आजादी......
आजादी......
स्वतंत्रता दिवस के अबसर पर शहर के सारे विद्यालय की चुने हुए बच्चों के बिच बकत्रुता प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है. पुरे स्टेडियम भरा हुआ है. मंच पर शिक्षा मंत्री, बिधायक, शिक्षाविद और बिचारक मंडली बैठे हुए है. सबके सामने आजादी के ऊपर सारे बच्चों को बोलना है. एक एक करके बच्चे आकर अपनी अपनी बाते रख रहे है और पुरे स्टेडियम तालियों मे गूंज रहा है. फि आया एक होनाहार छात्र अजय कुमार . अजय पढ़ने मे जितना अच्छा है, उतना ही उसका समाज की ब्यबस्था के ऊपर ज्ञान है. जब वो मंच के ऊपर जा रहा था तब उसके विद्यालय के प्रधान सिख्यक चुपके से बोले, "ज्यादा कड़वी सच नहीं बोलना बेटा."अजय ने हाँ बोला और मंच पर जाके बोलना सुरु किया. उसने मंच पर बैठे सबको और स्टेडियम मे बैठे सबको स्वतंत्रता दिवस का अभिनन्दन देते हुए बोलना सुरु किआ," आज ही के दिन हमारा देश विदेशी शाशको से आजाद हों कर स्वतंत्रता हासिल किया. इसके लिए नेताजी से लेकर पंडित नेहेरु जी के तक कितने सुरु बीर और देशभक्तो ने कुर्बानी दिए है. और आज हम गर्व से कहेते है कि हम आजाद हिंदुस्तान के नागरिक है. ये बात यहाँ तक ठीक है पर हम अभी तक पुरे आजाद नहीं हुए. अगर हम पुरे आजाद होते तो आज दिन दहाड़े रास्ते पर हमारे बहु, बेटिआ और माताओं की इज्जत नीलाम नहीं होता. उनको नाचर समझ के उनकी इज्जत लूटी नहीं जाती. अभीतक हमारे ये मन से बुराई का सोच आजाद नहीं हुआ है. अगर हम आजाद होते तो जाती के नाम पर और धर्म के नाम पर एक दूसरे से नहीं लढ़ते. हम समाज मे डर को पैदा नहीं करते और इस समाज को बदनाम नहीं करते. कियूँ की हम अभीतक अपने निजी स्वार्थ से खुदको आजाद नहीं किये. अगर हम आजाद होते तो कालाबाजारी करके इस देश के अर्थनीति को और दुर्बल नहीं करते. हम अभीतक अधर्म और अन्याय की सिकंजे से खुदको आजाद नहीं किए है. ऐसे मे बोलने जाऊँ तो बहुत कुछ है बोलने को. जैसे किसान जो सबको खाने का समान उपजाऊ करके देता है, वो अब गरीबी और नाचारी से आजाद नहीं हुआ है. मे और क्या कहूँ, हम जैसे सब बिद्यार्थी अभीतक अपनी मन की बाते खुलकर रखने के लिए आजाद नहीं है. अब हम सबको सोचना होगा और समझना होगा सही माने से आजादी क्या है. सायद मेरे इस बात पर सब नाराज होंगे की मे यहाँ ऐसे कियूँ बोल रहा हुँ. पर मे कमसे क म आज इस समय अपने सोच को आजाद करने का निर्णय लिआ और बोला. होसकता है ये कड़वा सच हमें अच्छा नहीं लगे पर सच तो सच होता है. अंत मे सबको निबेदन करूँगा की आजादी का सही मतलब समझें और खुद को सही मायने मे आजाद करें, जिसमे हम सबका इस समाज और देश का भला होगा. एक छोटा पंक्ति के साथ मेरे बात ख़तम करूँगा -
बड़ी मुश्किल से यारों अपनी देश को मिली है ये आजादी,
हम अपनी सोच बदलके रोकेंगे सजाज का बर्बादी.
बदलेंगे हम बदलेगा देश ख़ुश रहेगा ये आबादी,
देख के तो सारे दुनिया बोलेगा, ये है देखो सच्ची आजादी.
जय हिन्द. "
इतना कहकर अजय मंच से नीचे आने लगा. कुछ देर के लिए पूरा स्टेडियम चुप रहा और फिर सब खड़े होकर तालियां बजाते रहे. मंच पर बैठे सब अतिथि फिर मजबूरन खड़े होकर तालियां दिए. और खुद मंत्री जी बोलने लगे, " अभी इस बच्चे को सुनने के बाद मुझे लगा की मे भी खुद आजाद नहीं हुआ हुँ. आज मे आपके सामने खुलकर बोलता हुँ की आज से मे इस मंत्री पद और बिधायक पद से खुदको पहेले आजाद कर रहा हुँ. और जैसे ही अजय बेटा ने बोला, अबसे सही आजादी का लढाई मे सुरु करूँगा. पता नहीं कितने समय लेगा इतने आवादी वाले देश मे सबको ये समझने के लिए. पर पहेले हमारे इस शहर मे सब मिलकर ये आजादी का सही मतलब सबको समझायेंगे और हम सब सही आजादी प्राप्त करेंगे. जय हिन्द. " तब मंत्री श्री किशोर चंद्र जी सबको नमस्कार करते हुए मंच से निचे आकर अजय को गले लगाकर बोलने लगे, " बेटा इतने कम उम्र मे तुम कितने अच्छे सोच रखते हों. आज तुम हमें एक नयी रास्ता आजादी का दिखया है. हम तुम्हारा आभारी है. "
तब मंच से बिचारक मण्डली अजय को बिजेता घोषित किये. सारे स्टेडियम मे सब अजय का चर्चा करने लगे हुए एक कोने मे बैठा उस स्टेडियम का चौकीदार अजय के पिता रमेश कुमार खुशी के आँसू के साथ ताली बजाते हुए अपने बेटे को गले लगा लिए.स्वतंत्रता दिवस के दिन से एक नयी लड़ाई सम्पूर्ण आजादी का शुरु हुआ.
