी गंभीरता से उसे रोक रहा था। हैरान होकर दिव्यांश ने पूछा- "क्या हुआ?"और जवाब में आर्यन रो पड़ा। -"प्लीज़ ,रुकजा न !"उसने भरे गले से ही कहा। -"अरे पर क्यों?" दिव्यांश ने कहा।-"मुझे अकेले डर लगता है।" आर्यन अपने मित्र दिव्यांश को बांह पकड़ कर वापस क्लासरूम की ओर ठेलने लगा। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले तेरह वर्षीय दोनों किशोर, अच्छे मित्र थे, फिर भी दिव्यांश को ये सुन कर अजीब सा लगा। उसे ये समझ में नहीं आया कि आखिर शाम को स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद भी आर्यन उसे इस तरह रोक क्यों रहा है। सामने विद्यार्थियों से भरी बसें हॉर्न दे रही थीं और थोड़ी ही देर में स्कूल परिसर वीरान हो जाने वाला था। लेकिन इस सब से बेखबर आर्यन दिव्यांश को वापस क्लासरूम में ले गया। थोड़ी ही देर में बसों के धूल उड़ाते हुए निकल जाने से सन्नाटा हो गया। शिक्षकों और स्टाफ के स्कूटर व बाइक्स भी एक-एक कर ओझल होने लगीं। प्रिंसिपल साहब की कार के गेट से निकलते ही पूरे अहाते में एक मात्र गार्ड रह गया जो हाथ में चाबियों का बड़ा गुच्छा लेकर सारे कमरे बंद करने में तल्लीन था। अब दिव्यांश का माथा ठनका। उसने आर्यन को झिंझोड़ डाला। लेकिन चौकीदार के आने की आहट सुन कर आर्यन फुर्ती से टेबल के नीचे छिप गया और उसने मुस्तैदी से दिव्यांश को भी खींच कर नीचे बैठा लिया। -"देख तू मेरा बेस्ट फ्रेंड है न, मेरी बात मान..." बौखलाए हुए दिव्यांश को आर्यन ने दोस्ती का वास्ता देकर रोक लिया। चौकीदार जा चुका था, और अँधेरा घिरने लगा था। अब दोनों मित्र इत्मीनान से एक बेंच पर बैठे थे। दिव्यांश ने आर्यन का हाथ अपने हाथ में ले रखा था और ध्यान से उसकी बात सुन रहा था। सामने रखे लंच बॉक्स में सुबह का बचा खाना खाते हुए दोनों दोस्त बात कर रहे थे। दिव्यांश को लगा कि आर्यन का इरादा सुबह से ही यहाँ रुकने का था शायद इसीलिए उसने खाना भी बचा रखा था। उसे आर्यन के साथ पूरी सहानुभूति थी। तन्मयता से बात करते हुए दोनों ये भी भूल बैठे थे कि रात को घर कैसे जायेंगे? डर की जगह अब चिंता ने ले ली थी।              


पेट में थोड़ा खाना पड़ जाने के बाद आर्यन ने रोते-रोते अपने सबसे अच्छे दोस्त को जो कुछ बताया उसमें अविश्वास करने जैसा कुछ नहीं था क्योंकि पहले भी कई बार वह दिव्यांश को अपने मम्मी-पापा के बीच होने वाले झगड़ों के बारे में काफी-कुछ बता चुका था। आश्चर्य तो केवल ये था कि बात यहाँ तक पहुँच गयी? आज आर्यन के सामने पापा ने पहली बार मम्मी से ये कह दिया था कि "... अगर तुम्हें मेरी सूरत से इतनी ही नफ़रत है तो अलग घर ले लो, जहाँ मेरी परछाईं से भी दूर रह कर आराम से रह सको।" रुंधे गले से आर्यन बोलता रहा। उसने दिव्यांश को बताया-"मैं सुबह स्कूल आते समय पॉकेटमनी पापा से लेता हूँ और टिफिन मम्मी से। रात को मैथ्स का होमवर्क मम्मी करवाती हैं और सोशल साइंस का पापा। वो दोनों ये क्यों नहीं समझते कि अलग-अलग