आंखों देखी - 02
आंखों देखी - 02
वैसे तो बचपन से ही मामा के चारों बच्चे और हम तीन हर साल गर्मी की छुट्टियां में एक साथ ही खेलते रहे है , परंतु उस खेलकूद में वैचारिक क्षमता कहां होती है , वो खेलकूद तो बस मनोरंजन का साधन मात्र ही थे । बचपन गुजर जाने के साथ ही सिर्फ मनोरंजन के क्रियाकलाप तो नहीं रह जाते , कुछ उद्देश्य भी अक्सर जुड जाते है ।
पिछली बार जब मुलाकात हुई तब उसकी शादी थी | इस बीच कई बार आना जाना हुआ परन्तु वह अपने ससुराल में थी | फिर उसके बाद वह मामा के पास वापिस आ गयी , लेकिन मेरा उस तरफ जाना नहीं हो पाया | मम्मी का आना जाना तो था ही इसीलिए वहां की खबर मिलती रही | मेरा आना जाना भी 3 या 4 बार हुआ परन्तु सयोंग ही था की मेरी मुलाकात नहीं हो सकी | कई साल गुजर गए और वह अब भी वही अपने पिता यानि की मामा के पास ही थी |
कुछ साल पहले गर्मियों में मेरे पास वक़्त भी था और कहीं कोई जगह भी नहीं थी जहाँ जाना जरूरी हो इसीलिए सोचा की चलो इस बार उस बहन से मुलाकात की जाये | विशेष तौर पर उससे मिलने ही गया था तो ऐसे में संयोग या कोई और बाधा तो आ नहीं सकती थी | और फिर इतने सालों बाद मेरे मुलाकात करने का एक विशेष कारण भी पैदा हो गया था |
मामा और बहन अभी भी उम्मीद लगा कर बैठे थे की वह दहेज़ लोभी लड़का नाक रगड़ते हुए आएगा और मुझे पता था की वह नहीं आने वाला है | लेकिन एक शादी में उस दहेज लोभी लड़के से मुलाकात हो गयी , मैं तो उसे नहीं पहचान पाया परन्तु उसने मुझे पहचान लिया | काफी लम्बी बातचीत हुई और इस तरह मेरे वहां जाने और बहन से मुलाकात करने का कारण पैदा हो गया |
जब बहन की शादी हुई उस वक़्त उसकी आयु थी तकरीबन 33 साल , शादी के तकरीबन 2 साल बाद उनके यहाँ लड़का हुआ और अब लगभग 10 सालों से वह अपने पिता के घर रह रही थी , इसका अर्थ है की उसकी आयु अब हुई तकरीबन 45 साल या शायद उससे कुछ अधिक | जीवन का अधिकांश भाग निकल चूका है जो थोड़ा बहुत बचा है वो भी निकल ही जायेगा, ऐसे में बहन से उसके व उसके पति के जीवन की बात करना तो व्यर्थ ही था , जिस विषय में बात की जा सकती थी वह था उनका बच्चा | लिहाज़ा मैंने बच्चे को टारगेट बनाते हुए ही बात करने का निश्चय किया |
वैसे तो कॉउंसलिंग का मेरा कोई विशेष इतिहास नहीं है और अगर है तो वह भी बहुत बुरा परन्तु यहाँ मसला कुछ नाजुक था लिहाज़ा मैंने भी थोड़ा सावधानी से ही आगे बढ़ने का प्रयास किया और पहले बच्चे से थोड़ा घुलने मिलने में वक़्त गुजरा | बच्चा बहुत ही शर्मीला और डरपोक / दब्बू स्वाभाव का लगा मुझे और यह स्वाभाविक भी था | आखिर बच्चे ने अपने बाप को देखा ही नहीं और जो उसने देखा वो उसे बाहरी दुनिया में ढलने लायक तो नहीं बना सकता , तो बच्चा ठीक वैसा ही था जैसा बाहरी दुनिया से अनजान बच्चा हो सकता था ।
वहां जाने से पहले अपने स्तर पर काफी खोजबीन करने के पश्चात वहां गया था लिहाज़ा सिंगल मदर द्वारा पालित बच्चों के ऊपर हुई रिसर्च और उसपर छपे जर्नल्स का एक लम्बा चौड़ा कलेक्शन भी मेरे दिमाग में था | इसीलिए बहन को कम से कम यह समझाने में तो कामयाब रहा की अपने ज़िद के चलते वह बच्चे का भविष्य बर्बाद कर रही है |
परन्तु मामला अटक गया जब उसने कहा की ‘उसने यानि की उसके पति ने उसकी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी ‘ | वैसे तो नाज़ायज़ बात कर रही थी आखिर घर तो बहन ने खुद छोड़ा था और कारण भी हमें पता था परन्तु अब इलज़ाम सामने वाले पर लगा रही थी | कम से कम मेरी समझ में यह बात नहीं आयी की अगर कोई आत्मसम्मान वाला आदमी अपनी नाक रगड़ने को तैयार नहीं है तो इसके लिए उसे दोषी कैसे कहा जा सकता था | वैसे भी अगर नहीं बन रही तो तलाक ले लेना का विकल्प तो हमेशा खुला हुआ ही था | कॉउंसलिंग के मसले में मेरा इतिहास बुरा ही रहा है , यहाँ पर काफी लम्बी कॉउंसलिंग कर सका शायद इसीलिए क्योंकि बच्चे को पकड़ कर बैठा था परन्तु जब बहन ने मुद्दा बच्चे से भटका कर खुद पर ले लिया तो मेरा इतिहास भी कहाँ शांत रहने वाला था | मेरा इतिहास मुझ पर हावी हो गया और शायद सबसे बुरी कॉउंसलिंग करके वापिस लौट आया |
हालांकि मैंने बच्चे से शुरू किया क्योंकि मेरी नजर में अब दोनो की अपनी जिंदगी तो बड़ा हिस्सा गुजर चुका है और जो थोड़ा बहुत बचा है उसमे दोनो को एक दूसरे की जरूरत नहीं परंतु बच्चे को दोनो की जरूरत है । मुझे समझने में वक्त लगा की यहां तो किस्सा ही अलग है और बच्चा वास्तव में हथियार बन चुका है सामने वाले से नाक रगड़वाने का । बच्चे के भरोसे ही दोनों बाप बेटी अभी तक जोश में है की बच्चे का बाप आकार नाक रगड़ेगा ही । और ऐसे में मेरे पहुंचने से मामला सुलझाने की अपेक्षा और उलझ गया क्योंकि अब तो मामा और बहन को पक्का यकीन है की जल्द ही वो दिन आने वाला है जिसका इंतजार था । बहन ने बच्चे को हथियार बना लिया वैसे यह कोई नई बात नहीं है अधिकांश महिलाएं यही करती है ।
चलते वक्त मैंने उन दोनो के दिमाग से गलतफहमी निकलने का प्रयास भी किया, और अब मैं बहुत बुरा व्यक्ति हूँ क्योंकि मैं दहेज़ लोभी के पक्ष में खड़ा हूँ |
कर्मशः
