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Akanksha Gupta (Vedantika)

Romance

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Akanksha Gupta (Vedantika)

Romance

आँखों आँखों में

आँखों आँखों में

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उसे पीले रंग की साड़ी में देखकर धीर मन्त्रमुग्ध था। वह धीरे धीरे चल नीचे आ रही थी। धीर को ऐसे देखकर वह धीरे से मुस्कुराई। दोनों को देखकर ऐसा लगता था कि वे आँखों में ही आँखों मे एक दूसरे से प्यार भरी बातें कर रहे थे-

“तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो पीले रंग में।”

“तुम्हारे प्यार का रंग है।”

“मैं कैसा लग रहा हूँ तुम्हें ?”

“एक राजकुमार, जिसे भगवान ने सिर्फ मेरे लिए इस धरती पर उतारा था।”

“तुम्हें याद है जब तुमने मुझे पहली बार कॉलेज में देखा था, ऐसे ही एकटक देख रहे थे।”

“तुमने उस दिन भी पीले रंग का सलवार सूट पहन रखा था। बस उसी दिन से तुम मेरे मन के मंदिर की देवी बन गई थी।”

“तुम्हें मेरे उस दिन पहने हुए कपड़ो का रंग अभी तक याद है?”

“और नहीं तो क्या। मैने तो उसी दिन सोच लिया था कि अगर तुम भी मुझसे प्यार करोगी तो मैं इस दुनिया के हर खुशी को तुम्हारे कदमों में लाकर रख दूंगा।”

“अरे वाह, तुम तो बिल्कुल किसी फिल्म के हीरो की तरह कुछ भी करने को तैयार थे, लेकिन अगर मैं मना करती तो तुम क्या करते ?”

इस सवाल पर धीर की आँखे खामोश हो गई। उसने फिर पूछा- क्या हुआ? तुम चुप क्यों हो गए।

धीर की आँखे झुकी हुई थी। उनमें पानी का एक कतरा उतर आया। आँखे कह रही थी-

“मुझे माफ कर दो। आज तो मैं तुम्हारी आँखों में एक आँसू तक नहीं देख सकता लेकिन उस वक्त मैं किसी फ़िल्म के खलनायक की तरह सिर्फ तुम्हें पाना चाहता था। किसी भी कीमत पर, तुम्हारी जान की कीमत पर भी।”

“अच्छा तो फिर इरादा कैसे बदल दिया ? मैं तो मना करने वाली थी।”

“वक्त और तुम्हारे प्यार ने बदल दिया था मुझे। याद है तुम्हें, जब तुम कॉलेज में सीढ़ियों से नीचे गिर पड़ी थी और तुम्हें हॉस्पिटल ले जाया गया था, तब मेरी जान ही निकल गई थी और मैं बस यही दुआ कर रहा था कि तुम सही सलामत अपने घर पहुंच जाओ।”

“तुम्हारी दुआ ने घर तक तो पहुंचा दिया था लेकिन मेरे हाथ में फ्रैक्चर हो गया था, जिस वजह से मै अपनी पढ़ाई में पिछड़ रही थी। तब तुमने मेरी कितनी मदद की। मेरे लिए नोट्स बनाना, मुझे ट्यूशन देना, मेरे एग्जाम की तैयारी में मदद करना। कितना कुछ किया था तुमने मेरे लिए।”

“शायद अपने आप को तुम्हारे लायक बना रहा था मैं। ट्यूशन तो बहाना था तुम्हें दिन में एक बार देखने का। इस दुनिया में ना तुम्हारा कोई था ना मेरा। शायद इसलिए हम दोनों के अकेलेपन ने हमें एक दूसरे का जीवनसाथी बना दिया।”

“हाँ और फिर हमारा परिवार पूरा हो गया। मैं, तुम और हमारी बेटी। उस दिन महसूस हुआ कि तुम्हारे साथ जिंदगी कितनी हसीं है।”

“फिर भी मुझे अकेला छोड़ कर चली गई। एक बार भी नही सोचा कि तुम्हारे जाने के बाद मैं एक बिन माँ की बच्ची को कैसे अकेले संभाल सकता हूँ।”

“मेरा बस चलता तो मैं कभी तुम्हें छोड़कर नही जाती लेकिन कैंसर जैसी बीमारी के आगे मैं हार गई थी लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि तुम डगमगा नही सकते।”

तभी धीर की तन्द्रा टूट गई। सामने उसकी गुड़िया खड़ी थी। उसने अपनी माँ की वही पीले रंग की साड़ी पहन रखी थी जो कभी धीर उसकी माँ के लिए लाया था।


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