आम आदमी की क्वैरैंटीन डायरी
आम आदमी की क्वैरैंटीन डायरी
"सुनो जी, चावल बस अब ख़त्म होने को ही हैं और दाल भी ज़्यादा नहीं रह गयी है. कैसे हम लोग बाहर जाकर सामान लाएंगे.?"
"कितने दिन से ताजी सब्ज़ियों का स्वाद नहीं चखा. बिजली का बिल भी भरना है फोन का बिल भी भरना है. इन्टरनेट बंद हो गया तो ऑफिस और बच्चों के स्कूल का क्या होगा? "सुधा परेशान होकर बस बोले जा रही थी और तेज़ी से घर के काम निपटा रही थी.
" कभी ऐसा समय नहीं देखा कि कामवाली है उसकी तनख्वाह जा रही है मगर काम सारे मैं ही कर रही हूँ. अब उसमें उसका भी क्या दोष और अगर अब इस समय उसकी तनख्वाह ना दें तो ये भी बहुत गलत होगा बल्कि ये निर्दयता ही होगी. भगवान सबको जल्दी से इस मुश्किल समय से बाहर निकाल लें. "
रमन ने ऑफिस का काम करते हुए सुधा को देखा और फिर सिर हिलाते हुए मुस्कराकर अपने काम में वापस बिजी हो गया.
सुधा काम निपटाकर अपने कमरे में आयी. रात के साढ़े ग्यारह बज चुका था. बच्चे खाना खाकर पढ़ रहे थे. सुधा के सास ससुर भी काफी देर पहले सो गए. सुधा का पति रमन ऑफिस का काम निपटा रहा था. सुधा ने भी आराम से बैठते हुए मोबाइल उठाकर प्रतिलिपि एप खोला. आज की कहानी के विषय देखकर अनायास ही बोल उठी, "आम आदमी की क्वैरैंटीन डायरी में क्या मिलेगा, खुद को बाक़ी रखने का संघर्ष ही मिलेगा.
नये ढंग से काम करने के तजुर्बे मिलेंगे जो हम आज सीख रहें हैं. अपने आदर्श,परम्पराएँ अपनों का प्यार सबकी कदर समझ में आ रहीं हैँ ऐसा लग रहा है मानो इंसान को बिगड़ता देख ख़ुद वक़्त पूरी दुनिया को सबक सिखाकर सुधारने का काम करने लगा .आम आदमी की क्वैरैंटीन डायरी में फ़िलहाल तो दो वक़्त की रोटी की फ़िक्र और भविष्य की चिन्ता ही दिख रही है"
थकान ज्यादा हो रही थी तो सुधा ने फोन रख दिया और सोने के लिए लेट गयी.थकान होने के बावजूद भी नींद आँखों से कोसों दूर थी पर सुधा जबरदस्ती सोने की कोशिश कर रहीं थी क्यूंकि कल सुबह उठकर फिर दो वक़्त की रोटी की जद्दोजहद के लिए ताक़त चाहिए थी।