घर में रहने से उन्हें तो पूरा-पूरा घर मिल जायेगा पर मेरी दुनिया टूट जाएगी। टूटा -फूटा अपाहिज जीवन।" वह आगे और कुछ न कह सका, उसकी रुलाई फूट पड़ी। दिव्यांश ने अपने से सटा कर उसे भींच लिया। आर्यन ये देखना चाहता था कि उसके मम्मी-पापा को उसकी कितनी फ़िक्र है, इसीलिए उसने ये कड़ा कदम उठाया था। वह घर पर बिना बताये स्कूल में ही रुक गया था। पर ऐसा करते हुए वह मन ही मन डर भी रहा था इसलिए उसने अपने दोस्त दिव्यांश को भी जबरन अपने साथ रोक लिया था। इस वक्त जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ रहा था आर्यन को अपना दोस्त अपने माँ-बाप से भी ज़्यादा हितैषी दिखाई दे रहा था। सच पूछो तो माँ-बाप हितैषी थे कहाँ? उन्हें तो बेटे के सुकून से अपने-अपने अहम ज़्यादा प्यारे थे। भावुकता में आर्यन दोस्त के सामने ये राज़ भी आहिस्ता से खोल बैठा कि घर की कलह से तंग आकर उसके पापा एक बार आत्म-हत्या की कोशिश भी कर चुके हैं। वे एक रात झगड़ा होने के बाद ढेर सारी नींद की गोलियाँ खाकर सो गए थे।-"झगड़ा होता किस बात पर है?" दिव्यांश ने किसी बड़े-बूढ़े की भांति जानना चाहा। मानो झगड़े का कारण पता लगने पर वह उसे मिटा ही छोड़ेगा। -"क्या पता, पर कभी-कभी मुझे लगता है कि ग़लती पापा की नहीं होती, बल्कि मम्मी ही उन्हें उल्टा-सीधा बोलकर उकसाती हैं।"आर्यन ने कहा। -"कहीं, .... जाने दे, जाने दे।" दिव्यांश कुछ बोलते-बोलते रुक गया। -"बोल न, क्या बोल रहा था?" आर्यन ने भोलेपन से कहा।-" नहीं मेरा मतलब था कि कहीं तेरी मम्मी का ....किसी और से ..." दिव्यांश बोलता-बोलता चुप हो गया। टीवी -सिनेमा के सामने घंटों गुज़ारते बच्चों के ज़हन में ये सब बातें आना कोई अजूबा तो नहीं था , पर बात क्योंकि अपने सबसे अच्छे दोस्त की थी इसलिए दिव्यांश कुछ संकोच से रुक गया। आर्यन मुंह फाड़े उसकी ओर देखता रह गया। वह मन ही मन जैसे बुझ सा गया।               


दोनों की बातों में ढेर सारा समय गुज़र गया, दोनों घर को तो मानो भूल ही बैठे थे। उनकी सोच में दूर-दूर तक ये चिंता नहीं व्याप रही थी, कि शाम को उन्हें घर न पाकर घरवालों पर क्या बीत रही होगी। दोनों को जैसे एक दूसरे का संबल था। कुछ देर बाद दिव्यांश वॉशरूम जाने की बात कह कर उठा और फुर्ती से बाहर की ओर निकल गया। अपने ही ख्यालों में खोये आर्यन का ध्यान इस बात पर भी नहीं जा पाया, कि वह वॉशरूम जाते समय भी अपना स्कूल बैग कंधे पर ले गया है। एक क्षण बाद आर्यन चौंका किन्तु दोस्त पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे समय गुज़रा, इंतज़ार करते आर्यन पर भीतरी निराशा और अनजाना भय डेरा जमाने लगे। उसे मन ही मन दाल में कुछ काला नज़र आने लगा। तमाम घबराहट ने उसे किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया। उसे समझ में नहीं आया कि उसे नींद घेर रही है या बेहोशी। वह ज़मीन पर ही टाँगें फैला कर अधलेटा सा हो गया। उसकी सोच में सुबह की मम्मी-पापा के बीच की