आलेख--पर्यावरण संरक्षण
आलेख--पर्यावरण संरक्षण
हमारे पर्यावरण ही हमारे. रक्षा का कवस हैं।ये हमारे लिए बडे शुभ की बात हैं।
मनुष्य का जीवन पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है | हम अपनी आवश्यकता की लगभग सभी चीजें प्रकृति से प्राप्त करते हैं | लाखों वर्षों पूर्व जब मनुष्य का ज्ञान एक पशु से अधिक नहीं था तब भी मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रकृति से ही प्राप्त करता था | आज जब हम विज्ञान की ऊँचाइयों को छू रहे हैं तब भी हमारी आवश्यकता की पूर्ती प्रक्रति से ही होती है | प्रकृति को इसी लिए माता कहा जाता है क्योंकि यह हमारा पालन पोषण करती है | अनंत काल से यह हमारी सहचरी रही है | प्रकृति का मनुष्य जीवन में इतना महत्त्व होते हुए भी हम अपने लालच के कारण उसका संतुलन बिगाड़ रहे हैं मनुष्य सदियों से प्रकृति की गोद में फलता-फूलता रहा है। इसी से ऋषि-मुनियों ने आध्यात्मिक चेतना ग्रहण की और इसी के सौन्दर्य से मुग्ध होकर न जाने कितने कवियों की आत्मा से कविताएँ फूट पड़ीं। वस्तुतः मानव और प्रकृति के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मानव अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए प्रकृति की ओर देखता है और उसकी सौन्दर्यमयी बलवती जिज्ञासा प्रकृति सौन्दर्य से विमुग्ध होकर प्रकृति में भी सचेत सत्ता का अनुभव करने लगती है।प्रकृति के इस मौन-निमंत्रण में आकर्षण भी है और चुनौती भी। पर्वत सागर, नदियाँ, झरने, वृक्ष-लताएँ और ऋतुओं का नित नूतन शृगार ! सूर्य, चंद्र, तारे, ग्रह-नक्षत्रों और उनका सुनहरी-रूपहली रूप-जाल !
इनके सम्मोहक, किंतु रहस्यमय आवरण की परतों खोलते-खोलते मानव पत्थर-युग से आज अंतरिक्ष-युग तक आ पहुँचा है। प्रकृति ने भी इस खेल में सहचरी बन पूरा सहयोग पा, कितु जैसा महात्मा गांधी ने कहा था-'प्रकृति मानव की हर आवश्यकता की पूर्ति कर सकती है, किंतु उसके लालच की भविष्य की चिंता किए बिना मानव का जंगल काटते जाना, महासागरों को पीछे धकेलकर ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ बनाते माना, कल-कारखानों, वाहनों आदि के विषैले धुएँ से वायु को दूषित करते जाना, हानिकारक रासायनिकों एवं कूड़े-कचरों पचा आर सागरों के स्वच्छ जल में डालते जाना, प्रकति की उदारता और सहयोग का ये कैसा प्रतिदान है? मानव की इस कृतघ्नता और अत्याचार का उत्तर प्रकृति भी, बाढ़, सूखा, भूकंप और सुनामी का विकराल रूप धर कर दे रही है। भूमंडलीय बढ़त जाना, ध्रुवो की बर्फ का तेजी से पिघलते जाना प्रकति की मूक चेतावनियाँ हैं कि अब भी समय है सँभल जाओ! प्रकृति दासी बना उसका शोषण रोको! एक बार प्रकृति बिगड़ जाती है तो ये पृथ्वी रेगिस्तान बन जायेगी।लालसी मनुष्य को ये बात समझ नहीं है।क्योंकि मनुष्य के लिए जो सिज ज्यादा आवश्यक है वे प्रकृति का देन है। बडी बडी उद्योग ने बडी बडी जंगल को खरीदने से हमें रोकना हैं।ऐक पेड़ काटने से दो पेड़ लगाना होगा।इसी से ही पर्यावरण को हम रोक पायेंगे।प्रदूषण पर रोक लगाओ, वृक्षारोपण करो! पुनः प्रकृति को
सहचरी बनाओ!जब ये पृथ्वी रेगिस्तान बन जायेगी तब यहाँ जीवों को जीने का नामोमकिंन होगी।ये पृथ्वी बहुत बहुत गर्मी हो जायेगी।
तझ आइए हमें हमारी पर्यावरण को एकसाथ हाथ से हाथ बढ़ाकर सूरक्षित करोंगी।
