आखिर रंग लाई सखियों की दोस्ती
आखिर रंग लाई सखियों की दोस्ती
"अरे शीतल क्या हुआ ? आज इतनी गुमसुम क्यों हो ?" बहुत दिनों बाद मिली उसकी सहेली पूनम ने पूछा। "हमारे कॉलेज के दिन अपने अध्ययन में ही निकल गए, तब भी मैं बोलती थी रे तुझे मस्त रहें हमेशा हमारे साथ, यह पल भी खुशी से बिताना साथ में। जिंदगी में यूँ ही उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते है, अब तो किस्मत ने भी साथ दिया है हमारा और पुणे में अलग-अलग कंपनी में ही सही, पर नौकरी तो मिल गई हमें, एक ही जगह पर। खुशकिस्मती है कि इतने अच्छे माता-पिता हैं हमारे कि वर्तमान समय के हिसाब से वे सकारात्मक रहते हुए हमें दोस्तों संग मिलने देते हैं, और किसी भी तरह की मनाही नहीं है।"
शीतल और पूनम में जब कॉलेज में थी तब से ही बहुत अच्छी दोस्ती थी, वे अपनी अन्य दोस्तों राशि व सान्या का इंतजार ही कर रहीं थीं, कि इतने में वे आ गईं। "क्या यार इतनी देर कर दी आने में, कभी तो प्लान बनता है हमारा", शीतल और पूनम उन पर नाराज़ होते हुए कहा । "अरे शुक्र मनाओ कि आ गए हम दोनों, क्या करें यार एक तो इतना ट्रैफिक कि पूछो मत और ऊपर से ऊप्फ ये बारिश जो है खत्म होने का नाम ही नहीं लेती", राशि और सान्या अपना सिर पोछते हुए बोलीं । "सबसे पहले चलो हम सब किसी अच्छे से रेस्टॉरेंट में चलते हैं सखियों, वहां साथ बैठेंगे, सूप और मनपसंद खाने का लुत्फ भी उठाएंगे और साथ ही बातें भी हो जाएंगी।"
फिर रेस्टॉरेंट पहुँचकर सबने टॉमेटो सूप मंगाया और साऊथ-इंडियन खाने का ऑर्डर किया, बेहद पसंद जो था चारों को। "जब तक खाना आता है तब तक अरे चलो यार अब मिलें हैं तो आपस की कुछ बातें भी हों जाए।" फिर आपस में उनकी बातें होने लगी, "एक तो रोज़ की व्यस्ततम जिंदगी में कभी-कभार ही तो मिलने के लिए समय निकाल पाते हैं तो कुछ हंसी-मजाक ही हो जाए।" "आज लेकिन शीतल को जाने क्या हुआ है ? चेहरे की हवाईयां पता नहीं क्यों उड़ी हुई है ?" पूनम ने उसके मजे लेते हुए कहा। इतने में सूप और खाना भी आ गया और उस खाने के जायके का सब आनंद भी लेने लगे परंतु सभी सखियॉं आज शीतल को देखकर थोड़ी परेशान थीं। सखियॉं सोच रही थी कि शीतल जब भी हम मिलते हैं तो ऐसी उदास नहीं रहती, चेहरा भी काला दिख रहा और ऑंखो में लाली छाई, मानो देखकर लग रहा है कि कितना रोई हो। फिर सभी ने सोचा अब हम शीतल को ज्यादा परेशान नहीं करते, आज रहने देते हैं। एक सप्ताह में पूनम की माँ आने वाली हैं, अपने ऑफीस काम से तो उस समय उनसे मिलने जब जाएंगे तभी बातचीत करेंगे और कुछ न कुछ गहरी बात ज़रूर है, जो वह छिपा रही है। पूनम अपने भाई नितेश के साथ किराये के घर में रहती और बाकी सखियॉं हॉस्टल में।
पूनम छोटे भाई नितेश के साथ रहती थी इसलिए आपस में बातचीत भी हो जाती। नितेश केमिकल इंजीनियरिंग जो कर रहा था तो उसे नित नये आयामों के बारे में बताता और उसे अभी हाल ही नौकरी मिली थी, सो बहन-भाई यह पल साथ में खुश रहकर बिता रहे थे और माँ द्वारा बताए अनुसार आपस में हर बात साझा भी करते, ताकि कोई कठिनाई भी हो तो उसका निवारण किया जा सके।
शीतल को अपने मन की बात किसी से कहने का एक तो समय ही नहीं था और इस नए शहर में इन सखियों के अलावा उसकी बात समझने वाला कोई भी नहीं था।
आखिर वह दिन आ ही गया, जिसका सखियों को बेसब्री से इंतजार था, क्योंकि पूनम की मम्मी सबके लिए तरह-तरह के पकवान जो बनाती थीं । वह ऑफीस के काम से आई थीं और रविवार उनके पास खाली समय था और पूनम को भी। फिर क्या था, पूनम ने अपनी सखियों को भोजन के लिए आमंत्रित किया और सबको लजीज खाना भी खिलाया। शीतल बोली "आंटी आप कितने खुले दिमाग की हो और अभी पूनम के विवाह की शीघ्रता भी नहीं कर रहे। एक मेरे माता-पिता हैं", बस इतना कहते हुए वह आंटी से गले मिलते हुए रो पड़ी।