जहरीली बहस उभरने लगी। मानो सच में ऐसा हो जाये कि उसके माता-पिता अलग होकर रहने लग जाएँ तो उसका क्या होगा? एक पल को उसकी आँखों में वह दिन भी कौंध गया जब उसके पिता ने ज़िन्दगी समाप्त करने की चेष्टा की थी। उसका बचपन बदनसीबी के किस उजाड़ किनारे को छूकर लौट आया था। ऐसा क्यों होता है कि जिंदगी भर के साथ की धर्मप्राण आयोजना करके भी दो लोग साथ नहीं रह पाते? क्यों ये दो किनारे एकाकार होने की जगह अलग होने के लिए मचलने लग जाते हैं? उसका बालमन ये समझने में नाकाम था कि उसे जन्म देने से पहले ही मम्मी-पापा ने एक दूसरे को समझ कर अपने फासले क्यों नहीं मिटा लिए? वह अब इतना छोटा भी नहीं था कि "बच्चे भगवान की देन होते हैं" जैसी बहलाने-फुसलाने की बातों पर यकीन करे। उसने जनरल साइंस की किताब में स्त्री-पुरुष की वो शारीरिक क्रिया सचित्र देख-पढ़ रखी थी जिससे बच्चे का जन्म होता है। उसे दिव्यांश के मुंह से अकस्मात निकली उस आशंका पर भी यकीन होने लगा कि ज़रूर मम्मी उसके सीधे-सादे पापा से ज़्यादा किसी और को पसंद करने लगी होंगी, जिसके कारण वह पापा की अवहेलना करती रहती हैं। वह खुद अपनी आँखों से देख चुका था कि कई बार मम्मी का क्रोध अकारण होता था, और पापा निरीह से बन कर सफाई देने में ही खर्च होते रहते थे। -छी ! तो क्या मम्मी वह सब किसी और के साथ कर रही थीं? उसे पापा पर दया सी आने लगी। पर मम्मी को ये तो सोचना चाहिए कि क्या उनके पास अपनी ज़िन्दगी सँवारने के बदले मेरी और पापा की जिंदगी को नरक बना देने का अधिकार है? आर्यन ने ख़बरों में कई बार देखा-सुना था कि विदेशों में तो छोटे-छोटे बच्चे तक अपने अधिकार के लिए खून-खराबा कर डालते हैं। वे खुद को गोली मार लेते हैं या फिर सामने वाले को मौत के घाट उतार डालते हैं। क्या वह भी अपने मित्रों की मदद से अपनी मम्मी के किसी रहस्य को जानने की कोशिश करे? लेकिन उससे क्या होगा, यदि कोई ऐसा व्यक्ति सामने आ भी गया तो क्या उसके शांत स्वभाव के पापा ऐसे शत्रु को दंड दे पाएंगे? क्या उससे सबका जीवन तहस-नहस नहीं होगा?        

स्कूल के फर्श पर टांग फैला कर अधलेटे आर्यन को नींद आ गयी। थोड़ी ही देर में वह गहरी नींद सो गया। लेकिन उसे शायद नींद के आगोश में भी अपनी उलझन से निजात नहीं मिली थी। उसने सपने में देखा कि एक बूढ़ा आदमी लड़खड़ाता हुआ उसकी ओर चला आ रहा है। पहले उसे लगा कि शायद पापा ही उसे ढूंढते हुए यहाँ तक चले आये हैं। लेकिन वे पापा नहीं थे, ये इत्मीनान उसे हो गया। कंधे पर बोझ सा उठाये यह आदमी डगमगाते हुए इस तरह चल रहा था जैसे बर्फ पर चल रहा हो। नज़दीक आने पर उस आदमी ने बताया कि वह इस बीहड़ रास्ते पर एक दो घोड़ों की बग्घी पर सवार होकर गुज़र रहा था, कि अचानक उसके दोनों घोड़े दो अलग-अलग दिशाओं में ओझल हो गए। अब वह बेदम होकर उन्हें ढूंढता फिर रहा है। आर्यन नींद से हड़बड़ा कर जाग उठा। वह पसीने से नहाया हुआ था, उसका दोस्त दिव्यांश लौट कर नहीं आया था। उसे भूख भी लगी