आओ कहीं खो जाये
आओ कहीं खो जाये
हवा तेज चल रही थी। इप्सिता ने खिड़की से कपडे हटाए ही थे की एक बूँद आकर उसके चेहरे पर पड़ी। सो बरसात आ ही गयी। चलो पकोड़े बनाने को कहती हूँ। काम करने वाली झी अभी किचन में ही थी। इप्सिता उसे चाय और पकोड़ों का आर्डर देकर फिर खिड़की पर बैठ गयी। उसे कोलकाता आये हुए अभी पंद्रह दिन ही हुए थे उसके पहले तो वह बोलपुर में रहती थी और शांति निकेतन में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उसे साउथ कोलकाता के एक स्कूल में आर्ट टीचर की नौकरी मिल गयी थी। उसकी मासी कोलकाता में ही थी और ये फ्लैट उन्होंने ही दिलवाया था। शुरू में अकेले रहते हुए उसे डर लगा लेकिन अब धीरे धीरे इस अकेलेपन को वो प्यार करने लगी थी।
तभी उसकी निगाह सामने के घर के बरांडे पर पड़ी। वहां एक खूबसूरत स्त्री उसकी तरफ गहरी उत्सुकता से देख रही थी। इप्सिता ने भी उसकी तरफ नज़र भर कर देखा। बड़े सलीके से कटे हुए बiल। कायदे से पहनी गयी टँगाईल मैरून साड़ी और माथे पर बड़ी सी बिंदी। कानो में ऑक्सीडीसेड चांदी के झुमके थे। इप्सिता ने सोचा अच्छा हुआ उसके घर में बरंडा नहीं है नहीं तो उसकी मुड़ी तुड़ी नाईटी कितना ख़राब प्रभाव डालती। तभी झी चाय और पकोड़े ले आयी । इप्सिता ने खाने में मन लगाया ।
दूसरे दिन जब इप्सिता कॉलेज के लिए निकली तो उसे वो महिला दिखी शायद कहीं जा रही थी आज भी बहुत अच्छी दिख रही थी धनि रंग की दोरेखाली में उसका सांवला रंग तीखे नैन नक्श उभर कर आ रहे थ। इप्सिता मोड़ पर जाकर रिक्शा की प्रतीक्षा करने लगी तभी किसी कार ने पास आकर हॉर्न बजाय। इप्सिता ने देखा ,वही थी कार में बैठने का इशारा कर रही थी। इप्सिता बैठ गयी।
कार आगे चल दी।
'धन्यवाद "इप्सिता बोली।
"कहाँ छोड़ दूँ। 'जवाब आया।
"आर्ट कॉलेज "इप्सिता ने कहा।
"मैं भी वहीँ पढ़ाती हूँ। क्रिएटिव राइटिंग। अरे अपना नाम तो मैंने बताया नहीं ,मैं आरती गांगुली "मीठी सी आवाज़ में जवाब आया।
" मैं इप्सिता विश्वास "इप्सिता ने कहा।थोड़ी देर में कॉलेज आ गया।
शाम को मेरे साथ ही चलना स्टाफ रूम में ही मिलूंगी। मेरा क्लास । 2. ३० तक ख़तम हो जाता है "आरती ने कहा।
मैं ३ बजे तक आती हू। "इप्सिता ने कहा।
"ठीक है मैं वेट करुँगी। " आरती इतना कह कर कार पार्क करने गयी इप्सिता को उसने गेट पर ही छोड़ा थ। इप्सिता अपने क्लास की तरफ चल दी।
दोपहर में लंच के लिए इप्सिता टेबल पर बैठी ही थी तभी आरती आती दिखाई दी। 'मुझे पता था तुम यहीं मिलोगी ,अकेली रहने वाली लड़कियां खाना काम ही लाती है ,चलो आज मेरे साथ शेयर करो। "
इप्सिता को पहले तो संकोच लगा लेकिन फिर वो बातों में इतनी रम गयी की उसे पता ही नहीं चला की वो आज ही आरती से मिली है।
'मैं आपको दी बोलूं क्या ?"इप्सिता ने पूछा
"क्यों क्या मैं तुम्हे इतनी बुड्ढी लग रही हूँ। सिर्फ आरती कहो "जवाब आया।
इप्सिता मुस्कुरा दी ।
लौटते हुए बातों बातों में दोनों का सफर बहुत अच्छी तरह कट गया और घर बहुत जल्दी आ गया। आरती ने कल मिलाने का वादा करते हुए उसे उसकी बिल्डिंग के गेट पर छोड़ दिया।
घर आकर इप्सिता कपडे चेंज करके बैठी तो उसे काफी अच्छा लग रहा था ,एक अनजाने शहर में एक दोस्त मिलना कितना सुखद है।खाने के नाम पर आज मैग्गी ही बना लेती हूँ या फिर शायद झी काकी कुछ बना गयी हो शायद। डिब्बा खोल कर देखा तो परांठे और आलू की भाजी रखी थी। खाते खाते मां का फ़ोन आ गया और उनको हाल चाल बताते हुए मासी का फ़ोन आ गया। फिर नेटफ्लिक्स देखते हुए काफी रात हो गयी थ। रात में लाइट जाली छोड़ कर ही सो गयी थी इप्सिता। करीब दो बजे रात को उसकी आँख खुली। लाइट बंद करते हुए उसकी नजर सामने चली गयी और उसने देखा आरती बरांडे में खड़ी उसकी खिड़की की तरफ देख रही थीइप्सिता की आँखों में नींद भरी थी और वो सोने चली गयी .