"हाँ माँ काफी दिन से शीतल उदास ही रहने लगी है और हम लोगों ने कारण जानने की बहुत कोशिश की, पर आज आपको बताया।" रोते-रोते शीतल बताने लगी "आंटी मेरे पिताजी की दवाई की दुकान है, मेरी मॉं हाऊसवाईफ हैं और मेरी दो छोटी बहनें भी हैं। मेरे माता-पिता आपकी तरह खुले विचारों के नहीं है, वे मेरे विवाह की जल्दी कर रहे हैं, पता नहीं क्यों ? मैं अभी-अभी नौकरी कर रही हूँ और इससे भी अच्छी कंपनियों में नौकरी के लिए प्रयास जारी है। मुझे माता-पिता 2-3 लड़कों से मिलने के लिए फोर्स कर चुके हैं, सब नेट पर खोजते हैं और फोटो के साथ विवरण भेज देते हैं। कहते हैं देख लो इनमें से तुम्हें कोई पसंद हो तो। अभी पिछले हफ्ते की ही बात है आंटी एक लड़का बेंगलौर से आया था, हमने एक रेस्टॉरेंट में बैठकर अपनी व्यक्तिगत बातें भी की और वह विवाह के लिए राजी भी हो गया। वह बोला तुम मुझे बहुत पसंद हो, जाते ही माता-पिता से बात करता हूँ और फिर दोनों के माता-पिता विवाह की सारी बातें पक्की कर लेंगे। 3-4 दिन हो गए आंटी न ही उसका कोई जवाब आया और न ही मेरा फोन उठाया। काफी कोशिश करने पर फोन आया, कहने लगा कि मैं तुम्हें लेकर कुछ कन्फ्यूज हूँ, जबकि हमारी सारी बातें स्पष्ट रूप से हो चुकीं थीं। मेरे माता-पिता हैं कि मानते ही नहीं, मैं वैसे भी अभी विवाह के लिए राजी नहीं हूँ। ठीक है आजकल के ट्रेंड के अनुसार वे चाहते हैं कि विवाह से पूर्व मैं लड़के से स्पष्ट बातें कर लूँ, पर आजकल कोई भरोसा भी नहीं कर सकते हैं किसी अनजान पर और मुझे कितना मानसिक तनाव होता है, इसका उनको जरा भी अंदाजा नहीं है। मुझे अभी लगा था कि यह लड़का विवाह हेतु हॉं कहेगा, पर मनाही होने पर यूं लगता मानों मुझ में क्या कमी है, इस तरह से अपने अंदर अभाव को महसूस करते हुए मैं हीन भावना से ग्रसित होती जा रही हूँ।"
"अरे बेटी इस तरह से निराश नहीं हुआ करते, तुम मुझे माँ का फोन नंबर दो, मैं बात करती हूँ उनसे।" "नहीं आंटी, मेरे पिताजी मॉं की नहीं सुनेंगे, वे तो बस रिश्तेदारों के कहने में आकर निर्णय लेते आए हैं सदा से।" सारी सखियॉं ध्यानपूर्वक सुन रही थीं, मन ही मन सोच रहीं कि शीतल के माता-पिता कैसे हैं ? "आंटीजी आप बात कर ही लो, शीतल की मॉं से, आखिर हम सभी सखियॉं जीवन में कुछ अच्छा बनना चाहती हैं, अपने पैरों पर बलबूते से खड़े होना चाहती हैं ताकि भविष्य में किसी भी तरह की कठिनाईयों का सामना करने में पिछे न रहें, परंतु हमें थोड़ा समय की मोहलत तो दी जाए और क्या चाहिए हमें केवल माता-पिता का सपोर्ट ही काफी है, जीवन की हर पायदान में आगे बढ़ने के लिए।"
इतना सुनना था कि आंटीजी ने शीतल की मॉं को फोन लगाया और कहा "आप अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य के लिए आवाज़ नहीं उठा सकतीं ? आपके और भाईसाहब के इस व्यवहार से कभी सोचा है आपने ? शीतल कितनी दुखी है, और तो और वह अपनी सखियों को भी अपने दिल की बात नहीं बता पाई बेचारी। वह दिन पर दिन हीन भावना से ग्रसित होती जा रही है और चेहरा देखा है उसका कितना काला पड़ गया है। हँसती -खिलखिलाती शीतल हमें मायूस दिख रही है। आपको ही यह ठोस कदम अपनी बेटी के भविष्य के लिये उठाना होगा, अभी मौका है आपके पास। शीतल को उसकी मनपसंद नौकरी मिलने तक विवाह की शीघ्रता न करें, किसी भी रिश्तेदार की बातों में न आए, आखिर यह आपकी बेटी का सवाल है, जब वह अपने बलबूते पर मज़बूती के साथ स्वयं के पैरों पर खड़ी हो जाए, तब आप और भाईसाहब साथ रहकर उसकी पसंद से लड़का देखकर विवाह करवाईएगा। अभी हमारे बेटे-बेटियों की बालिग उम्र में उन्हें सहारा देते हुए, वर्तमान में हमें उन्हें और उन्हें हमें विश्वास के साथ सकारात्मकता के साथ समझना परम आवश्यक है, आखिर उनका भविष्य हम पर ही निर्भर है।" शीतल को मॉं ने भरोसा दिलाया कि आगे से उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं होने देगी", अंत में मॉं को ही ठोस कदम उठाना पड़ा। सभी सखियों ने बहुत दिनों बाद शीतल को मुस्कुराते हुए देखा, अंत में हम सखियों की प्रगाढ़ दोस्ती ही रंग लाई।