थी। उसे घर की याद ज़ोर से सताने लगी। उसका मनोबल भी धीरे- धीरे टूटने लगा था। अब उसे लग रहा था कि वह भी अब घर लौट जाये। लेकिन इतनी रात को अकेले घर लौटना भी आसान नहीं था। इस समय उसे कोई सवारी भी आसानी से मिलने वाली नहीं थी। वह ऊहापोह में ही था कि सहसा उसे किसी की पदचाप सुनाई दी। वह बुरी तरह डर गया। सुनसान बिल्डिंग में इस समय कौन हो सकता है? चौकीदार होने की बात ने भी उसे राहत नहीं दी। यदि एकाएक चौकीदार सामने आ भी गया तो वह अचानक उस से क्या कहेगा? तभी सामने से उसे दिव्यांश आता दिखाई दिया। उसकी जान में जान आई। आँखें पनीली हो आने पर भी चमकने लगीं। दिव्यांश ने 'सॉरी' बोलते हुए उसे बताया कि वह उन दोनों के लिए न केवल खाना ले आया है, बल्कि अपनी मम्मी को सारी बात बता भी आया है। आर्यन को जैसे राहत की एक और किश्त मिल गयी। दोनों मित्रों ने एक साथ बैठ कर खाना खाया। इस से पहले कि दोनों खाना ख़त्म करके पानी पीने उठते, धड़धड़ाते हुए दिव्यांश के पापा वहां आ गये। मेन गेट पर रहने वाला गार्ड उनके साथ था। थोड़ी ही देर में दिव्यांश के पापा का स्कूटर दोनों बच्चों को बैठाये सुनसान सड़क पर दौड़ रहा था। दिव्यांश ने फ़ोन करके आर्यन के घर पर भी खबर कर दी थी,और जब वे लोग दिव्यांश के घर पहुंचे, आर्यन के पिता भी उन लोगों का इंतज़ार करते मिले। उन्होंने दिव्यांश के पिता का आभार माना और कृतज्ञ होकर आर्यन को अपने साथ ले चले। इतनी रात को आर्यन को देख कर उसकी मम्मी की भी रुलाई फूट पड़ी, वे शाम से ही सकते से में थीं और बिना कुछ खाये-पिए बैठी थीं। 


आर्यन के इस कदम से कुछ दिन के लिए घर का ये बवंडर थम गया। मम्मी ने आर्यन का कुछ ज़्यादा ही ख्याल रखना शुरू कर दिया। लेकिन आर्यन ने ये भी अनुभव किया कि मम्मी-पापा के बीच की कड़वाहट मिटी नहीं है। वे एक दूसरे से खिंचे -खिंचे ही रहते थे। अब उसे लगने लगा था कि उसे भी मम्मी-पापा को इकट्ठा देखने की कामना से ज़्यादा अपने पैरों पर खड़ा होने की ओर ध्यान देना चाहिए। वह घर-परिवार की ओर से उदासीन होता चला जा रहा था। उसे अपनी हिंदी की किताब में लिखा रहीम का वह दोहा भली भांति समझ में आने लगा था जिसमें रहीम ने बेर और केर, यानी बेर और केले के पेड़ के एक साथ न रह पाने की बात कही थी। आर्यन को लगता था कि वह भी ऐसे बाग़ का फूल है जहाँ बेर और केले का पेड़ एक साथ उगा हुआ है। एक का गात बेहद मुलायम, तो दूसरे के बदन पर कांटे। वह समय से पहले ही समझदार होता जा रहा था। अब उसे ऐसे ख्याल बचकाने लगते थे कि वह जबरन मम्मी को किसी और तरफ ध्यान देने से रोके। अथवा उनके किसी काल्पनिक संभावित मित्र का पता लगाए। उसने पापा पर भी अकारण तरस खाना छोड़ दिया था। वह अब पहले की तरह खुशमिज़ाज़ और सबसे दोस्ताना व्यवहार रखने वाला आर्यन न रहा था जिसके एक बार कहने मात्र से उसका दोस्त उसके साथ घर पर बिना पूछे रात भर बाहर रुकने को तैयार हो जाये। बल्कि इसके उलट वह अब एक गुमसुम सा, अपने आप में खोया रहने वाला बच्चा बनता जा रहा था। और सच पूछो तो बच्चा भी कहाँ, वह तो अब किसी अकेले बैठे दार्शनिक सा अलग-थलग रहने वाला आर्यन बन गया था। उसके दोस्त भी हैरान थे उसके इस व्यवहार पर। एक दिन तो वह हैरान रह गया जब उसने एक किताब में पढ़ा कि स्त्री और पुरुष यदि एक दूसरे से संतुष्ट न रहें तो प्रकृति किसी न किसी रूप में उन्हें हमेशा के लिए अलग कर देने की तैयारी करने लगती है।


