आखिर क्यों और कब तक एक सवाल
आखिर क्यों और कब तक एक सवाल
नारी को दुर्गा ,काली, चंडी एवं सरस्वती का रूप मानने वाले लोगों की मानसिकता उस समय क्यों लुप्त हो जाती है जब वह बच्चियों और महिलाओं के साथ दरिंदगी करते हैं। छोटी सी बच्ची के साथ गलत हरकत करते समय उन्हें वह बच्ची में क्या नजर आता है ?
मानसिकता भी लोगों की अजीब है कभी तो देवी बना देते हैं और कभी अपनी मानसिकता पर नियंत्रण खोकर उस देवी के साथ घिनौनी हरकत कर बैठते हैं। आज परिवेश बदल रहा है, स्थितियां सामान्य नहीं है, सृष्टि को बनाए रखने वाली स्त्री पर ही अत्याचार बढ़ रहा। नारी को सम्मान देकर अत्याचार अभद्रता करना यह दोहरी मानसिकता समझ नहीं आती है।
हिंसा और अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं, नारी के विकास की बात करने वाले नारी का शोषण बार-बार फिर क्यों कर रहे हैं ? क्यों यह उन्हें नहीं दिखता ? कुछ पुरुषों की भागीदारी के कारण ऐसी स्थितियां बनती जा रही है, जिसके वजह से हर पुरुष को शक की निगाह से देखा जाने लगा है। 21वीं सदी में जहां खुलकर जीने की, शोषण रहित वातावरण में जीने की कल्पना की जा रही थी वह खोखली ही रह गई। नारी के प्रति हिंसा व अपराध पर नियंत्रण करने के लिए सरकार की कोशिशें जारी है, पर उससे कुछ भी नियंत्रण नहीं हो रहा। परिस्थितियां वहीं की वहीं है।
निर्भया केस में जब सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ा था तब लगा था, शायद अब कड़े फैसले होंगे, फांसी की सजा देकर गंदी मानसिकता को धीरे-धीरे खत्म किया जाएगा, डर पैदा होगा, उन दरिंदों में जो खुलेआम समाज को शर्मसार कर रहा पर आज भी हालात ज्यों के त्यों है। आखिर क्यों रह गए हालात ज्यों के त्यों ? आज भी कानून का कोई डर नहीं, बेखौफ होकर अपनी दरिंदगी का शिकार बच्चियों और महिलाओं को बना रहे हैं। यह घटनाएं रोज सुनने के बाद भी सरकार की चुप्पी समझ नहीं आती, फैसले समझ नहीं आते, कानून समझ नहीं आता, कौन सा कानून है ? मैं समझ नहीं पा रही। बच्चियों की चीख, महिलाओं की चित्कार क्यों नहीं सुनाई देती है ? सच्चाई तो यही है हमारा समाज पत्थर दिल हो गया है। बच्चियों की चीख, तड़प, लाचारी बेबसी कुछ नहीं सुनाई देता। कई इन सब के आगे दम तोड़ देती है तो कोई समाज के ताने सुनने को तैयार रहती है, पर हमारा समाज अपराध करने वाले को सबूत के इंतजार में खुलेआम घूमने छोड़ देता है लेकिन जिसके साथ यह घटना होती है उसे सवालों के घेरे में लेकर कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
समाज के तानों से बचने के लिए, जिंदगी से बच गए तो उसे घर में कैद कर दिया जाता है और अपराधी देखो बाहर घूमते और दूसरा शिकार ढूंढते नजर आते हैं। यह हमारा दुर्भाग्य ही है 21वीं सदी में आकर भी इतनी शर्मिंदगी इतनी जिल्लत भरी जिंदगी हम औरतों को मिल रही पर अपराधी को सजा नहीं। लड़कियों को सौ हिदायतें दी जाती हैं घरों में, क्या लड़कों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए ? मानसिक रूप से उन्हें तैयार नहीं करना चाहिए ? महिलाओं के साथ किस तरह पेश आएं क्यों नहीं उन्हें सिखाया जाता ? लड़कियों के साथ बच्चियों के साथ किस तरह का व्यवहार रखें ये क्यों नहीं बताया जाता ?
सोच घर के माहौल पर ही होती है और संगत पर भी। अपने ही घर में वह सुरक्षित नहीं होती, घरों में भी शोषित हो रही है। समाज किस ओर जा रहा एक बार चिंतन करके देखें। कानून नहीं हमें सोच बदलनी होगी, लड़कों को सिखाना होगा, सम्मान करना नारी का। समाज के सभी लोगों और कानून-व्यवस्था से आगे अपेक्षा होगी लाचारी, बेबसी और तड़प से नारी बाहर निकल सके एक समय ऐसा लाएंं.. जहां बच्चियां, औरतें बेखौफ होकर घूमे। आशा है एक सम्मान, बेखौफ, आजादी और बेबाकपन से जीने का अधिकार जरूर मिलेगा। खुद को बदलें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें।
भारतीय संस्कृति में नारी के महत्व और सम्मान को बताएं, समझाएं। मां, बहन और बेटुयों के पवित्र रिश्ते को बताएं। मानसिकता बदलेगी तभी सब कुछ बदलेगा।नजरिया बदलें.. सोच बदलेगी.. तभी गंदी मानसिकता से आजादी मिलेगी। बच्चियों, महिलाओं को सम्मान देना बचपन से बतलायें, तभी सोच अच्छी रहेगी सम्मान नारी के प्रति रहेगा, नयी सोच नया बदलाव लाएं।