दूसरे दिन आरती के साथ जाते समय उसने पूछ लिया "आरती एक बात पूंछू। "
"हाँ बोलो न "
"आप मैरिड हो ?"इप्सिता ने पूछ लिया।
"तुम्हे क्या लगता है?'आरती मुस्कुराने लगी। फिर उसका चेहरा गंभीर हो आया।
मेरी शादी हो गयी है और हमारी शादी को सात साल हो गए हैं। लेकिन जनाब कमर्शियल पायलट हैं। उड़ते ही रहते हैं इसलिए तो फॅमिली सेटल नहीं हुई अभी"आरती ने कहा।
कॉलेज आ गया था। सब अपनी अपनी क्लास में व्यस्त हो गए।आज आरती लंच में घर से लुची आलूदम लायी थी और उसे खा कर इप्सिता को घर की याद आ गयी।इप्सिता का चेहरा कुछ उदास हो गया।
"क्या इतना बुरा बना है की तुमने इतना बुरा मुंह बना लिया। "आरती ने कहा।
"नहीं मां की याद आगयी। "
"चलो आज मेरे घर पर खाना खाओ मछली मैं बहुत अच्छी बनाती हूँ। "इप्सिता रात को आरती के घर पहुंची तो टेबल काफी व्यंजनों से भरी थी।
"इतना सारा। "इप्सिता ने इशारा किया
"पतिदेव भी पधार रहे हैं अगर जल्दी आये तो यहीं हमारे साथ खाएंगे और अगर देर से आये तो टेबल पर अकेले बैठ कर खा लेंगे " आरती मुस्कुराई।
खाना उनलोगों ने शुरू ही किया था तभी डोरबेल बजी। आरती ने जाकर दरवाजा खोला। अंदर एक सुदर्शन पुरुष ने प्रवेश किया। इप्सिता को लगा उसके दिल की धड़कन ही रुक जाएगी। इतना खूबसूरत पुरुष उसने अभी तक सामने से कम ही देखा था। आरती उसका चेहरा देख रही थी।
"दिवाकर इनसे मिलो हमारी पड़ोसन और मेरी कुलीग।" आरती ने परिचय कराया।
"ही यंग लेडी "दिवाकर ने जोश से हाथ मिलाया।
"मैं कपडे बदल कर आता हूँ आपलोग खाना शुरू करो।
"दिवाकर का प्रभाव औरतों पर जबरदस्त होता है "आरती ने कहा।
इप्सिता सुन रही थी बस। उसे तो बस इंतजार था की कब दिवाकर आ जाये और थोड़ी देर में वो आ गया। खाते पीते काफी रात हो गयी थी। दिवाकर अपने ट्रेवल के मजेदार किस्से सुनाता रहा और इप्सिता बस हंसती रही। रात को दिवाकर उसे घर तक छोड़ गया। इप्सिता बिस्तर पर लेट लेकिन नींद आज कोसों दूर थी किसी का मुस्कुराता चेहरा उसकी आँखों में घूम रहा था। दूसरे दिन आरती के साथ जाते समय भी इप्सिता दिवाकर के बारे में ही बात करती रही। लौटते समय भी उसका दिवाकर पुराण बंद नहीं हुआ। आरती ने हँसते हुए कहा " वो सभी के दिमाग पर नशे की तरह चढ़ जाता है सावधान रहना। "इप्सिता मुस्कुरा दी। आज रात उसे अकेले ही खाना पड़ा क्योंकि आरती ने उसे नहीं बुलाया था। दूसरे दिन वह गेट पर खड़ी आरती का इंतजार कर रही थी तभी दिवाकर आ गया। "तुम आरती का इंतजार कर रही हो वो दो दिन के लिए अपनी मा के पास गयी है। तुम्हे बताने को कहा था। मैं तुम्हे कॉलेज छोड़ दूँ क्या ?" इप्सिता ने हाँ में सर हिलाया।
दिवाकर रास्ते भर उसके बारे में बहुत बातें पूछता रहा। उसने इप्सिता का फ़ोन नंबर भी लिया। शाम को इप्सिता ऑटो से आ गयी। रात को उसके मोबाइल की घंटी बजी दिवाकर था। "जल्दी आ जाओ बहुत अच्छा खाना आर्डर किया है। इप्सिता अपने धड़कते मन को न रोक पायी और चली गयी। दिवाकर खाने की टेबल पर इंतजार कर रहा था। खाना खाते हुए वो इतना घुलमिल गयी दिवाकर से जैसे उसे हमेशा से पहचानती ह। डिनर के बाद जब एक बुक दिखने के बहाने वो दिवाकर के बैडरूम में पहुँच गयी तो भी उसे कुछ अटपटा नहीं फिर जो होना था वही हुआ। होश में आयी इप्सिता को पश्चाताप हो रहा था लेकिन अब क्या हो सकता था। इप्सिता घर आ गयी। दूसरे दिन वह कॉलेज नहीं गयी। दिवाकर का फ़ोन आया तो बहाना बना दिया। शाम को वह खिड़की पर आयी तो आरती खड़ी दिखाई दी। शायद वो अभी लौटी थी। दूसरे दिन आरती कॉलेज जाने के समय उसका इंतजार कर रही थी इप्सिता नीचे आकर कार में बैठ गयी लेकिन वह चुप थी। आरती ने वजह पूछी तो सर दर्द का बहाना बना दिया। रात को इप्सिता की डोर बेल बजी खोला तो आरती सामने थी ।
" तुहारी चुप्पी मैं समझ गयी थी ,लेकिन मुझे लगता था तुम सिर्फ मेरे लिए हो और तुम भी "आरती ने उसका हाथ पकड़ लिया ,उत्तेजना से वो हांफ रही थी। अचानक उसने इप्सिता को बांहों में भर लिया "तुम तुम सिर्फ मेरे लिए हो मेरे लिए। "
इप्सिता को ऐसा लगा जैसे वो एक अंधे कुएं में गिरती ही जा रही है।