इंसान जीवन भर अपने बचपन को पकड़े रहना चाहता है, किन्तु आर्यन ने बचपन तो क्या, किशोरावस्था तक को जैसे तिलांजलि दे डाली। उसका मन अब बच्चों में नहीं लगता था। वह एकाएक जैसे बड़ा हो गया था। शायद उसके माँ-बाप के बचपने  की सजा उसे मिल रही थी। उनकी मानसिकता परिपक्व होने को तैयार नहीं थी और इसके बदले में वयोवृद्धता की गंभीरता नन्हे आर्यन पर आ गिरी थी। वह स्वभाव से चिड़चिड़ा हो चला था। उसके मित्र जब अपनी किसी गर्लफ्रेंड को लेकर कोई हल्का-फुल्का बालसुलभ मज़ाक करते तो वह तिलमिला कर व्यंग्योक्ति करने से नहीं चुकता। उसे लगता कि औरत- मर्द का आकर्षण महज़ एक छलावा है। एक दिखावा।  लड़कियों की हर बात पर हमेशा कटाक्ष करने की उसकी आदत इतनी कड़वी बनने लगी कि कभी-कभी उसका कोई दोस्त कह देता-"ओए तू कहीं 'गे' तो नहीं है, छोरियों को देख के कभी खुश ही नहीं होता?"आर्यन इस से और भी बिफ़र जाता। उसका सबसे अच्छा दोस्त दिव्यांश सब कुछ जानता था, और वास्तव में उसके लिए चिंतित रहता था। इसलिए वही बाकी दोस्तों को समझा-बुझा कर आर्यन का पक्ष लेता। वह कभी-कभी आर्यन को भी समझाता कि ज़िन्दगी बहुत बड़ी है, इसमें ढेरों समस्याएँ आती-जाती हैं, इसलिए किसी एक ही समस्या की खूँटी पर सारी ज़िन्दगी टांग देना बुद्धिमानी नहीं है। यह संवाद शायद दिव्यांश ने अपने मम्मी-पापा से उस समय सुना था जब वह आर्यन की समस्या पर आपस में बातचीत कर रहे थे। पत्र -पत्रिकाओं में स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर छपने वाले कॉलम आर्यन विशेष रूप से पढ़ता था। उसे लगता कि शायद काले आखरों के ढेर में उसे कोई मोती-माणिक मिल जाये। एक बार उसके मन में ये ख्याल भी आया कि वह स्वयं अपनी समस्या लिख कर किसी मनोवैज्ञानिक या डॉक्टर से पूछे। एक दिन लायब्रेरी में दोपहर को अकेले बैठे हुए उसे दोपहर का एक अख़बार मिल गया। उसे पढ़ते-पढ़ते उसका ध्यान एक ऐसे कॉलम की ओर गया जिसमें पाठकों के कुछ अजीबो-गरीब सवाल और उनके सटीक उत्तर दिए गए थे। वह चोरी-छिपे सबकी निगाहें बचा कर उन्हें पढ़ने लगा, एक महिला ने लिखा था-"मेरे पति मर्चेंट नेवी की नौकरी में होने के कारण कई-कई महीने घर नहीं आ पाते, ऐसे में मेरा संपर्क घर में पिज़्ज़ा की डिलीवरी करने आने वाले एक युवक से हो गया है, वह अब कभी-कभी मुझसे शारीरिक सम्बन्ध भी बनाने लगा है, मैं क्या करूँ, क्या यह उचित है?" इससे पहले कि आर्यन प्रश्न का उत्तर पढ़ता, उसका सर भयानक दर्द से छटपटाने लगा, उसने अखबार को मरोड़ कर एक ओर फेंका और लायब्रेरी