Satyawati Maurya

Drama

5.0  

Satyawati Maurya

Drama

आख़िरी विदाई

आख़िरी विदाई

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आज मेरी काम वाली रामी को आने में थोड़ी देर हो गई तो आते ही डांट दिया मैंने ,


"कुछ लोग घर आने वाले है और तुम देर से आई हो अभी!"


मेरी डांट पर हँसते रहने वाली आज कुछ उदास लगी।


मन नहीं माना तो पूछा, "क्या हुआ, मुँह क्यों बनाई हो, पति से फिर झगड़ कर आई हो क्या?"


दबी आवाज़ में बोली, "नहीं भाभी, अभी आते समय रास्ते में एक बूढ़ी औरत को देखा, आज सुबह मर गई वो। रास्ते से आते समय वो मेरे से बहुत अच्छे से कभी -कभी बात करती थी। बहुत ग़रीब थी बिचारी"


 मैंने उत्सुकता से पूछा, "कहाँ देखा तुमने?"


"भाभी, वो सामने बस स्टॉप है न उधर, वो लोग प्लास्टिक बाँध के उसके नीचे रहते है।मुनिसिपालिटी वाले कभी-कभी उनका घर, सामान सब तोड़ देते थे, तो वो लोग सब सामान बसस्टॉप के सीट के नीचे रख देते , फिर वापस रात में बसस्टॉप पे प्लास्टिक बाँध के रहते थे। बेचारा ग़रीब लोग गर्मी, बरसात में किधर जाएगा भाभी"


हाँ, मैंने भी उस बूढ़ी औरत को देखा है, यही कोई रही होगी 60-70 साल की। रोज़ 6 बजे उठ कर बड़ी -सी प्लास्टिक की बोरी कंधे पर डाल कूड़ा बीनने जाती थी, चाहे सर्दी, गर्मी, बारिश जो भी मौसम हो। 9-10बजे वापस आती तो बोरी में से गत्ते, प्लास्टिक, ख़ाली डिब्बे, लोहा- लक्कड़ वहीं फुटपाथ पर बैठ कर अलग करती थी और उसकी विधवा बहू वह सब बेच आ जाती। इसी तरह वो बूढ़ी, उसकी विधवा बहू और उसके दो बच्चे जी रहे थे। कर्नाटक के किसी गाँव से आये थे यहाँ मुम्बई में, काम -धंधे के लिए। काम न मिला तो इधर -उधर कूड़ा बटोर, बेच कर जीवनयापन कर रहे थे। ये ग़रीबी भी न, जो करा ले वो कम है।


 मैंने रामी से काम करने को कहा और ख़ुद खिड़की से बाहर झांका, देखा एक मैली- सी चादर से उसका शव रोड के उस पार फुटपाथ पर, ढका हुआ था। 2-4 औरतें वहाँ खड़ी थीं, तभी एक पुलिस की वैन के साथ -साथ टुनटुनाती एक एम्बुलेंस आई।


बुढ़िया की बहू से पुलिस वालों ने कुछ पूछताछ की और उसको साथ चलने के लिए कहा, तो उसने आँसू पोंछते हुए मना कर दिया, जाने से। दो आदमी अकड़े हुए शव को स्ट्रेचर से एम्बुलेंस में डाल सरकारी खाते से आख़िरी क्रियाकर्म के लिए ले गए। खाने को न मिले, रहने को न मिले, रोज़गार भी न मिले पर कफ़न से कोई बदन महरूम नहीं रहता, उदार है यहां की सरकार!!


बहू पल्लू से आँख-नाक पोंछते हुए हाथ जोड़े बसस्टॉप के पास ही, सास को आख़िरी विदाई देती खड़ी रही। उसकी बगल में 2 छोटे बच्चे भी ताकते खड़े थे, न जाने दादी कहाँ जा रही है और माँ रो क्यों रही है!


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