से निकल गया। वह दिन भर अनमना सा रहा। उसने दिन भर किसी से बात भी नहीं की। किन्तु अगले दिन वह जब लायब्रेरी गया तो उसी पुराने अखबार को चोर-नज़रों से तलाशता रहा। अखबार लेकर वह कोने की मेज पर अकेला आ बैठा और उसे पढ़ने लगा। लिखा था-"यदि आप या आपके पति एक दूसरे को पूर्ण तृप्ति नहीं दे पाते हों तो कानून आपके विवाह के बावजूद आपको अलग-अलग रह कर सम्मानपूर्ण जीवन बिताने के रास्ते सुझा सकता है, किन्तु साथ रह कर एक दूसरे के अधिकार किसी तीसरे को यूँ देना, क्या आपको शोभा देता है, ये आपकी अंतरआत्मा ही बेहतर बता सकती है !" उस दिन के बाद से दिव्यांश ही नहीं, बल्कि आर्यन के और दोस्तों ने भी नोट किया कि आर्यन का आत्मविश्वास धीरे-धीरे वापस लौटने लगा है और वह अब पहले की तरह अलग-थलग नहीं रहता। एक बड़ा परिवर्तन उसमें ये दिखाई दिया कि पहले वह जहाँ बड़ा होकर डॉक्टर बनने की बात किया करता था, अब वह कानून पढ़ने की बात किया करता है। उसके कुछ मित्रों ने तो उसे काले कोट वाले साहब कहना भी शुरू कर दिया था। 

वह सिहर उठा। उसका मन स्कूल की लायब्रेरी में न लगा, वह जैसे ही बाहर आया तो देखा कि विद्यालय में भगदड़ सी मची हुई है। थोड़ी ही देर में स्कूल की छुट्टी कर दी गयी। अफरा -तफरी मची हुई थी, सब एक दूसरे से पूछ रहे थे, किसी को पता न था कि हुआ क्या है। तभी हड़बड़ाते हुए दिव्यांश ने आकर बताया कि अभी-अभी साइंस लैब में एक दुर्घटना हो गयी। दो लड़के बुरी तरह ज़ख़्मी हुए थे। उन्हें हस्पताल ले जाया गया था। इसी से छुट्टी की घोषणा हो गयी थी। दिव्यांश बता रहा था कि लैब में काम करते हुए कैमेस्ट्री टीचर ने दो केमिकल सॉल्यूशंस रखे थे और वे कुछ बता ही रहे थे, कि मोबाइल पर फोन आ गया। वह बात करते-करते बाहर जाते हुए बच्चों से कह गए कि इन्हें मिलाना मत। पर उनकी अनुपस्थिति में एक शरारती लड़के ने सामने पड़ी प्लेट में दोनों को थोड़ा सा मिला दिया। बाकी लड़के भी तमाशा देखने के जोश में चुपचाप बैठे देखते रहे, किसी ने उसे ऐसा करने से रोका नहीं। देखते ही देखते ज़ोरदार धमाका हुआ और किसी बम के फटने की सी आवाज़ हुई। अध्यापक पलट कर दौड़े किन्तु तब तक सामने बैठे दो लड़के बुरी तरह घायल हो चुके थे। उस रात खाना खाकर आर्यन जब सोया तो उसे बहुत गहरी नींद आयी। उसने नींद में ही सपना देखा कि वह आगे पढ़ाई करने के लिए किसी बड़े शहर के हॉस्टल में चला गया है। उसने सपने में ही देखा कि होस्टल में उससे मिलने के लिए एक रविवार को पापा आते हैं और दूसरे को मम्मी। इतना ही नहीं, उसके कमरे में दो दरवाज़े हैं, मम्मी हमेशा आगे वाले दरवाज़े से आती हैं, और पापा पीछे वाले दरवाज़े से.... इस खुशनुमा हवादार कमरे में खिड़कियां भी दो हैं, एक खिड़की से उसे गहराई रात में चाँद दिखाई देता है, दूसरे से दिन उगते ही सूरज झाँका करता है। पूरी कायनात एक साथ देखने की ज़िद अब वो छोड़ चुका है।       

  


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy